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Friday, 21 November 2014

सलाखों में सिसकती "सतलोक" की "संभोग-समस्या"- हे राम "फाड़"!

-संजीव चौहान-
आश्रम से आडंबर तक 


रामपाल का अतीत

हरियाणा राज्य के रोहतक जिले के गांव रिठाना में जन्मा था। सिंचाई विभाग में कनिष्ठ-अभियंता (जूनियर इंजीनियर) था। अनियमितताओं के चलते नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। बर्खास्तगी के बाद रामपाल को 'बाबा' बनने की खुराफात सूझी। सन् 1999 के आसपास रोहतक जिलांतर्गत करौंथा में जोड़-तोड़ से रामपाल ने सबसे पहले एक महिला से जमीन का जुगाड़ किया। उसी जमीन पर रामपाल आश्रम की आड़ में लोगों को
बेवकूफ बनाने की "दुकान" खोलकर जम गया। कुछ ही दिनों में रामपाल इलाके के जनमानस में खुद को "स्वंय-भू भगवान" के रुप में स्थापित करने लगा। यह बात समाज के कुछ प्रबुद्ध नागरिकों को नागवार गुजरी। रामपाल और उसकी कथित मंशा का विरोध होने लगा।
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बाबा का विरोध

सन् 2006 में बाबा का विरोध लोग सड़क पर आकर करने लगे। इससे बचने के लिए बाबा ने भी रास्ते खोजने शुरु कर दिये। एक दिन ऐसा भी आ पहुंचा, जब ढोंगी रामपाल के समर्थक और विरोध करौंथा वाले आश्रम पर आमने-सामने इक्ट्ठे हो गये। दोनो ओर से गोलियां चलीं। तीन लोगों की मौत हो गयी। सैकड़ों ज़ख्मी हुए। उस गोलीकांड में रामपाल भी हत्या का आरोपी बना। गिरफ्तार हुआ। करीब सवा साल तक जेल में रहा। उस तिहरे हत्याकांड की सुनवाई अब तक अदालत में चल रही है। उसी मामले में रामपाल को अदालत में पेश होना था, लेकिन बहाने बनाकर अदालत में पेश होने से रामपाल कतराता रहा। रामपाल की हठधर्मिता के सामने हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट किसी भी तरह से झुकने को तैयार नहीं था। उधर रामपाल किसी भी कीमत पर हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करने को राजी नहीं था। इसी अड़ियल रवैये ने रामपाल को खतरनाक अपराधियों की मानिंद पुलिस से घिरने पर मजबूर कर दिया। लिहाजा 19 नवंबर 2014 को रात करीब साढ़े नौ बजे रामपाल को सतलोक आश्रम से गिरफ्तार कर लिया गया।

ढोंगी की गिरफ्तारी

रामपाल की गिरफ्तारी के बाद परत-दर-परत जब खुलनी शुरु हुईं, तो पता चला कि रामपाल, बाबा-संत तो दूर-दूर तक है ही नहीं। कानून और रामपाल के बीच कई दिन तक चली लुकाछिपी और खून-खराबे के मुहाने पर बाबा गिरफ्तार हुआ, तो पता चला कि सतलोक आश्रम और संत का खेल कितना खतरनाक था। बाबा की गिरफ्तारी के बाद पुलिस आश्रम में घुसी। सबसे पहले आश्रम के शौचालयों को खंगाला गया। वहां हजारों की संख्या में नये और इस्तेमाल किये हुए "कंडोम" (निरोध) मिले। संत के शौचालय में भला कंडोम क्यों? इसकी जांच जारी है। उधर बाबा की गिरफ्तारी से ठीक पहले तक कई दिन चले हाई-वोल्टेज ड्रामे के बाद जब आश्रम बे-बस श्रद्धालुओं से खाली कराया गया, तो कंडोम बरामदगी के रहस्य से भी परदा उठने लगा।

प्राथमिक जांच-पड़ताल में पुलिस को आश्रम में बंधक बनाकर रखी गयी कई महिलाओं/ लड़कियों से पता चला कि आश्रम में उनके साथ बाबा के चेलों ने दुष्कर्म/ सामूहिक दुष्कर्म किया। पीड़ितों ने जब विरोध किया तो उन्हें उनके कपड़े पहनने को नहीं दिये गये, जिससे वे बाहर निकल कर मुंह खोलने के काबिल भी नहीं रहीं।

आश्रम में गोला बारुद का ढेर क्यों?

