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Friday 17 June 2011

हे बाबा! तुम तो "बम" हो गये




एक ओर अकेले बाबा (रामदेव).... दूसरी ओर पूरी सल्तनत (सरकार)। फिर भी बाबा है, कि सरकार के लिए 'बम' साबित हो रहे हैं। कल तक बाबा के दवाखानों, दवा-कारखानों में जानवरों की हड्डियों के इस्तेमाल का शोर मचाया जा रहा था। देश में कई जगह बाबा और उनकी दवाइयों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन हुए। मुद्दा संसद में गूंजा। सरकार को समर्थन देने वाले कुछ दल और उनके कारिंदे डटे हुए थे। बाबा की गिरफ्तारी की मांग पर। बाबा के दवाखाने बंद कराने पर उतारु थे। समय बाबा के साथ था। एक मुसीबत आयी, तो उससे बचने के दो रास्ते भी निकल आये। बाबा और उनकी दवाईयां 'सर-ए-बाजार' नीलाम होने से बच गयीं। या यूं कहें कि बाबा की आबरु 'बे-परदा' होने से बच गयी। चीखने-चिल्लाने वाले भी हार-थककर शांत हो गये। बाबा की दुकान जैसी पहले चल रही थी, विरोध के बाद और जोर-शोर से चलने लगी। यानि बे-वजह की 'पब्लिकसिटी' फोकट में हो गयी। बाबा और उनकी दवाओं की।

समय पलटा। अब बाबा ने 'सल्तनत' और उसके 'कारिंदों' (मंत्रियों) की नींद उड़ा रखी है। एक अकेला बाबा, देश की पूरी सल्तनत पर भारी पड़ गया है। सरकार के कारिंदों को पसीना आ रहा है। उनके गले सूख रहे हैं, लेकिन पानी है, कि गले से नीचे उतरने का नाम नहीं ले रहा। एक अकेले उसी बाबा के चलते, जिसके खिलाफ कल तक धरना-प्रदर्शन हो रहे थे। पहले अकेले बाबा को लपेटा गया था। इस बार अकेले बाबा ने सबको (सरकार और सरकारी व्यवस्था को) लपेट लिया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलकर। सल्तनत की नाक के नीचे (दिल्ली के रामलीला मैदान में) बाबा ने 'तंबू' तान दिया है। बाबा और उनके समर्थकों के मुताबिक इस मुहिम में तंबू के नीचे देश का हर नागरिक शामिल होगा। हर कौम से, हर उम्र का।

बाबा की ये मुहिम अभी अंजाम तक पहुंची भी नहीं, कि सल्तनत पहले ही पसीने से तर-ब-तर हो गयी। हाथ-पांव फूल गये। सोचने-समझने की ताकत खतम हो गयी। सो अंधत्व को प्राप्त सरकार ने अपने चार खास कारिंदे बाबा को शांत करने के लिए रवाना कर दिये। एअर कंडीशन की ठंडक से दूर । जून की तपती दोपहरी में हवाई-अड़्डे पर बाबा को ठंडा करने के लिए। कुछ एअर कंडीश्नर से दूर होने के चलते और कुछ बाबा के करीब पहुंचने के कारण पैदा हुई गर्मी ने सरकारी कारिंदों (मंत्रियों ) के दिमाग पर ऐसी सवारी की, कि बदहवास मंत्री-लोग बाबा के चरणों में 'शीर्षासन' करने लगे। भूल गये कि वे सल्तनत के कारिंदे हैं। उनका भी अपना एक रुतबा है। बाबा कोई बद-दिमाग या कम-दिमाग तो थे नहीं। अपने कारखानों में बनी दवाईयां खाते हैं। सो हमेशा दिमाग ठंडा रहता है। या यूं कहें कि बाबा ठंडे दिमाग से काम लेने में विश्वास रखते हैं।

वे दवाईयां जिनमें जानवरों की हड्डी इस्तेमाल करने की बात पर बीते कल में सल्तनत को सहयोग करने वाले लोग सड़क से संसद तक 'चिल्ल-पों' मचा रहे थे। आज उन्हीं के संगी-साथी बाबा के चरणों में 'शीर्षासन' और 'दण्डवत' कर रहे हैं। बाबा और उनकी चिरौरियां कर रहे हैं- बाबा भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में गाड़ा गया अपना तंबू आप खुद ही उखाड़ लो। इससे हमारी 'बेइज्जती' हो रही है। वोटरों के सामने हमें और हमारे नंबरदार (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) को मुंह दिखाते नहीं बन रहा है। आप जैसे कहेंगे, हम वैसे ही 'भ्रष्टाचार' मिटा देंगे। आप आज कहें, तो हम आज से ही भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान शुरु कर देंगे। 'फाइलों में।'

