To subscribe Crime Warrior Channel on Youtube CLICK HERE

Monday 18 July 2011

आधी रात का सच.....

                                                   शब-ए-क़द्र का शहंशाह!

 17-18 जुलाई 2011की रात मैं करीब साढ़े बारह बजे सो गया। अगले दिन यानि 18 जुलाई 2011 को सावन का पहला सोमवार था। व्रत रखना था। इसलिए चार बजे का अलार्म लगा दिया। रात करीब एक बजे के आसपास जब नींद के आगोश में जाने लगा, तभी मोबाइल पर मेरे हमपेशा छोटे भाई समान एक रिपोर्टर का मैसेज आया-
"भाईजान आज (17-18 जुलाई2011) की रात "शब-ए-रात" है। आज की दुआ कबूल होती है। लेकिन दुआ का वक्त रात एक बजे से सुबह 5 बजे तक का होता है।"
मैं चार बजे के बजाये अलार्म बदलकर तीन बजे का लगा दिया। लेकिन ये क्या, कि  करीब 22 घंटे की बदन-तोड़ू थकान के बाद भी महज डेढ़ घंटे सोने के बाद, खुद-ब-खुद मेरी आंख(नींद) 2 बजकर 10 मिनट पर खुल गयी। जबकि अलार्म तीन बजे बजा। तब तक तो मैं स्नान करके दुआ के लिए बैठ चुका था। दुआ मैंने पहले पूरी दुनिया में सुख-शांति के लिए मांगी। उसके बाद अजमेर शरीफ वाले ख्वाजा ग़रीब नवाज़ साहब को सलाम किया, खुद, अपने परिवार और आप सबके लिए। 
 दुआ/ सलाम करने पाक-पट्टन (पाकिस्तान) वाले बाबा फरीद साहब के पास गया। इसके बाद रुड़की(हरिद्वार, उत्तरांचल) में कलियर शरीफ वाले बड़े सरकार साबिर पाक साहब, सरकार अब्दाल साहब, सरकार इमाम साहब, सरकार किलकिली साहब, सरकार नमक साहब, सरकार शमशुद्दीन पानीपती साहब, सावन शेर वाले शाह मंसूर साह साहब और आखिर में भूरे शाह साहब को सलाम करने गया। इन सब जगहों पर दुआ करते-करते सुबह के करीब चार बज चुके थे।
तड़के चार से सवा चार बजे तक शिव, हनुमान-चालीसा, सुंदर-कांड पढ़ा। इसके बाद मंजू, माही, शगुन को घर में सोता हुआ छोड़कर, कार उठाई और शिव-मंदिर (मयूर-विहार) चला गया। मंदिर पर पहुंचकर उसके बराबर में फूल-माला वाले दुकानदार को जगाया। क्योंकि सावन का पहला सोमवार होने के कारण वो रात को दुकान में ही तखत पर सो रहा था। इसके बाद मंदिर के बराबर में ही मौजूद कमरे में सो रहे मंदिर के पंडित जी को आवाज देकर जगाया। पंडित जी नींद से बोझिल आंखे लेकर कमरे से बाहर आये। सामने मुझे खड़े देखा, तो उनके मुंह से अनायास ही निकल गया...चौहान साहब इतने सुबह...इतनी दूर से...क्या कोई मंदिर आसपास नहीं था। चलो आप सीढ़ियों (मंदिर के बाहर) पर थोड़ी देर बैठो। मैं (पंडित जी) नहा-धोकर तैयार होता हूं।
 पंडित जी जब तक तैयार हुए, तब तक भोर की किरणें फूटने लगी थीं। इतने में एक साधारण सी कद-काठी वाला लड़का मंदिर पर आया। जिसे मैं नहीं जानता था। उसके चाल-ढाल से लग रहा था कि वो मंदिर के पंडित जी से पहले से परिचित था। मंदिर पहुंचते ही उस लड़के ने मंदिर में झाड़ू-पोंछा लगाना शुरु कर दिया। जब वो आधे हिस्से की सफाई कर चुका, तो उसके हाथ से मैंने पोंछा ले लिया। और मंदिर के बाकी के हिस्से में मैंने पोंछा लगा कर खुद को धन्य किया।
इतने में भोर हो चुकी थी। पंडित जी तैयार होकर मंदिर में आ गये। मैं पास ही मौजूद मदर डेयरी से दूध-दही ले आया। शंकर जी को स्नान कराने के लिए। पंडित जी नें मंत्रोच्चारण किया। और मैंने शिवजी और उनके परिवार की सेवा। करीब आधे घंटे पूजा-पाठ के बाद फ्री होकर मैं चला गया। रास्ते में कार चलाते पर सोचता जा रहा था.....और सोचते-सोचते मन ही मन खुश भी हो रहा था....
 क्या आज इस दुनिया की सर-ज़मीं पर एकमात्र मैं ही ऐसा हिंदू हूं....जिसे शब-ए-रात की दुआ/ फरियाद करने के साथ-साथ, सावन के पहले सोमवार का व्रत भी नसीब हुआ। और उस शिव की सेवा करने का मौका मिला, जिस शिव को अर्धनारीश्वर भी कहते हैं।
 पूरा रास्ता कब गुजर गया, इसी असमंजस में पता ही नहीं चला, कि एक हिंदू को शब-ए-रात की दुआ के ठीक बाद, सावन के पहले सोमवार का व्रत और मंदिर में पोंछे की सेवा एक साथ मिल गयी। मैं इसे अपनी खुश-नसीबी समझूं या शंकर जी और शब-ए-रात में अल्लाह-पाक की जुगलबंदी का नायाब नमूना?

No comments:

Post a Comment