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Saturday 18 June 2011

मनमोहन सिंह और मतदाता के बीच चिट्ठी-पत्री

लाठी चली नहीं,  बदन "लाल" हो गये !

मेरे प्यारे मतदाताओ,
भ्रष्टाचार भगाने और काले-धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की मांग बाबा रामदेव, अन्ना हजारे कर रहे हैं । मुसीबत और फजीहत सरकार की हो रही है । आप खुद सोचो, “बिचारी-सरकार” क्या कर सकती है? सिर्फ एक दिन में । उस हालत में, जब भ्रष्टाचार सरकार से लेकर संतरी तक के खून में फैल चुका हो । बुढ़ापे की थकान से बेखबर, पहले अन्ना हजारे जंतर-मंतर पर जा जमे । अब मैदान में बाबा ने “रामलीला” शुरु कर दी । एक आफत हो तो निपटें । एक के बाद दूसरी आफत खड़ी है। बताओ भला कोई तुक है? सरकार चलाऊं या बाबा की रामलीला देखूं और अन्ना के भजन सुनूं?
जबाब के इंतजार में,

तुम्हारा,


मनमोहन सिंह
मतदाता का जबाब
परम पूज्यनीय
श्रीमान मनमोहन सिंह जी,
बिल्कुल सही । आपकी परेशानी से मैं आहत हूं। समझ रहा हूं आपकी टीस को । भले ही ये चिट्ठी आप रहे लिख रहे हों । मनमोहन जी इस चिट्ठी को लिखने वाली कलम आपकी हो सकती है । लेकिन जिन उंगलियों के बीच फंसी है, वे आपकी कतई नहीं हो सकती हैं । उंगलियां तो आपकी “गॉड-मदर” (सोनिया जी) की ही हैं।

सोचने वाली बात है, कि आप “कुर्सी” की खातिर देश को दांव पर लगाने में शर्म नहीं खा रहे हैं । बाबा या अन्ना भ्रष्टाचार और काले धन पर जुबान खोलने की जुर्रत करें, तो उन्हें सड़क पर बोलने की भी इजाजत नहीं । आपके विश्वासपात्रों ने अन्ना को समझा-बुझाकर जंतर-मंतर पर पानी पिलवाकर उठवा लिया । या यूं कहें कि जूस पिलवाकर अनशन तुड़वा दिया ।
मैदान में रामलीला कर रहे बाबा के तेवर तीखे थे । सो मनमोहन जी आपकी “मोहिनी” बानर-सेना (प्रणव मुखर्जी, कपिल सिब्बल, पवन बंसल, सुबोधकांत सहाय, पी. चितंबरम) ने पहले तो बाबा को घुड़कियों से काबू करना चाहा । घुड़कियां बे-असर रहीं, तो आपकी बानर-सेना ने समुद्र-मंथन की ही साजिश रच डाली । ये सोचकर कि देखें आखिर बाबा कैसे काबू नहीं होता? सो आपके सिपहसलारों ने दिन के उजाले में बाबा से समझौता कर लिया । जैसे ही रात हुई, बाबा को अपने बंदरों (दिल्ली पुलिस के जवानों) से नुचवा डाला । नुचवाया ही नहीं । सोते हुए बाबा और उनके चहेतों पर आधी रात को चारों ओर से घेरकर हमला भी बोल दिया ।


आंसू गैस के गोले छुड़वा कर भगदड़ मचवा दी। क्या बूढ़ा, क्या बच्चा, क्या आदमी और क्या औरत । सबको चटवा दी आधी-रात को धूल। सरकार आपकी । बानर सेना आपकी। सो दिल्ली के रामलीला मैदान में पिटने वाले चिल्लाते रहे। उनकी चीखें किसी को सुनाई न दें। इसलिए कानफोड़ू आवाज करने वाले आंसू गैस के गोले दगवाकर, जनता की दिल दहला देने वाली चीख-पुकार को ज़मींदोज़ कर दिया गया ।

सरकारी लाठी-डंडों की मार खाये लोग कहीं और जाकर ज्यादा “चूं-चपड़” न करने पायें । इसलिए पास के ही सरकारी अस्पताल में फिंकवा दिया गया। दिल्ली पुलिस की जिप्पसियों में लदवाकर। इलाज के बहाने। आप और आपकी सल्तनत सोच रही थी, कि रात के अंधेरे का सच, “अंधेरे” में ही गुम जायेगा। आप और आपकी वानर सेना भूल गयी, कि रात के बाद सुबह भी होगी। वो सुबह, जिसे न आप रोक सकते हैं, न आपकी गॉड-मदर या आपकी सरकार। बस आपकी यही सोच, आपको ले डूबी ।

रात के बाद दिन निकलना था । सो निकल आया। रात के अंधेरे में आपके अपनों द्वारा “कुटे-पीटे” लोगों की कराहटें, दुनिया-जहां को सुनाई देनी थीं। सो सुनाई दे गयीं। अब आपको और आपके कारिंदों को दिन में ही रात नज़र आने लगी। शायद इसे ही कहते होंगे- समय, समय का फेर । कभी नाव पानी में, और कभी पानी नाव में । रात के अंधेरे में आपने जो करवा डाला, दिन के उजाले में उसके लिए आपको “मुंह-दिखाते” नहीं बन रहा था। आखिर ऐसा काम ही क्यों करते हो? जिससे मुंह छिपाना हो। दिल्ली के रामलीला मैदान में रातभर आपके “विश्वासपात्रों” ने कहर बरपाया। दिन निकला तो देश की जनता ने आप पर “हल्ला” बोल दिया।