रामपाल को गिरफ्तार करने के बाद जब हरियाणा पुलिस आश्रम में घुसी तो उसके होश उड़ गये। शौचालयों में नये और इस्तेमाल किये हुए कंडोम (निरोध) के ढेर मिले। यह देखकर पुलिस का दिमाग घूम गया, कि बाबा-संत के सतलोक आश्रम में कंडोम क्यो? पुलिस जब आश्रम में और अंदर घुसी, तो वहां पेट्रोल बम, देसी तमंचे, कारतूसों के ढेर, हथगोलों, छुरों-चाकूओं के ढेर बरामद हुए। इससे पुलिस ने इस बात का अंदाजा तो लगा लिया, कि सतलोक में कुछ भी हो, मगर आश्रम और भगवान के भाव वाली कोई चीज नहीं है। यहां सब कुछ अनैतिक है। अंदर बंधक बने लोगों से ही पुलिस को पता चला कि, बाबा जिस दूध में नहाता था, उसी दूध की खीर भक्तों को प्रसाद के रुप में परोसी जाती थी।

सतलोक में स्विमिंग पुल

कहने को बाबा श्रद्धालुओं के संकट हरता था। अंध-भक्तों का रामपाल "गुरुजी" । अब ऐसे में सवाल यह पैदा होता है, कि किसी धार्मिक गुरु या संत का भला स्विमिंग पुल से क्या वास्ता? सतलोक आश्रम में लेकिन संत और उसके चलों के इस्तेमाल के लिए एक बड़ा स्विमिंग पुल भी बना हुआ मिला है।

बबाली बाबा के "विश्वासपात्र"

बाबा के भक्त, अनुयायी, चेले-चपाटों की संख्या तो काफी थी। बाबा मगर इस भीड़ में से किसी पर भी विश्वास नहीं करता था। जो उसके खास, करीबी और विश्वासपात्र थे, उनमें उसका भाई पुरुषोत्तम दास, कोई जगदीश ढाका, राजकपूर और एक महिला थे। बाबा इन्हीं के कहे अनुसार आश्रम का संचालन करता था। 19 नवबंर 2014 को इन चारों को भी पुलिस ने आश्रम से गिरफ्तार कर लिया।

नाम रामपाल, राम से कोई वास्ता नहीं

इस ढोंगी संत का नाम तो रामपाल है, लेकिन राम से इसका ताल्लुक दूर-दूर तक नहीं है। रामपाल नाम का यह बहुरुपिया हिंदू धर्म और उसके देवी-देवताओं में कोई आस्था नहीं रखता । उसके मुताबिक वो 'कबीरपंथी' है। रामपाल स्वंय को "ईश्वर" का रुप घोषित किये बैठा था।

आश्रम से श्रद्धालुंओं संग निकले जब "शव"
आश्रम से साधू-संत-सद्भावना के भाव निकलने चाहिए। ढोंगी रामपाल के सतलोक आश्रम से बंधक श्रद्धालुंओं के संग पुलिस को लाशें (शव) भी मिले। इनमें 5 शव महिलाओं के और एक शव धैर्य नाम के बालक का था। धैर्य को जन्मजात पीलिया की बीमारी थी। वो बाबा के आश्रम में पीलिया के इलाज के लिए आया था। ऐसे में साफ है कि "सतलोक" आश्रम साधू-संत का डेरा या आश्रम नहीं, बल्कि "शमशान" था। 

आश्रम नहीं, कुकर्मों का अड्डा


सतलोक "आश्रम" कम कुकर्मों का अड्डा ज्यादा था। यह बात कहने और लिखने भर की नही है।  ढोंगी, ढकोसलेबाज रामपाल की गिरफ्तारी के बाद जो हाल अंदर का मीडिया और पुलिस ने देखा, उससे तो यही साबित हो चुका है। किसी संत या बाबा को भला बुलेटप्रूफ सिंहासन की क्या जरुरत? बाबा बुलेटप्रूफ सिंहासन पर ही बैठता था। आश्रम में पांच मंजिला तहखाना भी है। संत के लिए इतने गहरे तहखाने की भला क्या जरुरत? आश्रम के अंदर ही वीआईपी गेस्ट हाउस, मिनी पेट्रोल पंप, पांच बिस्तर का अस्पताल, बाबा के बाथरुम तक में एअर कंडीश्नर लगे हैं। एक संत को भला इन सब से क्या वास्ता? बांझ औरतों की कोख से बच्चा पैदा कराने से लेकर, नपुंसक पुरुषों को "मर्द" बनाने और भूत-प्रेतों तक का इलाज इस ढोंगी के आश्रम में होने का दावा ढोंगी और उसके कुकुर्मों में सहयोगी उसके चेले करते थे।

ठग विद्या अपने ही काम नहीं आयी

जिस ठग विद्या से बाबा ने जमाने के तमाम मासूम/ मजबूरों को ठगा, वह ठग विद्या ढोंगी बाबा का उद्धार नहीं कर सकी। जब पाप का घड़ा भरा और उसके फूटने का वक्त आया, तो वह फूट गया।बाबा खेत में पड़े किसी ढेले की मानिंद अपने ठग चेलों के साथ वैसे ही टूट-फूटकर बिखर गया, जैसे मानो कि नादां बालक के हाथों से उसका "खिलौना"।

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