रेड-लाइट का 'लाल-प्रेत'
यहां "रेड-लाइट" का मतलब। दिल्ली में जीबी रोड, कोलकता का सोनागाछी, मुंबई के कमाठीपुरा, मेरठ के कबाड़ी बाजार या देह-व्यापार के लिए बदनाम बरेली (यूपी) की गिहार बस्ती से नहीं है। यहां रेड-लाइट का मतलब है- "लाल-बत्ती"। चौराहे पर यातायात को कंट्रोल करने वाली लाल-बत्ती नहीं। वो लाल-बत्ती जो, दो इंसानों की औकात के बीच फर्क को साबित करने वाला "यंत्र" हैं। या यूं कहें कि खास आदमी की पोस्ट, रुतबे और रसूख की पहचान को अलग से साबित करने वाला "औजार"। यहां "लाल-प्रेत" से मतलब किसी "शैतान" या "जिन्न" से नहीं है। वरन् उसकी जैसी "ताकत" से है। शैतान या जिन्नात के जैसे भय या डर से है।
दरअसल आजकल देश की राजधानी दिल्ली में लालबत्ती की महामारी फैल गयी है। दिल्ली पुलिस लंबे समय से इस बीमारी का इलाज करने में जुटी थी। ज्यों-ज्यों लाल-बत्ती के भूत को काबू करने की कोशिश की गयी, वो काबू में आने के बजाये भीमकाय ही होता गया। लाल-बत्ती के जिन्न को काबू करने की बात तो दूर की रही। खरबूजे को देखकर खरबूजे ने रंग बदल दिया। लाल-बत्ती की देखा-देखी "नीली-बत्ती" का शैतान भी दिल्ली की सड़क पर करवटें लेने लगा। लाल और नीली बत्ती के भूतों ने इस कदर कोहराम मचाया, कि वे स्कोडा से लेकर मारुति 800 तक पर सवार हो गये। पानी सिर से ऊपर जा रहा था। जिसे देखो वो नीली और लाल बत्ती की ठसक में "लाल-बत्ती" (चौराहे की रेड-लाइट) के इशारों को मानने को ही तैयार नहीं हो रहा।
अब दिल्ली पुलिस भी किसी से कमजोर या पतली तो है नहीं। और अगर कमजोर है भी, तो ये कोई अखबार में छपवाने या फिर चौराहे पर ढोल बजाकर बताने की बात नहीं है। बात रेपूटेशन को कंट्रोल करने की थी। ट्रेफिक पुलिस को लगा, कि शायद अब वो दिन दूर नहीं, जब स्कूटी पर मैडम, स्कूटर, मोटर-साइकिल और साइकिल पर कलर्क से लेकर कबाड़ी तक "लाल-नीली" बत्ती लगाकर घूमने पर उतारु हो जायेंगे। ऐसे में लाल और नीली बत्ती के भूत पर सवारी करना जरुरी था।
अब मुसीबत ये सामने आ खड़ी हुई, कि देश की उस राजधानी में भला लाल-नीली बत्ती के भूत को कौन काबू करने का वीणा उठाकर अपने गले में घंटी बांधे? जिसकी सड़क पर कार में सवार हर आदमी, खुद को "खुदा" से कम और तपती दुपहरी में चौराहे पर ड्यूटी बजा रहे ट्रैफिक पुलिस के सिपाही को गांव के "चौकीदार" से ज्यादा न समझता हो। बिचारे सिपाही ने अगर कार रुकवाने का इशारा भर कर दिया, तो समझो कार की सवारी कर रहे साहब, कार से निकलकर "सिपाही पर सवारी" कर बैठेंगे। पहले तो सिपाही को खुद ही हड़काकर काबू करने की कोशिश करेंगे। जोर नहीं चला तो फिर एक-दो अपने परिचित रसूखदारों को मोबाइल करके सिपाही का रसूख खतरे में डालने की गीदड़ भभकी देंगे। ये बाद की बात रही, कि अगर सिपाही किसी घुड़की में फंसे बिना अपनी पर उतर आया, तो साहब को चालान काटकर हाथ में थमाकर आगे बढ़ा देगा।
दिल्ली देश की राजधानी है। यहां सड़क पर ही कब, क्या नजारा पेश आ जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता। जिन्होंने कभी दिल्ली नहीं देखी, सिर्फ दिल्ली के बारे में सुना है। संभव है कि वे ये भी सोचते हों, कि दुनिया में दिल्ली ही एक ऐसा शहर है, जहां सड़कों पर नाव चलती है। अगर वे ऐसा सोचते हैं, तो गलत क्या है? जाहिर सी बात है, जब दिल्ली देश की राजधानी है, तो यहां की कुछ खासियत भी अलग ही होगी। या होनी चाहिए। बहरहाल दिल्ली में लाल-नीली बत्ती के भूत को काबू करने के लिए दिल्ली पुलिस ने एक "फार्मूला" खोज लिया है।
