उनकी बर्बादी, हमारी "खबर"
जापान में जलजले और सूनामी से तबाही मच गयी। क्या इंसान-इमारत और क्या जहाज-हवाई जहाज। सब एक संग उड़, जल और बह गये। सबका अस्तित्व एक साथ समाप्त हो गया। क्या लोहा और क्या इंसान। जलजले और सूनामी की मार ने सबकी बेबसी कर दी एक सी। जापान ने जिन परमाणु संयंत्रों को खुद की हिफाजत और दुश्मन की तबाही के लिए जमीन के भीतर (गुप्त स्थानों) सहेज कर रखा था, सूनामी और जलजले के लंबे हाथ और तेज नज़रें वहां भी जा पहुंची।
बिना किसी से पता पूछे। कहने का मतबल ये कि जमीन में छिपाकर रखे गये परमाणु संयंत्र आग की चपेट में आकर रेडियेशन फैलाने लगे। और अपनों के लिए ही 'काल का गाल' बन गये।
ये कहकर मुसीबत की इस घड़ी में मैं जापानियों की हंसी या मखौल नहीं उड़ा रहा। सबकी तरह मैं भी दु:ख की इस घड़ी में जापान और वहां की जनता के ही साथ हूं। मुझ पर, हम पर या फिर किसी पर भी और कहीं भी-कभी भी ऐसी मुसीबत पड़ सकती है। ये तो थी, कम शब्दों में अत्याधुनिक तकनीक हासिल करने वाले देश जापान की एक बार फिर विनाश की तबाही की कहानी। जिसे देखकर दुनिया थर्रा उठी है। वो कहानी, जिसे लिखा प्रकृति ने। भोगेगा जापान और वहां की जनता। सुनेंगी और पढ़ेंगी आने वाली पीढ़ियां। जैसे आज हम किताबों में पढ़ते हैं, नगासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम की तबाही का इतिहास।
जापान में आज के जलजले-सूनामी और बीते कल की जापान की तबाही में फर्क है तो इतना, कि उस वक्त सिर्फ इंसान और जानवरों की जिंदगियां गयी थीं। अब इंसान के साथ-साथ आने वाले कल की पीढ़ियों के लिए सहजकर रखी गयी धरोहरें भी खत्म हो गयीं।
छोड़िये भी। सूनामी और जलजला जापान में। तबाही जापान की। मैं बे-वजह ही माथा-पच्ची करके आपका और अपना वक्त जाया करने लगा। हमारे यहां हसन अली, पीजी थॉमस, 2-जी स्पेक्ट्रम, बोफोर्स, भोपाल गैस-कांड.. गोधरा। ये सब जापान के जलजले और सूनामी से क्या कम हैं? जापान में एक जलजला और सूनामी। हमारे यहां जिधर नज़र उठाओ, उधर ही जलजला और सूनामी।
जापान के जलजले और हमारे यहां के जलजले में बस थोड़ा ही तो फर्क है। जापान के जलजले ने तुरंत असर दिखाकर दुनिया की रुह कंपा दी। हमारे यहां के जलजले धीरे-धीरे 'जलवा' दिखाकर हमारी आने वाली पीढ़ियों की जड़ें खोद रहे हैं।
जापान की सूनामी और जलजले से मुझे उम्मीद बंधी थी। उम्मीद ही नहीं बंधी, बल्कि यकीन था खुद पर, कि इस बार छोटे भारतीय समाचार डिब्बे यानी 'न्यूज-चैनल' जापान की तबाही से कुछ न कुछ जलजले का जलवा जरूर 'कैश' (टीआरपी के रुप में) करेंगे। मसलन- ब्रेकिंग न्यूज के मामले में या फिर दिन भर एक्सक्लूसिव खबर को बार-बार दिखा और रगड़कर। दिल को बड़ी ठेस पहुंची। ऐसा कुछ नज़र नहीं आया। या यूं कहूं अपनी सोच पर और खुद पर कोफ्त हुआ। छठी इंद्री खुली तो समझ आया, जरुरी तो नहीं कि सब न्यूचैनल मेरी मर्जी के मुताबिक ही चलें। अपना पैसा, अपना चैनल, अपना धंधा।
