संजीव- एक पत्रकार ने तो भारत के गृहमंत्री पर ही जूता फेंक दिया । यानि आपके द्वारा दिया गया “जूता-कल्चर” दुनिया फालो कर रही है?
ज़ैदी- हर किसी पर जूता फेकेंगे, तो जूते की मार की चोट कम हो जायेगी। जब तक आप पर, आपके देश और आपके समाज पर कोई बम-गोली न बरसाये, तब तक जूता न उठायें। जो जूते के लायक है, उसे जूता दें और जो गुलदस्ते के काबिल है, उसका इस्तकबाल गुलदस्ते से करें।
संजीव- आपने बुश पर जूता फेंका ।इसके बाद बगदादिया चैनल का आपके प्रति क्या रवैया था ?
ज़ैदी- सब खुश थे । जब तक मैं जेल में रहा उतने समय (करीब नौ महीने) की मेरी तनख्वाह घर भिजवाई गयी। चैनल की तरफ से मुझे रहने के लिए फ्लैट भी दिया गया ।
संजीव- दुनिया में “जूता-कांड” के बाद आप इराक के हीरो बन गये । फिर भी आपको वीजा किसी अरब या यूरोपीय देश ने नहीं दिया, सिवाये भारत के?
ज़ैदी- सबका निजी मामला है। लेकिन भारत ने मुझे वीजा देकर साबित कर दिया, कि उसे किसी का डर नहीं है।
संजीव- कैसे मिला भारत का वीजा?
ज़ैदी- दिल्ली में रहने वाले इमरान जाहिद साहब मेरे दोस्त हैं। उन्होंने बात चलाई थी। मैं गांधी जी को करीब से छूना, देखना, उनसे बात करना चाहता था। मेरी साफ मंशा, इमरान भाई और महेश साहब (भारतीय फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट) की कोशिशें कामयाब रहीं।
संजीव- हिंदुस्तान की सर-ज़मीं को छुए हुए दो दिन हो गये हैं, कल चले जायेंगे आप इराक ? यहां से हमवतन (इराक) क्या लेकर जा रहे हैं?
ज़ैदी- जिंदादिल भारत की मिट्टी की खुश्बू । यहां के लोगों से मिला प्यार । भारत की सर-ज़मीं पर जीया हर लम्हा और हिंदुस्तान की मेहमानवाजी अपने साथ लेकर जा रहा हूं।
संजीव- भारत में गांधी जी की समाधि ही देखने की तमन्ना क्यों थी ? कहने को दुनिया का अजूबा और प्यार का प्रतीक ताजमहल भी भारत में ही है।
ज़ैदी- इराक ने कुर्बानियां दी हैं। गांधी ने कुर्बानी दी। उन्होंने अत्याचारों के खिलाफ जिस चिंगारी से आग लगाई, वो देखिये (गांधी समाधि पर जल रही लौ की ओर इशारा करते हुए) आज भी जल रही है। क्या ताजमहल पर भी ऐसी ही लौ जलती है?
संजीव- “द लास्ट सैल्यूट” लिखने के पीछे क्या मंशा थी ?
ज़ैदी- "द लास्ट सैल्यूट" एक बेगुनाह पर अत्याचारों का सच है।
संजीव- इराक और भारत में फर्क?
ज़ैदी- इराक में अमेरिका का अत्याचार है । भारत में अपना लोकतंत्र। आप खुद अंदाजा लगा लीजिए, दोनो देशों में कौन पॉवरफुल है?
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