बाबा ने देखा लोहा गरम और पासा 'फेवर' में है। सो उन्होंने सरकारी कारिंदों को फिर आड़े हाथ लेकर 'दांव' चल दिया। बाबा बोले- 'मेरे तंबू के नीचे भ्रष्टाचार मिटाने और भगाने वाले ही नहीं, उनके खिलाफ भी जंग का ऐलान हो चुका है, जो गरीबों का धन विदेशी बैंकों में जमा करने के बाद, गरीबों की ही छाती पर मूंग दल रहे हैं।' बस फिर क्या था, मंत्रियों की सिट्टी-पिट्टी गुम। बिचारे मंत्री जी फिर हडबड़ा गये। हड़बड़ाहट में खुद ही बड़बड़ा उठे- 'बाबा क्या कलमाड़ी, राजा जी, मैडम कनीमोझी और हसन अली की तरफ आप इशारा कर रहे हैं? ' जबाब में बाबा होंठों ही होंठो में कुटिल मुस्कान मुस्काये। काली स्याह दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोले- 'समझदार तो काफी हो, फिर बेबकूफों वाली बात क्यों करते हो वत्स?'

अपनी पर उतरे बाबा को न पिघलना था। न पिघले। मंत्रियों की तमाम 'चिरौरियां' बाबा पर 'बे-असर' साबित हुईं। रोते-पीटते 'मंत्री-लोग' अपने नंबरदार (प्रधानमंत्री) के चरणों में पहुंचे। नंबरदार को न कुछ बोलना था। न बोले। चश्मे में से एक नज़र पैरों में बिलखते मंत्रियों पर डाली। अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरा। होठों ही होठों में रोते-बिलखते मंत्रियों की ओर देखकर हंसे और कार में बैठकर अज्ञात स्थान की ओर चले गये। दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते करके।

होश आया, तो मंत्रियों ने खुद को मम्मी (सोनिया जी) की गोद में पाया। मम्मी उनकी आंखों की कोरों पर लटके आंसू पोंछ रही थी। मम्मी ने दुलार देकर और सिर पर हाथ फेरकर कुशल-क्षेम पूछी। मम्मी को जबाब मिला- 'बाबा है कि मानता नहीं। क्या तंबू उखड़वा दें?' मम्मी ने लड़ैतों (बाबा की मान-मनुहार करने गये मंत्रियों) की ओर देखा और बोलीं- 'बाबा का तंबू उखड़वाने की बाद में सोचना। पहले मेरा-अपना तंबू मजबूती से लगाये रखने के बारे में सोचो। इस बाबा के तंबू को उखड़वाने के इंतजाम में खुद का तंबू उखड़ने की नौबत आ गयी है।

पहले अन्ना, 'बन्ना' और भ्रष्टाचार के विरुद्ध स्व-रचित 'लोकगीत' गाने जंतर-मंतर पर जा बैठा। अब बाबा ने मैदान में तंबू लगा दिया। बाबा का तंबू तो बाद में भी उखड़वा लेंगे। अगर अपना तंबू (सरकार) बचा रहा तो। पहले ये देखो कि, कहीं तिहाड़ जेल से कलमाड़ी, राजा, कनिमोझी और मुंबई की जेल से निकलकर हसन अली बाबा के तंबू के नीचे पहुंचकर काला-धन (ब्लैक-मनी) विदेश से वापस मंगाने की जिद पर न अड़ जायें।'

इतने में सुरक्षा में डटे पसीने से पानी-पानी हुए पड़े एसपीजी (स्पेशल प्रोटक्शन ग्रुप) के कुछ जवान मम्मी (सोनिया जी) के करीब आये। और बोले मीटिंग की जगह यहां से तुरंत बदल दीजिए। कुछ ही देर में बाबा (रामदेव) यहां पहुंचने वाले हैं। आशंका है कि बाबा कहीं 'बम' न बन जायें। और आपकी जान खतरे में पड़ जाये। बात लाख टके की थी। सो बिना वक्त गंवाये बच्चों को बिलखता छोड़कर मम्मी चल दीं, 'अज्ञात' स्थान की ओर। ये सोचकर कोई मरे या जीये, हमारी बला से। बाबा के तंबू के नीचे हसन अली बैंठें या कलमाड़ी और राजा जी की जोड़ी। सबसे निपट लेगी स्काटलैंट पुलिस की तर्ज पर काम करने में माहिर हमारी स्मार्ट दिल्ली पुलिस।

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