जापान के जलजले को नहीं कर पाये कैश। नहीं लगा पाये दिन-रात ब्रेकिंग का रट्टा। नहीं जुटा पाये हर बुलेटिन में जापान के जलजले पर एक्सक्लूसिव। बताओ मैं क्या कर लूंगा? किसी न्यूज चैनल का। फालतू में किसी के फटे में टांग फंसाने पर तुला बैठा हूं। जापान के जलजले में अगर बह गयी भारत की ब्रेकिंग और एक्सक्लूसिव की उम्मीद, तो उससे भला मुझे क्यों तकलीफ होने लगी? दूसरे- अपने दिल को समझाने का मैंने खुद ही रास्ता भी खोज लिया। ये सोचकर कि जब जापान के जलजले पर अपना (भारतीय न्यूज चैनल) कुछ था ही नहीं, तो बताओ भला हमारे छोटे समाचार डिब्बे एक्सक्लूसिव और ब्रेकिंग प्लांट भी क्या करते और आखिर कब तक और कैसे? बात भी सही है। दूसरे देश की तबाही। उनका दर्द, उनकी संवेदनायें। शायद इसीलिए हमारे ब्रेकिंग के धुरंधरों ने बैकफुट पर आने में ही अपनी भलमनसाहत समझी। इस तर्क के साथ, कि भारतीय न्यूज चैनलों ने जितना दिखा दिया, जापान की जनता और वहां की सरकार उसे ही खुद पर हमारा (भारतीय न्यूज चैनल) अहसान समझें। जापानी ये न समझे कि हमारे पास जापान के जलजले और सूनामी की ब्रेकिंग या एक्सक्लूसिव खबरों का अकाल पड़ गया या फिर ब्रेकिंग खबरें हमें नसीब ही नहीं हुईं (खुद का मन समझाने के लिए)।
क्या ये कोई कम बड़ी बात है या क्या ये जापान पर हमारे टीवी चैनलों का कोई कम अहसान है, कि जापानी चैनलों का फुटेज भारतीय न्यूज चैनलों ने जितना हो सकता था, उतना दिखाया। यानी तेरा तुझको अर्पण। ये अलग बात है, कि ब्रेकिंग और एक्सक्लूसिव की कमी और उसका जुगाड़ करने की भागमभाग में किसी भी जापानी चैनल के फुटेज पर 'सौजन्य' (उस चैनल का नाम जिससे फुटेज का जुगाड़ किया) नहीं दर्शा सके। या यूं कहें कि नहीं दर्शाया। शायद ये सोचकर सौजन्य नहीं लिखा होगा, कि हम जापान पर उनकी त्रासदी की खबर दिखाकर 'अहसान' कर रहे हैं।
क्या ये कोई कम बड़ी बात है या क्या ये जापान पर हमारे टीवी चैनलों का कोई कम अहसान है, कि जापानी चैनलों का फुटेज भारतीय न्यूज चैनलों ने जितना हो सकता था, उतना दिखाया। यानी तेरा तुझको अर्पण। ये अलग बात है, कि ब्रेकिंग और एक्सक्लूसिव की कमी और उसका जुगाड़ करने की भागमभाग में किसी भी जापानी चैनल के फुटेज पर 'सौजन्य' (उस चैनल का नाम जिससे फुटेज का जुगाड़ किया) नहीं दर्शा सके। या यूं कहें कि नहीं दर्शाया। शायद ये सोचकर सौजन्य नहीं लिखा होगा, कि हम जापान पर उनकी त्रासदी की खबर दिखाकर 'अहसान' कर रहे हैं।
