- प्रयाग और चरणाद्रि के मध्य में अवस्थित त्रिकोण स्थान में विन्ध्याचल पूरे विन्ध्य शरीर का दिल है। इसमें मां भगवती दुर्गा का निवास शास्त्रों में भी प्रमाणित है। कहा जाता है, कि इसीलिए मां गंगा भी यहीं से होकर बहती हैं। इसी क्षेत्र में महाकाली, महालक्ष्मी और अष्टभुजा के रुप में मां महा-सरस्वती और विन्धयवासिनी देवी के रुप में साक्षात महा-लक्ष्मी जी हैं।
- कहा जाता है कि, त्रिकोण की परिक्रमा पूरी करने से संपूर्ण विन्ध्यगिरी की परिक्रमा पूरी हो जाती है।
- विन्ध्यवासिनी मां का दरबार दिल्ली से करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर है। अगर आप तीव्रगति रेल से दिल्ली से जाना चाहते हैं, तो एक रात का सफर है।
- मां के दरबार में जाने के लिए हवाई जहाज, रेल और बस तीनों की सुविधा है। हवाई जहाज से लखनऊ तक जाया जा सकता है। लखनऊ के आगे ट्रेन और बस से पहुंचा जा सकता है। मां के दरबार में पहुंचने के लिए आप विन्ध्याचल रेलवे स्टेशन या फिर उसके बाद आने वाला मिर्जापुर रेलवे स्टेशन दोनो में से कहीं भी उतर सकते हैं।
- स्टेशन से उतरने के बाद मां के दरबार तक पहुंचने के लिए आटो रिक्शा और बस दोनो ही मिल जाते हैं।
- इसके बाद काली खोह में स्थित मां काली के दर्शन के लिए जाना होता है। दोनो मंदिरों की दूरी ज्यादा नहीं है। विन्ध्यवासिनी से काली मां के मंदिर को आटो-रिक्शा से जाया जा सकता है।
- अष्टभुजा मां को भगवान श्रीकृष्ण की सबसे छोटी और अंतिम बहन माना जाता है। कहा जाता है, श्रीकृष्ण के जन्म के समय ही इन मां का जन्म हुआ था। इनके जन्म की सुनकर कंस इन्हें ले आया। कंस ने जैसे ही इन मां की हत्या के लिये इन्हें पत्थर पर पटका, वे उसके हाथों से छूटकर आसमान की ओर चली गयीं। जाते-जाते मां ने घोषणा भी कि थी, कि कंस तुझे मारने वाला (भगवान श्रीकृष्ण) इस युग में धरती पर आ चुका है।
- नवदुर्गों के वक्त इन तीनों की मंदिरों में विशाल भीड़ होती है।
- कहा जाता है कि, अष्टभुजा मां के मंदिर के पास ही एक झरना बहता है। इस झरने का जल इस हद तक शुद्ध और लाभकारी है, कि इसके पीने से शरीर के तमाम रोग दूर हो जाते हैं। इस झरने और जल के बारे में मां के दरबार में प्रसाद की दुकान लगाने वाले किसी भी दुकानदार से पूछा जा सकता है।
- मां अष्टभुजा मंदिर परिसर में ही पातालपुरी का भी मंदिर है। यह एक छोटी गुफा में स्थित देवी मंदिर है।
- जिस विन्ध्याचल पर्वत पर यह त्रिकोण देवी मंदिर हैं, उस पर्वत का भी अपना दिलचस्प इतिहास है।
- महेंद्र, मलय, सह्य, शक्तिमान, ऋक्ष, विन्ध्य और परियात्र। इन सात पर्वतों को कुल-पर्वत माना गया है।
- इन पर्वतों में विन्ध्य पर्वत का अपना विशेष स्थान है।
- विन्ध्य पर्वत पर मां भगवती दुर्गा का प्राकट्य पुराण आदि शास्त्रों में भी उल्लिखित है।
- विन्ध्य पर्वत से नर्मदा, शोण आदि तीर्थनद निकले हैं।
- विन्ध्याचल पर्वत ही भारत को उत्तर और दक्षिण हिस्से में चिंहित और विभक्त करता है।
- कहा जाता है कि सूरज का रास्ता रोकने वाला इस संसार में एकमात्र विन्ध्य पर्वत ही था।
- विन्ध्य पर्वत द्वारा रास्ता रोक दिये जाने से परेशान सूर्यदेव, विन्ध्य के गुरु अगस्त्य मुनि की शरण में गये।
- सूरज की प्रार्थना सुनकर गुरु अगस्त्य मुनि ने विन्ध्य पर्वत से कहा कि, वह अपना आकार बढ़ाना रोक दे। अगस्त्य मुनि का कहना था, कि वे अब बूढ़े हो चले हैं। उनसे (अगस्त्य मुनि) से अब और ऊँचाई पर चढ़ पाना इस बढ़ती उम्र में असंभव है। लिहाजा विन्ध्य पर्वत ने अपना आकार बढ़ाना रोक दिया। इसके बाद ही सूरज को आगे बढ़ने का रास्ता मिलना संभव हो पाया था।
- इस तथ्य का उल्लेख 'वामन पुराण' 18वें अध्याय में भी है।
- कहते हैं कि, पर्वतराज विन्ध्य के ऊपरी शिखर पर ही मां भगवती दुर्गा आज भी निवास करती हैं।
मां के मंदिर के लाइव(सीधे) दर्शन के लिए नीचे दिये गये वीडियो लिंक को क्लिक करें।
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