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Monday 13 June 2011

जब गोद में रखी मिले "लाश" !

इसे क्या कहें ?  इत्तिफाक या साजिश !  जो पुलिस अपराध की जांच करती है, उसी पुलिस की गोद में "लाश" रखी मिल जाये । ये किसी मुंबईया फिल्म की कागज या परदे पर उतारी गयी पटकथा नहीं,  सच है । वो सच जो अब उत्तर-प्रदेश सरकार के गले की फांस बन गया है । उत्तर-प्रदेश के लखीमपुर खीरी के थाना निगहासन में 13 जून 2011 को कुछ ऐसा ही सच सामने आया । ये सच सबको दिखाई दे रहा था । राज्य के प्रशासन और पुलिस को छोड़कर । उस राज्य के प्रशासन और पुलिस को जिसकी मुखिया खुद एक महिला हैं ।

थाने में पेड़ पर लाश लटकी मिली । इसलिए उसे गायब करने के उपाय खोजना भी जरुरी थे। थानेदार लाश को गायब करने का जुगाड़ खोज पाते, उससे पहले मां-बाप ने बेटी की लाश खोज ली । थाने में मौजूद एक पेड़ पर टंगी । थाने में लाश । बात बाहर निकलनी थी । सो निकली। बात दूर तक जानी थी सो गयी । थाने में मिली लाश को पुलिस थाने से बाहर फिंकवा या गायब करा पाती, उससे पहले ही जागरुक और पुलिस से पीड़ित जनता ने लाश को कब्जे में ले लिया । जबकि लाश कब्जे में लेनी पुलिस को चाहिए थी । लेकिन ऐसा नहीं हो सका । पुलिस की लापरवाही और जनता की तत्परता से ।

थाने में लटकी मिली लाश पर बबाल होना था । सो हुआ । लोगों ने थाना घेरा । तो थाने को सुरक्षा के लिए पुलिस ने चारो ओर से घेर लिया । लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गयी । ये कहकर कि मामले की जांच की जा रही है। लाश का पोस्टमार्टम किया जाना भी जांच का ही एक हिस्सा है । पोस्टमार्टम वो ही पुलिस करा रही है, जिस पुलिस के थाने में लाश लटकी हुई मिली ।

मजबूर हो गयी थी, मानवता । और भारी हो गयी थी क्रूरता । इसीलिए तो लड़की को मारकर थाने में टांग दिया गया था। उस थाने में, जिसकी देहरी पर हर कोई पीड़ित पहुंचता है, न्याय की मांग की गुहार करने या गुहार लेकर । जिसे बे-मौत मरना था, सो मर गयी । जिसका घर-बार उजड़ना था, उसका परिवार उजड़ गया । जिसने मारना था, उसने मार डाला । ये सब क्यों हुआ ? इस सवाल का जबाब है उसी के पास जिसने ये सब किया ।

सवाल ये है कि आखिर थाने में लाश क्यों और कैसे ? थाना तो इलाके में मिली लाशों की जांच-पड़ताल करता है । ये पता लगाता है कि आखिर जुर्म हुआ क्यों और कैसे ?  पुलिस सजा दिलाती है जुर्म करने वाले को । यहां तो जुर्म करने वाली भी पुलिस है । और इस जुर्म की जांच करने वाली भी पुलिस है । सवाल पैदा होता है, कि क्या ऐसे में पुलिस वाले अपने ही पुलिस वालों को पकड़ेंगे ?  अगर पकड़ेंगे,  तो इस बात की क्या गारंटी, कि अपने अपनों को बचाने के रास्ते नहीं बनायेंगे ?

कोई गारंटी नहीं किसी बात की । अंदेशा तो इस बात का भी नहीं रहा था, कि थाने में लाश मिल जायेगी । ये देश के सबसे बड़े सूबे में घटी घटना है । बलात्कार के बाद एक लड़की की हत्या कर लाश थाने में टांग देने की घटना । उस थाने में, जिस पर टंगी होती है, लोगों को सुरक्षा की "गारंटी" । जिस सूबे के थाने में घटना घटी, उस सूबे में भीड़ भी बहुत है । इसलिए शोर भी ज्यादा होना लाजमी है ।

थाने में टंगी मिली लाश को लेकर संभव है, कि आज हो रहा शोर कल भीड़ में ही खो जाये । ऐसा ही होता भी है । जांच होगी । जांच रिपोर्ट भी आयेगी । संदिग्ध आरोपी एक दारोगा और दो सिपाहियों पर आपराधिक मामला भी दर्ज कर लिया गया है । देर-सवेर उनके साथ क्या होगा,  फिलहाल किसी को नहीं मालूम । इस मामले में जितना गंभीर ये है कि थाने में लाश मिली । उससे ज्यादा गंभीर है, एक उस बालक की रक्षा करना, जो इस बलात्कार और क़त्ल का गवाह है । जिसने पुलिस वालों से पूछा था कि उन्होंने लड़की को क्यों मार डाला ?  लेकिन इसकी गारंटी कौन लेगा ?  जिस पुलिस के थाने में बलात्कार के बाद लड़की की लाश टांग कर पुलिस वाले सो जाते हैं, उसी थाने के पुलिस वालों के खिलाफ गवाही देने वाला मासूम अदालत में एक लाश को न्याय दिलाने के लिए जिंदा रह पायेगा ?

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