तड़के चार से सवा चार बजे तक शिव, हनुमान-चालीसा, सुंदर-कांड पढ़ा। इसके बाद मंजू, माही, शगुन को घर में सोता हुआ छोड़कर, कार उठाई और शिव-मंदिर (मयूर-विहार) चला गया। मंदिर पर पहुंचकर उसके बराबर में फूल-माला वाले दुकानदार को जगाया। क्योंकि सावन का पहला सोमवार होने के कारण वो रात को दुकान में ही तखत पर सो रहा था। इसके बाद मंदिर के बराबर में ही मौजूद कमरे में सो रहे मंदिर के पंडित जी को आवाज देकर जगाया। पंडित जी नींद से बोझिल आंखे लेकर कमरे से बाहर आये। सामने मुझे खड़े देखा, तो उनके मुंह से अनायास ही निकल गया...चौहान साहब इतने सुबह...इतनी दूर से...क्या कोई मंदिर आसपास नहीं था। चलो आप सीढ़ियों (मंदिर के बाहर) पर थोड़ी देर बैठो। मैं (पंडित जी) नहा-धोकर तैयार होता हूं।
पंडित जी जब तक तैयार हुए, तब तक भोर की किरणें फूटने लगी थीं। इतने में एक साधारण सी कद-काठी वाला लड़का मंदिर पर आया। जिसे मैं नहीं जानता था। उसके चाल-ढाल से लग रहा था कि वो मंदिर के पंडित जी से पहले से परिचित था। मंदिर पहुंचते ही उस लड़के ने मंदिर में झाड़ू-पोंछा लगाना शुरु कर दिया। जब वो आधे हिस्से की सफाई कर चुका, तो उसके हाथ से मैंने पोंछा ले लिया। और मंदिर के बाकी के हिस्से में मैंने पोंछा लगा कर खुद को धन्य किया।
इतने में भोर हो चुकी थी। पंडित जी तैयार होकर मंदिर में आ गये। मैं पास ही मौजूद मदर डेयरी से दूध-दही ले आया। शंकर जी को स्नान कराने के लिए। पंडित जी नें मंत्रोच्चारण किया। और मैंने शिवजी और उनके परिवार की सेवा। करीब आधे घंटे पूजा-पाठ के बाद फ्री होकर मैं चला गया। रास्ते में कार चलाते पर सोचता जा रहा था.....और सोचते-सोचते मन ही मन खुश भी हो रहा था....
क्या आज इस दुनिया की सर-ज़मीं पर एकमात्र मैं ही ऐसा हिंदू हूं....जिसे शब-ए-रात की दुआ/ फरियाद करने के साथ-साथ, सावन के पहले सोमवार का व्रत भी नसीब हुआ। और उस शिव की सेवा करने का मौका मिला, जिस शिव को अर्धनारीश्वर भी कहते हैं।
इतने में भोर हो चुकी थी। पंडित जी तैयार होकर मंदिर में आ गये। मैं पास ही मौजूद मदर डेयरी से दूध-दही ले आया। शंकर जी को स्नान कराने के लिए। पंडित जी नें मंत्रोच्चारण किया। और मैंने शिवजी और उनके परिवार की सेवा। करीब आधे घंटे पूजा-पाठ के बाद फ्री होकर मैं चला गया। रास्ते में कार चलाते पर सोचता जा रहा था.....और सोचते-सोचते मन ही मन खुश भी हो रहा था....
क्या आज इस दुनिया की सर-ज़मीं पर एकमात्र मैं ही ऐसा हिंदू हूं....जिसे शब-ए-रात की दुआ/ फरियाद करने के साथ-साथ, सावन के पहले सोमवार का व्रत भी नसीब हुआ। और उस शिव की सेवा करने का मौका मिला, जिस शिव को अर्धनारीश्वर भी कहते हैं।
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