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Wednesday 20 July 2011

इंटरव्यू: आंतरिक सुरक्षा के पूर्व विशेष सचिव वेद मारवाह

  नेताओं की मुठ्टी में खुफिया और जांच तंत्र
 देश की सुरक्षा एजेंसी हों, खुफिया या फिर कोई जांच एजेंसी। सबका राजनीतिकरण हो चुका है। हर सरकारी एजेंसी का इस्तेमाल देश-हित के बजाये, राजनीतिक हितों के लिए किया जा रहा है। जोकि आने वाले वक्त में देश के लिए ये खतरनाक साबित होगा।


 ये सनसनीखेज और बेबाक टिप्पणी की है, केंद्रीय गृह-मंत्रालय में आंतरिक सुरक्षा के विशेष-सचिव रह चुके वेद मारवाह ने।  वेद मारवाह न्यूज-एक्सप्रेस चैनल के एडिटर(क्राइम) संजीव चौहान से दिल्ली में अपने निवास पर बात कर रहे थे। श्री मारवाह ने इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में तमाम और भी सनसनीखेज खुलासे किये। पेश है बातचीत के संपादित अंश...



संजीव- किसी बड़ी वारदात की छानबीन के लिए दिल्ली से एनआईए (नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी) जैसे ही मौके पर पहुंचती है, राज्य पुलिस और वहां की जांच, खुफिया एजेंसियां क्यों उखड़ जाती हैं? मतलब एऩआईए के विरोध पर उतर आती हैं....
मारवाह- नहीं उखड़ने नहीं लगती है, स्टेट पुलिस या वहां की खुफिया और जांच एजेंसियां। दरअसल इन मामलों में आजकल राजनीतिक हस्तक्षेप ज्यादा बढ़ गया है।  चाहे स्टेट वाले हों चाहे दिल्ली वाले। सब राजनीति करते हैं। केस को सुलझाने की कोई नहीं सोचता है।
संजीव- जांच और खुफिया एजेंसियों को लेकर नेताओं द्वारा की जाने वाली राजनीति से नुकसान किसे होता है?मारवाह- जाहिर है, नुकसान देश को, हमें और आपको उठाना पड़ता है। जबकि फायदा विध्वंसकारी ताकतें उठाती हैं।
संजीव- मुंबई बम धमाकों की जांच छोड़कर दिल्ली से भेजी गई एनआईए बीच में ही वापस आ गयी है। इसमें भी कोई राजनीति!मारवाह- उनको (स्टेट पुलिस और जांच एजेंसी) ये डर लगता है, कि एऩआईए या सीबीआई अगर जांच करेगी, तो हमारे (स्टेट पुलिस, जांच एजेंसियां) ऊपर कई तरह की तोहमते लग सकती हैं । इसीलिए राज्य प्रशासन, पुलिस, जांच एजेंसियां चाहती हैं, कि उनकी जांच में कोई बाहरी एजेंसी टांग न अड़ाये। बस झगड़ा यहीं से शुरु होता है। या यूं कहिए कि आपसी सोच-समझ की इस कमी के पीछे भी नेता या राजनीति छिपी होती है।
संजीव-आप चार राज्यों के राज्यपाल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के महा-निदेशक, दिल्ली के पुलिस कमिश्नर जैसे संवेदनशील पदों पर रह चुके हैं। कुर्सी पर रहते हुए आप राजनीति के प्रभाव में कब-कब आये?मारवाह-मेरे कार्यकाल में सेंट्रल और स्टेट (केंद्र और राज्य) को लेकर "लैक-आफ-कोऑपरेशन" की समस्या कभी नहीं आयी। ये समस्या कोई 5-10 साल से शुरु हुई है। अब ये समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है।

संजीव-केंद्र और राज्य की जांच एजेंसियों के बीच कैसे सामंजस्य बैठाया जा सकता है?मारवाह-दोनो ही एजेंसियों के बीच कोऑपरेशन कराना मुश्किल नहीं है। मुश्किल काम है केंद्र और राज्य सरकारों के बीच होने वाली राजनीति में तालमेल बैठाने की।

संजीव- आपकी नज़र में  समस्या का समाधान क्या है?
मारवाह-समाधान है। राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशें। धर्मवीर आयोग की सिफारिशें। धर्मवीर आयोग की सिफारिशें 25 साल से फाइलों में धूल फांक रही हैं। सन् 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था, धर्मवीर आयोग की सिफारिशों को अमल में लाने के लिए। करीब दो दशक बाद भी न तो केंद्र सरकार के और न ही किसी राज्य सरकार के कान पर जूं रेंगी है।संजीव- धर्मवीर आयोग की सिफारिशें लागू न होने से नुकसान और फायदा किसे हो रहा है?मारवाह- फायदा नेताओं और अपराधियों को हो रहा है। नुकसान देश और देश की जनता का। इससे पुलिस कमजोर  होती जा रही है। जांच एजेंसियां कमजोर होती जा रही हैं।

संजीव- क्या आप ये कहना चाहते हैं कि जांच, खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों पर नेतागिरी हावी होती जा रही है?मारवाह- हां। राजनीतिकरण सिर्फ पुलिस एजेंसियों का ही नहीं, बल्कि इंटेलीजेंस एजेंसी का भी हुआ है। एक तो एजेंसियों के पास पहले ही सीमित स्रोत हैं। इसके बाद भी जो स्रोत हैं, उनका इस्तेमाल भी नेता राजनीतिक सूचनाएं जुटवाने में कर लेते हैं।
संजीव- फिलहाल मुंबई धमाकों के बाद जो हालात एनआईए को लेकर पैदा हुए हैं, उसके क्या परिणाम होंगे?
मारवाह-खतरनाक परिणाम होंगे। इसका समाधान बहुत ही जल्द निकालना होगा।
संजीव-भारत में केंद्र सरकार ने एनआईए को अमेरिका की जांच एजेंसी एफबीआई की तर्ज पर काम करने के लिए बनाया था। आपको नहीं लगता कि देश में एनआईए की दुर्गति हो रही है!मारवाह-एनआईए को जब तक प्रफेशनली काम नहीं करने दिया जायेगा, तब तक उससे की जाने वाली अपेक्षायें पूरी नहीं हो सकती हैं। राज्य सरकारें और राज्यों की जांच एजेंसियां एनआईए को शक की नज़र से देखना बंद कर दें।
संजीव-देश में कौन पॉवरफुल है?  जांच, खुफिया, सुरक्षा एजेंसियां या नेता?
मारवाह- नेता। पॉलिटिक्स। रियल पॉवर पुलिस या एजेंसियों में नहीं है, बल्कि पॉलिटिक्स के हाथ में है। 

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