दैय्या रे दैय्या, राहुल भैय्या
बीबी किसी की । लंका किसी की । पति किसी का । अपहरण किसी का । कहां अयोध्या और कहां लंका । कहां जनकपुर । किसी का किसी से कोई तालमेल नहीं । फिर भी रामलीला शुरु हुई तो देखने को सब इकट्ठे हो गये । न्याय पाने और न्याय दिलाने की दुहाई देकर । बिचारे हनुमान जी । किसी से न कोई लेना-देना। फिर भी जा फंसे अखाड़े में । न अपनी बीबी, न भौजाई, न भैय्या। इसके बाद भी आग लगवा बैठे अपनी पूंछ में। बैठे बिठाये। वैसे राम की रामलीला के बारे में हमारे राहुल भैय्या ने सब-कुछ देख सुन रखा था। शायद इसीलिए वे अन्ना हजारे के आंदोलन की ओर पांव तक फैलाकर नहीं सोये । क्योंकि वहां लोकपाल के मुद्दे पर आग लगी हुई थी। न ही बाबा रामदेव की "रामलीला" देखी । क्योंकि वहां भी बाबा रामदेव और उनके चेले-चपाटे चिल्ल-पों मचा रहे थे- देश से भ्रष्टाचार मिटाने को लेकर । और विदेशी बैंकों में दबाकर रखी गई काली कमाई को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने की मांग कर रहे थे। बताईये ये भी कोई मांग हुई। किसी की बैंक में किसी का जमा पैसा भला देश में क्यों वापस मंगा लिया जाये? बाबा रामदेव और अन्ना हजारे तो फालतू में ही हनुमान बनकर अपनी पूंछ में खुद ही आग लगाये घूम रहे हैं।
अब भला राहुल भैय्या कोई दिमाग से गये-गुजरे तो हैं नहीं। बीबी उठा ली जाये किसी गैर की। और पूंछ में आग लगा लें, या लगवा बैठें अपनी में। अकलमंद हैं। खानदानी सियासत में खासा दबदबा रखते हैं। दादा-दादी, मम्मी-डैडी, चाचा-चाची, सब के सब जन्मजात नेता रहे हैं। तो फिर भला राजनीति में हम (राहुल गांधी) कैसे गच्चा खा सकते हैं। बहुतेरे देखे हैं अन्ना हजारे और बाबा रामदेव। अगर इन सबके कहे पर चल गये होते, तो आज कांग्रेस में भी बीजेपी की तरह चुनाव जीतने के लिये मुद्दे तलाशे जा रहे होते।
किसी के बीच कोई खींचतान नहीं होती। कांग्रेस आखिर कांग्रेस है। न कि चांदनी चौक का कोई मशहूर शाही दवाखाना, कि मरीज आया दवाई ली। पैसे दिये और चले गये। इलाज से फायदा हो जाये, तो डाक्टर साहव अच्छे । वरना डाक्टर और दवा दोनो बुरी। ये कांग्रेस है। जहां के डाक्टर रोज-रोज नहीं बदले जाते। अगर ऐसा होता तो दिग्विजय सिंह, अहमद पटेल कब के निपटा दिये गये होते। यहां या तो कोई घुस ही नहीं पाता है। और अगर इंट्री कर गया तो फिर बाहर निकले का कोई रास्ता नहीं दिया जाता। अब अमर सिंह को ही देख लो। सोनिया जी के पास पहुंचने के लिए तड़फ रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के सिपहसालार हैं, कि 10 जनपथ के आसपास भी नहीं फटकने दे रहे हैं।
