हमने सबकी ले ली,
तुम हमारी तो नहीं लोगे...?
-संजीव चौहान-
टीवी-18 ग्रुप के न-मुराद मालिकान ने सीएनएन,
सीएनवीसी आवाज और आईबीएन7 ने करीब 350 कर्मचारियों की रोजी-रोटी छीनकर
हलकान कर दिया। मालिकों के एक इशारे पर यह काम किया उनके "पालतूओं" किसी राजदीप सरदेसाई और किसी आशुतोष गुप्ताओं
ने। कंपनी मालिकों ने पूछा था दोनो से, कि चैनल का घाटा पूरा
करने का रास्ता खोजो। बहुत दिन से तुम लोग कंपनी की कमाई पर मस्ती कर रहे हो। मालिक
की बात शत-प्रतिशत सही थी। कंपनी की दौलत पर मौज में यही दोनो थे। बाकी तो बिचारे परिवार-पेट
पालने के लिए नौकरी कर रहे थे।
मालिकों ने दोनो से ऐसी डिमांड कर डाली,
जिसकी उम्मीद आशुतोष और राजदीप को ख्वाब में भी नहीं थी। यह बिचारे तो
खाने-कमाने और सरकार की जत्थेदारी में लीन थे। बाकी दुनिया को लात मारकर। धूनी रमाये
बैठे थे। कई साल से चैनल की कुर्सी पर। बिना इस चिंता के कि मालिक किसी दिन इनके पर
काटने के लिए भी छुरा हाथ में थाम लेगा। इन्हें लगता था, कि अब
मालिक इनके आगे नाग रगड़ेगा। इनकी खुशामद करेगा। यह सोचकर कि जैसे धन्नासेठ के खुदा
यही हो चले हैं। दंभ में बिचारे भूल गये कि, समय बलवान है। यह
भी भूल गये कि जब वक्त पलटता है, तो सोने और शिव की लंका को भी
नहीं बख्शता। रावणों की खैर कौन मनाये।
अपने सिर की ओर अचानक मालिकान की हलकान कर देने
वाली लाठी घूमी देखकर, बिचारों के सिर से तेल,
बदन से मंहगे परफ्यूम की खुश्बुएं हवा के साथ हो लीं। समझ ही नहीं आ
रहा था क्या करें, अचानक आई इस आफत से कैसे बचें? काफी माथापच्ची और सिपहसालारों से राय-मश्विरा के बाद रास्ता निकल आया। अपना
सिर (राजदीप सरददेसाई और आशुतोष गुप्ता) बचाने के लिए कुछ निरीह लोगों की "गर्दनें" तलाशीं जायें। गर्दनों की तलाश दिन-रात
शुरु हुई। गर्दनें मिल गयीं। तलाश तो कुछ ही गर्दनों की थी, मिल
गयीं 350 करीब। मतलब एक साथ अंधों के हाथ 'बटेर' नहीं 'बटेरें' लग गयीं।
सब की सब गर्दनें एक साथ उसी एचआर (ह्ययूमन
रिसोर्स) से कटवा लीं, जिसकी जिम्मेदारी थी,
मानवाधिकारों की रक्षा करना। इस्तीफों के रुप में खून सनी सैकड़ों गर्दनों
की गठरियां (फाइलें) आशुतोष गुप्ता और राजदीप सरदेसाई ने, मालिकों
के चरणों में ले जाकर रख दीं। ऐसा करते समये दोनो की नज़रें अपने ही पांवों में कुछ
तलाश रही थीं। मालिक की हंसी सुनी, तो गर्दने ऊपर कीं। डरते-डरते
मालिकों से पूछा- सर कैसा रहा...चैनल का माल (तन-खा) खाने वालों में से अचानक इतने
नाकारा साबित हो गये। सो सबको हलकान (नौकरी से बहार) कर दिया।
इतना ही नहीं मालिक को सराबोर करने के लिए आगे
पूछने लगे, 'सर इतनी गर्दनों से ही चैनल घाटे से उबर