दिल्ली देश की राजधानी है। यहां सड़क पर ही कब, क्या नजारा पेश आ जाये, कुछ नहीं कहा जा सकता। जिन्होंने कभी दिल्ली नहीं देखी, सिर्फ दिल्ली के बारे में सुना है। संभव है कि वे ये भी सोचते हों, कि दुनिया में दिल्ली ही एक ऐसा शहर है, जहां सड़कों पर नाव चलती है। अगर वे ऐसा सोचते हैं, तो गलत क्या है? जाहिर सी बात है, जब दिल्ली देश की राजधानी है, तो यहां की कुछ खासियत भी अलग ही होगी। या होनी चाहिए। बहरहाल दिल्ली में लाल-नीली बत्ती के भूत को काबू करने के लिए दिल्ली पुलिस ने एक "फार्मूला" खोज लिया है।
राजधानी की सड़क पर जहां कहीं, किसी वाहन पर लाल-बत्ती मुस्कराती नज़र आये। उसकी हंसी गायब कर दो। लाल-बत्ती की ही हंसी क्यों? उसमें जो "साहब" बैठे हैं, और जो उस लालबत्ती की कार पर सवारी कर रहा हो। उसकी पुश्तों तक को जलील कर दो। अगर वे लाल-बत्ती लगाने के लायक नहीं हैं। ताकि फिर ज़िंदगी भर लाल बत्ती की कार में सवारी का शौक उनके दिमाग पर सवारी न करे।
दिल्ली पुलिस ने तथाकथित "लाट-साहबों" के दिमाग से लालबत्ती का भूत उतारने के लिए कुछ खास नहीं किया है। सिर्फ एक अदद संयुक्त पुलिस आयुक्त (ट्रेफिक) की लगाम ढीली छोड़ दी है। इस फरमान के साथ कि लालबत्ती लगाये घूम रहे कुछ ओछे श्रेणी के कथित लाट-साहबों की लगाम सड़क पर ही कस दो। अगर वे लालबत्ती लगाने के काबिल न होकर भी, लालबत्ती या नीली बत्ती की कार में सवारी करते मिलें।
आला-अफसरों ने ढील दी। तो मातहतों ने लगाम कसनी शुरु कर दी। बे-वजह लाल-नीली बत्ती लगाकर रुतबा बढ़ाने के शौकीनों की। जग-जाहिर है कि जब सांप के होठों को चूसोगे, तो वो दुलार तो करेगा नहीं। डसेगा ही। पुलिस ने लालबत्ती के सवारों पर सवारी करना शुरु किया। भला ये बात कथित लाट-साहबों को कैसे पचती? पकड़े जाने पर, जिसकी जहां पहुंच थी। बेइज्जती से बचने के लिए उस पहुंच का इस्तेमाल किया। लेकिन बचे फिर भी नहीं। चालान भी काटा और लाल-बत्ती भी उतरवा दी गयी। पुलिस अपनी पर उतरी, तो लाल बत्ती लगाकर सबको चमकाने वालों का नशा उतर गया। यानि राजधानी की सड़कों पर ऊधम मचा रहे लाल-बत्ती के भूत काबू होने लगे।
लाल-बत्ती के भूत को काबू करने के इस मंत्र का असर दूर तक होना था सो हुआ। दिल्ली में लालबत्ती लगाने के शौकीनों के दिमाग से लालबत्ती का भूत क्या वाकई उतरने लगा है? जेहन में ये सवाल आना लाजिमी है। और इस सवाल का जबाब भी ठोस ही चाहिए। तो सुनिये पिछले दिनों दिल्ली ट्रेफिक पुलिस और एक राज्य की दिल्ली में नियुक्त महिला आला-अफसर के बीच हुई बातचीत का सार...और समझ जाईये कि लालबत्ती का भूत काबू आ रहा है या नहीं....
"सर मैं ..........? स्टेट की दिल्ली में रेजीडेंट कमिश्नर हूं। दिल्ली ट्रेफिक पुलिस ने आजकल लालबत्ती उतारो अभियान चला रखा है। सर हमारे चीफ मिनिस्टर अगर दिल्ली में आयें, तो क्या उनकी कार पर लाल-बत्ती लगायी जा सकती है...या नहीं? अगर नहीं तो पहले ही बता दीजिए...ताकि कम से कम सर अनजाने में लालबत्ती को लेकर सीएम साहब के साथ तो दिल्ली की सड़कों पर कोई समस्या खड़ी न हो!
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