आधी रात को रामलीला मैदान में आंखें मीचे (बंद किये) दिल्ली पुलिस के जो कमिश्नर साहब सिर पर हैलमेट चढ़ाये बे-गुनाहों पर आंसू-गैस छुड़वा कर लट्ठ चलवा रहे थे । दिन के उजाले में उन्हें भी अचानक आंखों से दिखाई देना शुरु हो गया । जब न्यूज-चैनलों पर रात भर रामलीला मैदान में पुलिस द्वारा की गयी “तांडव-लीला” का सीधा प्रसारण होने लगा। खाकी की तांडव लीला का यही सीधा-प्रसारण ऐसा तुर्प का पत्ता साबित हुआ, जिसने सब-कुछ उलट-पलट दिया। आनन-फानन में दिल्ली पुलिस मुख्यालय में “नारद-वार्ता” (प्रेस-कांफ्रेंस) बुलवाई गयी। “रात के सच” को “दिन में झूठ” करार देने के लिए।

मनमोहन जी आपके दिल्ली पुलिस मुख्यालय में आपकी पुलिस द्वारा समझाया गया- “देखिये रात को जो कुछ हुआ था, वो सच नहीं था। जो कुछ दिन में आप लोग (देश की जनता) देख रहे हैं, वो सब ड्रामा है । बाबा की रामलीला में न तो “लाठी फेरी गयी” और न ही “गोलियां और बम” (आंसू गैस के गोले) दागे गये।

इसके बाद भी पता नहीं रामलीला मैदान में क्यों बाबा राम देव कूद पड़े अचानक मंच से पब्लिक के ऊपर ? क्यों अचानक चैन से सो रही जनता में मच गयी चीख-पुकार ? क्यों आधी रात को पुलिस कमिश्नर बीके गुप्ता को सिर पर हेलमेट तानकर जाना पड़ गया पब्लिक के धक्के खाने को रामलीला मैदान में अच्छी खासी आराम की नींद छोड़कर ?

न मालूम क्यों नोच डाले पंडाल में मौजूद गुस्साई महिलाओं ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त दिनेश गुप्ता की वर्दी पर लगे बिल्ले ? कैसे चुटहल हो गये दिल्ली पुलिस के कर्मचारी और कुछ आम-आदमी ? पता नहीं कैसे और क्यों दर्ज करानी पड़ी दिल्ली पुलिस को कमला मार्केट थाने में दंगे की एफआईआर ? पुलिस ने पंडाल में सोते हुए लोगों पर लाठी-डंडे कुछ भी नहीं बरसाये, फिर भी पता नहीं कहां से मीडिया वालों ने मैदान में दर्द से कराहते लोगों को कैद कर लिया अपने लाल हुए बदन, फूटे सिर, टूटे हाथ-पांव को दिखाते? बाबा को तो खतरा था, इसलिए पुलिस उन्हें सुरक्षा देने गयी थी, पता नहीं किसने बाबा पर छोड़ दिया लट्ठ (लाठी) और बाबा भाग खड़े हुए मैदान छोड़कर, महिला का रुप धरकर? ”

मनमोहन जी मैं न तो आपकी सरकार का मंत्री हूं । न मंत्री बनने की तमन्ना रखता हूं। न ही अपनी इतनी औकात है। न ही मैं बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जी का भक्त । मैं तो इस देश का “बद-नसीब” नागरिक या एक मतदाता भर हूं। बदनसीब इसलिए हूं, कि जिस देश का मैं नागरिक हूं, उस देश के आप प्रधानमंत्री हैं। और आप जैसे सभ्य, सुशील काबिल, उच्च शिक्षा प्राप्त सुलझे हुए पीएम की “गॉड-मदर” सोनिया जी हैं ।

अगर आपने अपने मतदाता के नाम चिट्ठी न लिखी होती, तो शायद मेरी इतनी जुर्रत भी न होती, कि आपको “सवालों” से भरा ये “जबाबी-खत” लिखता । आपने मतदाता को चिट्ठी लिखी, उसका जबाब आपके मतदाता ने लिख दिया । बड़ा ही बचते-बचाते। अपनी खैर मनाते हुए। न मालूम आपकी गॉड-मदर और आपके विश्वासपात्रों को आपकी इस चिट्ठी के लिखे गये जबाब में कौन सी चीज “नागवार” गुजर जाये। और आप अपनी “बानर-सेना” से मुझे और मेरे परिवार को उठवा लें- आधी रात को सोते समय। दिल्ली के रामलीला मैदान की उस काली रात का खौफ दिखाकर डराने के लिए, जहां लाठी चली नहीं, और बदन लाल हो गये।

आपसे दु:खी आपका मतदाता

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