अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश पर जूता फेंकने के बाद, बगदादिया न्यूज़-चैनल के पत्रकार मुंतज़र अल ज़ैदी पहली बार मई 2011 में भारत आये । नई दिल्ली पहुंचने पर मुंतज़र राजघाट स्थित महात्मा गांधी (बापू) की समाधि पर गये । ज़ैदी के साथ भारतीय फिल्म निर्माता / निर्देशक महेश भट्ट भी थे । ज़ैदी से हुई विशेष-बातचीत का आखिरी भाग...
ज़िंदगी की सबसे मुश्किल रात थी वो : मुंतज़र
संजीव- जॉर्ज बुश को जूता मारने की नौबत क्यों आई?
ज़ैदी- जिस चीज ने गांधी जी को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ आंदोलन के लिए प्रेरित किया था, मेरा भी ऐसा ही उद्देश्य था। नाइंसाफी और ज़ुल्म के खिलाफ लड़ाई मेरा मकसद था।
संजीव- बुश पर जूता तैश में आकर फेंक दिया या भावनाओं में बहकर?
ज़ैदी- प्रेस-कांफ्रेंस की खबर मिलते ही, मैंने जूता मारने की प्लानिंग की थी। मैं दुनिया को बताना चाहता था कि यूएस (अमेरिका) ऑक्यूपेशन फोर्सेज का स्वागत फूलों से नहीं किया गया। उन्हें जूतों से सलामी दी।
संजीव-जूता मारने के बाद जब पकड़े गये, उसके बाद जेल जाने तक क्या-क्या हुआ?
ज़ैदी- जब मुझे अरेस्ट किया गया, तो उन्होंने मेरे दांत तोड़ डाले। नाक तोड़ दी। दोनों पांव तोड़ दिये। इलेक्ट्रिक-शॉक दिये गये। कड़ाके की ठंड थी। फिर भी ठंडे पानी से टार्चर किया गया। पूरे बदन से खून टपक-बह रहा था। तीन महीने तक अंधेरी कोठरी में रखा गया।
संजीव- फिर....आप डर गये होंगे !
ज़ैदी- अगर दिल में डर होता, तो फिर जूता कैसे फेंक पाता? मेरे ऊपर प्रेशर बनाया गया, कि मैं जूता फेंकने के जुर्म में मांफी मांग लूं । मैंने माफी नहीं मांगी।
ज़ैदी- जिंदगी की सबसे मुश्किल रात थी वो। पहली रात जेल में न ले जाकर, किसी सूनसान जगह पर ले गये थे। वहां प्राइम-मिनिस्टर के सिक्योरिटी गार्ड भी थे। लेट नाइट तक वहां टार्चर किया गया। वे कहते जुर्म कबूल लो। बख्श देंगे। वरना ज़हन्नुम में भेज देंगे।
संजीव- पकड़े जाने वाली रात किसकी याद सबसे ज्यादा आई?
ज़ैदी- घर वालों की।
संजीव- गांधी कब और कैसे याद आये?
ज़ैदी- मैंने गांधी को उस वक्त पढ़ा था, जब मेरी उम्र सिर्फ सोलह-सत्रह साल रही होगी। मैं उनके (गांधी) आज़ादी के लिए किये गये संघर्ष के तरीके से प्रभावित था और हूं ।
संजीव- गांधी में क्या खास नज़र आया?
ज़ैदी- गांधी जी आजादी के नुमाइंदे और आइकॉन थे।
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