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Friday, 21 November 2014

सलाखों में सिसकती "सतलोक" की "संभोग-समस्या"- हे राम "फाड़"!

-संजीव चौहान-
आश्रम से आडंबर तक 


रामपाल का अतीत

हरियाणा राज्य के रोहतक जिले के गांव रिठाना में जन्मा था। सिंचाई विभाग में कनिष्ठ-अभियंता (जूनियर इंजीनियर) था। अनियमितताओं के चलते नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। बर्खास्तगी के बाद रामपाल को 'बाबा' बनने की खुराफात सूझी। सन् 1999 के आसपास रोहतक जिलांतर्गत करौंथा में जोड़-तोड़ से रामपाल ने सबसे पहले एक महिला से जमीन का जुगाड़ किया। उसी जमीन पर रामपाल आश्रम की आड़ में लोगों को
बेवकूफ बनाने की "दुकान" खोलकर जम गया। कुछ ही दिनों में रामपाल इलाके के जनमानस में खुद को "स्वंय-भू भगवान" के रुप में स्थापित करने लगा। यह बात समाज के कुछ प्रबुद्ध नागरिकों को नागवार गुजरी। रामपाल और उसकी कथित मंशा का विरोध होने लगा।
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https://www.youtube.com/playlist?list=PLhjyOczvlcpQT0uR7A-9BfcXJi2u7YNUg


Wednesday, 19 November 2014

हाल-ए-हरियाणा लाइव-रिपोर्टिंग लंका जिताने गये, “लंगूर” बन कर लौटे!

-संजीव चौहान-

मैं एडिटर क्राइम तो बनाया गया, मगर मोदी के साथ सेल्फी-शौकीन-संपादक की श्रेणी में कभी नहीं आ सका। एक चिटफंडिया कंपनी के चैनल में करीब दो साल एडिटर (क्राइम) के पद पर रहा। मतलब संपादक बनने का आनंद मैंने भी लिया। सुबह से शाम तक चैनल रिपोर्टिंग सब गाद” (जिम्मेदारियां), चैनल हेड मेरे सिर पर लाद देते थे। लिहाजा ऐसे में मोदी या किसी और किसी खास या शोहरतमंद शख्शियत के साथ चमकती सेल्फी लेने का मौका ही बदनसीबी ने हासिल नहीं होने दिया। या यूं कहूं कि, चैनल के न्यूज-रुम की राजनीति में नौकरी बचाने की जोड़-तोड़ में ही चैनल-हेड से लेकर चैनल के चपरासी तक ने इतना उलझाये रखा, कि अपनी गिनती सेल्फी-संपादकों में हो ही नहीं पाई। हां, इसका फायदा यह हुआ कि, मेरे जेहन में हमेशा इसका अहसास जरुर मौजूद रहा कि, रिपोर्टिंग, रिपोर्टर, और फील्ड में रिपोर्टिंग के दौरान के दर्द, कठिनाईयां क्या होती हैं? शायद एक पत्रकार (वो चाहे कोई संपादक हो) के लिए सेल्फी से ज्यादा यही अहसास जरुरी भी