आयेगा...या फिर कुछ और मंगायें...' सवाल का जबाब देने के बजाये
मालिक ने दोनो के हवाईयां उड़े चेहरे पढ़े और बोला...बाद में बताऊंगा...फिलहाल तुम
लोग चैनल और बिजनेस के हित में कुछ और भी माथापच्ची जारी रखो...। मालिकान की हसरतें
पूरी करके तो लौट आये, लेकिन जेहन में तमाम सवाल "फांस" की मानिंद फंसा लाये। मसलन..मालिक ने उनके
(आशुतोष गुप्ता और राजदीप सरदेसाई) भविष्य को लेकर क्लियरकट पिक्चर अभी साफ नहीं की
है। मतलब इतने लोगों की नौकरी खाने के बाद भी क्या उनकी (आशुतोष गुप्ता-राजदीप) की
नौकरी बची भी है या नहीं।
बहरहाल अपनी नौकरी बचाने के लिए जिनकी नौकरी
ली थी,
वे शरम और डर के मारे ज़मींदोज हो गये। उनकी मदद के लिए जितने संभव हो
सकते थे, उससे ज्यादा भाई लोग(पत्रकार) सड़क पर उतरे। मालिकों
को तबियत से गरियाया। खुलेआम। सड़क पर। चुनौती देकर। आशुतोष गुप्ता और राजदीप सरदेसाई
को भी ललकारा। दोनो में से कोई भी प्रदर्शनकारियों के बीच नहीं आया। शायद यही सोचकर
बाहर नहीं निकले होंगे, कि कहीं अब उनके कपड़े सड़क पर न फाड़
डाले जायें। उन्हें बाहर नहीं आना था, सो नहीं आये। एअर कंडीशन्ड
स्टूडियोज में बैठकर रंभाते-चिल्लाते रहे। दुनिया को ज्ञान बांटते रहे। डंके की चोट
पर...। नेताओं को गरियाते रहे। खुद को ज्ञानी और बाकियों को बुद्धू बनाते रहे।
अब मीडिया के ही चुगलखोरों और मठाधीशों के स्तर
से कुछ वैसी ही कथित "ब्रेकिंग" खबरें रो-चिल्ला रही हैं, जैसी बाकियों के बारे में
मीडिया अक्सर तमाम खबरे बिछाता है। सुना है कि अब राजदीप सरदेसाई और आशुतोष गुप्ता
फिर परेशान हो उठे हैं। इस बार अपनी परेशानी के लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं। उन्हें
अभी तक मालिकों ने यही साफ नहीं किया है, कि 350 घर उजाड़ने की
एवज में क्या उनकी (आशुतोष गुप्ता और राजदीप सरदेसाई) नौकरी बची है या नहीं? अब जिनकी नौकरी खानी थी, उनकी तो खा चुके। इसके बाद
भी अपनी बचने की कोई पक्की गारंटी नहीं दे रहा है। ले-देकर कल तक मालिकों की दौलत पर
मस्ती करने वाले अब यह दोनो ही प्राणी मालिकों की दौलत को लेकर ही फिर दुखी हैं। मीडिया
बाकियों के बारे में रोज-रोज जैसी खबरों को लेकर आपाधापी मचाता है, अगर उसी तरह की खबरों पर विश्वास किया जाये, तो आशुतोष
और राजदीप खुद ही नौकर खुद ही मालिक बनकर खुद से सवाल पूछ रहे हैं....350 की नौकरी
खाने के बाद अपनी बचेगी या नहीं! बताओ भला अब इसका जबाब कौन दे
इन्हें? और जो कुछ इन्होंने किया है, क्या
इसके बाद भी इन्हें अपनी नौकरी बचाने का ख्याल जेहन में आना चाहिए....कदापि नहीं वत्स..कदापि
नहीं...
No comments:
Post a Comment