अब बताओ ऐसी सूझ-बूझ वाली पार्टी में भला राहुल भैय्या कैसे गच्चा खा सकते है ? वो भी तब जब परम पूज्यनीय दिग्विजय सिंह जैसे गुरुवर का आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिल रहा हो। दिल्ली में 24 अकबर रोड पर पार्टी मुख्यालय में भी दफ्तर का कमरा आमने-सामने है। यानि एक लम्हे को भी दिग्गी राजा से दूर नहीं। बाबा रामदेव ने दिल्ली में रामलीला की तो भी राहुल भैय्या का कहीं अता-पता नहीं चला। अन्ना की मंडली ने कई दिन तक जंतर-मंतर पर भजन-कीर्तन किया। राहुल भैय्या वो सब भी सुनने में विश्वास नहीं रखते । सो जंतर-मंतर की ओर भी घूम कर नहीं देखा। फिर बाबा और उनके चेले-चपाटों ने रामलीला मैदान में सुंदर-कांड का पाठ शुरु कर दिया। राहुल भैय्या को वहां भी न जाना था। न गये। ये सोंचकर कि क्यों भला बे-वजह अपनी पूंछ में आग लगाकर अपनी ही सरकार की खिलाफत की जाये। बाबा रामदेव की रामलीला और सुंदर-कांड में शामिल होकर।
हां। उत्तर-प्रदेश में आने वाले समय में चुनाव की होली जलनी है। उसकी आग में तापना कांग्रेस के लिए बहुत जरुरी है। अगर नहीं तापे तो मई-जून में भी ऐसी ठंड कांग्रेस को लगेगी, कि पार्टी को न रोते बनेगा और न हंसते। इसलिए दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के भट्टा परसौल गांव में मुआवजे की राजनीति में कूद पड़े राहुल भैय्या। अपने राजनीतिक गुरु परमआदरणीय दिग्विजय सिंह । शायद इसलिए कि भट्टा की सी राजनीतिक आग अब शायद यूपी के चुनावों तक दूसरी न लगे। इसलिए जितना हो सके किसानों के साथ हमदर्दी का खेल बढ़-चढ़कर खेल लिया जाये। सो श्रीमान राहुल भैय्या अल-सुबह मोटर साइकिल पर बैठ कर जा पहुंचे भट्टा गांव में राजनीति करने। वो राजनीति जिससे सियासत की जानी-दुश्मन बसपा की बहन मायावती की अगले चुनाव में ऐसी-तैसी की जा सके। कहां 10 जनपथ और 24 अकबर रोड के एअर कंडीश्नर की ठंड और कहां भट्टा गांव की तपती धूप की बदन झुलसाऊ गर्मी। पूरे दिन राहुल भैय्या नींबू पानी पी-पीकर भट्टा गांव की चौपालों पर ठेठ किसान भाईयों के बीच आसन जमाये रहे। पहुंचे तो पीछे-पीछे आदरणीय अमर सिंह साहब भी। लेकिन राहुल भैय्या के राजनीतिक गुरु जी दिग्गी राजा ने उन्हें अपने ड्रामे में झांककर भी नहीं देखने दिया। शायद इसलिए कि इसका राजनीतिक फायदा कहीं अमर सिंह को न नसीब हो जाये।
खैर । बाबा रामदेव और अन्ना टेंशन देते इसलिए राहुल भैय्या उनसे दूर ही रहे। भट्टा परसौल की आग में राजनीति की सोंधी रोटी भली-भांति सिक रही थी। फूल रही थी। इसलिए वहां मौजूदगी दर्ज कराना जरुरी था। इससे विरोधी नेता माननीया मायावती जी पस्त हो सकती थीं। सो भला भट्टा पारसौल गांव की गलियों में दिन भर भरी दुपहरी में भी खाक छानने में भला काहे का कैसा संकोच ? कभी इस घर कभी उस घर। दिन भर एक घर से दूसरे घर राहुल भैय्या चक्कर काटते रहे। शायद इसलिए कि भट्टा गांव की राजनीति यूपी में उनकी और कांग्रेस की नैय्या पार लगायेगी। भला अन्ना के भजन सुनकर और बाबा रामदेव की रामलीला देखकर क्या मिलने वाला था। सिवाये अपनी मम्मी (सोनिया गांधी) की बे-इज्जती कराने के । अब समझ आ गयी न, कि क्यों चिल्लाती फिर रही है देश भर में भाजपा.....दैय्या रे दैय्या.....राहुल भैय्या.....
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