ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज़ त्यों-त्यों बढ़ता गया.....
क्या इसे ही कहते हैं थूक के चाटना!अन्ना हजारे ने जन-लोकपाल बिल क्या मांगा, सरकारी मशीनरी की जैसे जंग ही उतरने लगी। अन्ना की मांग सरकार पर ऐसे असर करने लगी, मानो जंग लगे लोहे पर तेजाब डाल दिया हो। शुरुआती दौर में अन्ना की मांग को सरकार ऐसे समझ बैठी, कि मानो कोई बच्चा पापा से टॉफी की जिद कर रहा हो। सरकार के विश्वासपात्र कपिल सिब्बल अन्ना को बच्चा समझकर पुचकारते रहे। आज रुको, कल टॉफी दिलवा देंगे। इसी समझ और ना-समझ की टाल-मटोल में नौबत यहां तक आ गयी, कि जिस अन्ना हजारे को सरकार बच्चा समझ रही थी, वो अन्ना हजारे दो महीने में ही जनता की बाहों में पल-पोसकर गबरु जवान हो गया। जवान भी कोई ऐसा-वैसा नहीं। ऐसा नौजवान, जो सीधा जिम से कसरत करके निकला हुआ दिखने लगा। सोनिया, सरकार और सिब्बल को।

खुद के किये का ठीकरा सिब्बल साहब किसी और के सिर फोड़ पाते, इससे पहले ही अन्ना ने अंगड़ाई लेकर, दिल्ली के जेपी पार्क में अनिश्तकालीन अनशन की हुंकार लगा दी। अन्ना की इस हुंकार ने कपिल सिब्बल और सरकारी तंत्र की सुनने और सोचने की ताकत ही खतम कर दी। आनन-फानन में सरकार ने अपने विश्वासपात्र सिपाही सिब्बल से पूछा...बताओ इस संकट से मुक्ति का उपाय क्या है वत्स? बिचारे सिब्बल क्या करते, क्या बोलते और कैसे बोलते? उनकी बोलती बंद होनी ही थी, सो हो गई।

बिचारी दिल्ली पुलिस। सरकार की कठपुतली। कभी इस हाथ नाचे कभी उस हाथ। कभी सिब्बल की गोदी में, तो कभी चिदंबरम् की झोली में। गरीब की बीबी, पूरे गांव की भाभी। पहले सिब्बल ने समझाया कि रामलीला मैदान में बाबा रामदेव की रामलीला की ऐसी-तैसी कर दो, तो बाबा को आधी रात को दौड़ा दिया। अब चिदंबरम् के हुक्म की तामील में ताल ठोंक दी। भले ही मजबूरी, बेबसी और लाचारी में ही सही। मतलब वही बात कि मथुरा में रहोगे तो चौबे जी की सहोगे। सरकार का खाते-पीते हैं, तो सरकार की ही चाकरी करनी है। उसी के हुक्म पर अमल करना है।सरकार को खुश करने के लिए दिल्ली पुलिस के कमिश्नर बीके गुप्ता ने जेपी पार्क में अन्ना हजारे को अनिश्चिकालीन अनशन पर बैठने से रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा 144 लगा दी। 22 शर्तों के साथ। बस यहीं फिर गलती हो गयी सरकारी मशीनरी से। जेपी पार्क और उसके आसपास के इलाके में धारा 144 लगाई तो थी, इस इरादे से कि इस गीदड़ भभकी से अन्ना डर जायेंगे। और अनशन पर बैठने का इरादा छोड़ देंगे। लेकिन अन्ना, अन्ना ठहरे। कोई कपिल सिब्बल या पी. चिदम्बरम् नहीं। जो सरकार के नमक का ह़क अदा करने के लिए बेड़ियों से जकड़े हों।



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