और फिर ऐसे में कौन सा कोई जापानी चैनल 'कॉपी-राइट' के तहत हम पर मुकदमा ठोकने भारत आ रहा है। अपनी त्रासदी से जापान पहले निपटेगा, कि हम पर बिना सौजन्य के फुटेज इस्तेमाल करने की मुकदमेबाजी में वक्त बर्बाद करेगा। वो जापान जहां इंसान, विज्ञान और तकनीक सब कुछ एक साथ या तो आग में स्वाहा हो चुके हैं, या फिर तूफान और पानी में उड़-बहकर जमींदोज हो चुके हो।
त्रिपोली-मिस्र में जनता सड़कों पर उतर आयी। कुछ देशों के न्यूज चैनल दोनों जगह पहुंच गये। ऐसे में हम पीछे कैसे रह पाते। मसला यहां भी ब्रेकिंग, टीआरपी और एक्सक्लूसिव का ही था। लिहाजा जिस समाचार चैनल की जैसी हैसियत खर्च करने की थी, हमारे देश के उस न्यूज चैनल ने अपने कुछ उन 'खास-वरिष्ठों' को त्रिपोली, मिस्र में कवरेज के लिए रवाना कर दिया।
चैनल के खर्चे-खाने पर, जो लंबे समय से देश के किसी गांव में भूख और कर्ज से मरने वाले किसी किसान या गरीब की मौत पर 'लाइव-कवरेज' के लिए मई-जून की तपती धूप या फिर दिसंबर-जनवरी की हाड़तोड़ (शीतलहर) ठंड में लंबे समय से नहीं गये होंगे। शायद इसलिए, क्योंकि ऐसी खबरें इन वरिष्ठों की नजर में 'छोटी' और टीआरपी-लैस हैं। या यूं कहें कि ऐसी घटनाओं की लाइव-कवरेज से उनकी तौहीन होती है। त्रिपोली और मिस्र की कवरेज से तो आगे की नौकरी का 'रिज्यूम' (बायोडाटा) ही बदल जायेगा। भले ही त्रिपोली और मिस्र में उन्हें वहां की सेना ने सीमा-रेखा पर ही रोक लिया हो, या होटल के किसी कमरे में बंद कर दिया हो। भला ये कहने वाला मैं कौन होता हूं? त्रिपोली और मिस्र गये भारतीय समाचार चैनलों के ज्यादातर वरिष्ठ खबरनवीस खुद ही अपने-अपने चैनलों पर चीख और चिल्ला-चिल्ला कर बता रहे थे।
फिर वही जापान के सूनामी और जलजला की बात। वहां की बर्बादी का 'लाइव' (सीधा प्रसारण) करने के लिए किसी भी भारतीय न्यूज चैनल ने रुख नहीं किया। अब ये कहना तो ठीक नहीं होगा, कि जापान में तबाही के मंजर की तस्वीर को लाइव दिखाने में मशक्कत ही नहीं, जिंदगी और मौत का भी सवाल था। ऐसे में भला उधर का रुख कौन, क्यों और कैसे करता? छोड़ो भी एक ब्रेकिंग नहीं जायेगी, तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? जिंदगी से बढ़कर भी भला कोई नियामत हो सकती है? जान है तो जहान है। और फिर अभी-अभी तो लौटे हैं त्रिपोली और मिस्र की सीमा-रेखा से लाइव-कवरेज करके। उसकी थकान भी तो नहीं उतरी है अभी तक।
वैसे भी हर बात को नकारात्मक रुप में ही नहीं देखना-सोचना चाहिए। जापान की सी त्रासदियां, जलजला-सूनामी जैसी प्राकृतिक आपदायें तो फिर भी दुनिया में होती-आती-जाती रहेंगी। फिर कभी उनका लाइव-कवरेज करके दे देंगे- ब्रेकिंग और एक्सक्लूसिव। कोई वेद-पुराण, ग्रंथों में तो लिखा नहीं है, कि लाइव कवरेज और ब्रेकिंग या एक्सक्लूसिव की खातिर जापान के जलजले में ही जान देने से ही टीवी पत्रकार के धर्म की रक्षा होगी।
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