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Wednesday 17 August 2011

अन्ना बनाम अनाड़ी सरकार

       ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज़ त्यों-त्यों बढ़ता गया.....
 
क्या इसे ही कहते हैं थूक के चाटना!अन्ना हजारे ने जन-लोकपाल बिल क्या मांगा, सरकारी मशीनरी की जैसे जंग ही उतरने लगी। अन्ना की मांग सरकार पर ऐसे असर करने लगी, मानो जंग लगे लोहे पर तेजाब डाल दिया हो। शुरुआती दौर में अन्ना की मांग को सरकार ऐसे समझ बैठी, कि मानो कोई बच्चा पापा से टॉफी की जिद कर रहा हो। सरकार के विश्वासपात्र कपिल सिब्बल अन्ना को बच्चा समझकर पुचकारते रहे। आज रुको, कल टॉफी दिलवा देंगे। इसी समझ और ना-समझ की टाल-मटोल में नौबत यहां तक आ गयी, कि जिस अन्ना हजारे को सरकार बच्चा समझ रही थी, वो अन्ना हजारे दो महीने में ही जनता की बाहों में पल-पोसकर गबरु जवान हो गया। जवान भी कोई ऐसा-वैसा नहीं। ऐसा नौजवान, जो सीधा जिम से कसरत करके निकला हुआ दिखने लगा। सोनिया, सरकार और सिब्बल को।
 जिस अन्ना को सरकार के संकटमोचक कपिल सिब्बल बच्चा समझने की भूल कर रहे थे, वही अन्ना बदले हुए रुप में अचानक सामने आया, तो सिब्बल साहब की घिघ्घी बंध गयी। अन्ना के सामने वे खुद को बूढ़ा, कमजोर, बौना और न जाने क्या-क्या समझकर, फ्रस्टेशन में जाने लगे। समझ में नहीं आ रहा था, कि अपनी न-समझी का ठीकरा किसके सिर फोड़ें?
खुद के किये का ठीकरा सिब्बल साहब किसी और के सिर फोड़ पाते, इससे पहले ही अन्ना ने अंगड़ाई लेकर, दिल्ली के जेपी पार्क में अनिश्तकालीन अनशन की हुंकार लगा दी। अन्ना की इस हुंकार ने कपिल सिब्बल और सरकारी तंत्र की सुनने और सोचने की ताकत ही खतम कर दी। आनन-फानन में सरकार ने अपने विश्वासपात्र सिपाही सिब्बल से पूछा...बताओ इस संकट से मुक्ति का उपाय क्या है वत्स? बिचारे सिब्बल क्या करते, क्या बोलते और कैसे बोलते? उनकी बोलती बंद होनी ही थी, सो हो गई।
हां दिल्ली के रामलीला मैदान में रामदेव और उनके समर्थकों के साथ रामलीला करके अपनी और सराकार की ऐसी-तैसी करा चुके, कपिल सिब्बल अब और कुछ झेल पाने का दम-खम नहीं रखते थे। सो उन्होंने इस बार अन्ना के सामने अड़ा दिये....केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम्। जब कपिल सिब्बल नहीं चूके, तो फिर भला चिदम्बरम् सरकार की थू-थू कराने में सिब्बल साहब से पीछे खुद को कैसे रखते? सो उन्होंने दिल्ली पुलिस को समझा डाला...जैसे भी हो अन्ना हजारे किसी भी कीमत पर दिल्ली के जेपी पार्क में जाकर जमने नहीं पायें।
बिचारी दिल्ली पुलिस। सरकार की कठपुतली। कभी इस हाथ नाचे कभी उस हाथ। कभी सिब्बल की गोदी में, तो कभी चिदंबरम् की झोली में। गरीब की बीबी, पूरे गांव की भाभी। पहले सिब्बल ने समझाया कि रामलीला मैदान में बाबा रामदेव की रामलीला की ऐसी-तैसी कर दो, तो बाबा को आधी रात को दौड़ा दिया। अब चिदंबरम् के हुक्म की तामील में ताल ठोंक दी। भले ही मजबूरी, बेबसी और लाचारी में ही सही। मतलब वही बात कि मथुरा में रहोगे तो चौबे जी की सहोगे। सरकार का खाते-पीते हैं, तो सरकार की ही चाकरी करनी है। उसी के हुक्म पर अमल करना है।सरकार को खुश करने के लिए दिल्ली पुलिस के कमिश्नर बीके गुप्ता ने जेपी पार्क में अन्ना हजारे को अनिश्चिकालीन अनशन पर बैठने से रोकने के लिए सीआरपीसी की धारा 144 लगा दी। 22 शर्तों के साथ। बस यहीं फिर गलती हो गयी सरकारी मशीनरी से। जेपी पार्क और उसके आसपास के इलाके में धारा 144 लगाई तो थी, इस इरादे से कि इस गीदड़ भभकी से अन्ना डर जायेंगे। और अनशन पर बैठने का इरादा छोड़ देंगे। लेकिन अन्ना, अन्ना ठहरे। कोई कपिल सिब्बल या पी. चिदम्बरम् नहीं। जो सरकार के नमक का ह़क अदा करने के लिए बेड़ियों से जकड़े हों।
 अन्ना सरकारी नमक तो खाते नहीं थे, सो उन्हें किसी का डर भी नहीं पड़ा था। सरकार ने जेपी पार्क में धारा 144 लगाई, इसके बाद भी अन्ना ने घोषणा कर दी, कि वे 16 अगस्त से दिल्ली के जेपी पार्क में अनिश्चिकालीन अनशन करे बिना नहीं मांनेंगे। बस अन्ना के इसी अड़ियल रवैये के बाद से दिल्ली पुलिस और सरकार की समस्यायें बढ़ती गयीं। अन्ना नाम की बीमारी का ज्यों-ज्यों सरकार इलाज करती गयी, बीमारी त्यों-त्यों बढ़ती गयी। निहत्थे अन्ना कानून तोड़ते, इससे पहले डरी-सहमी हथियारबंद सरकार ने ही कानून की ऐसी-तैसी कर दी। अन्ना को पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार फेज-एक में मौजूद सुप्रीम इन्क्लेव के फ्लैट से गिरफ्तार करके। इस आशंका में कि अन्ना अगर सड़क पर उतर आये, तो कानून टूट सकता है।
बस हड़बड़ाहट में थकी-हारी सरकार ने यही वो कदम उठा लिया, जो उसके गले की हड्डी बन गया। और सरकार का यही एक कदम अन्ना के लिए रामबाण साबित हो गया। अन्ना को जेल क्या भेजा, देश को सरकार पर थूकने का मौका मिल गया। संसद और राज्यसभा की कार्रवाई रद्द करनी पड़ी। प्रधानमंत्री को अगले दिन यानि 17 अगस्त 2011 को दोनो सदनों में सफाई देनी पड़ी। अन्ना की गिरफ्तारी के मुद्दे पर। सरकार और सोनिया के सबसे चहेते सिपाही कपिल सिब्बल को अपनों से ही खरी-खोटी सुननी पड़ी। केंद्रीय गृहमंत्री चिदम्बरम् को अन्ना की गिरफ्तारी पर खेद प्रकट करना पड़ा। यानि एक कानून का बेजा इस्तेमाल करने के लिए कुल मिलाकर सरकार के सिपाही से लेकर सल्तनत के साहिबों तक को ज़लील होना पड़ा। भरी संसद में। देश की गलियों से लेकर कूंचों तक। क्या इसे ही कहते हैं थूक कर चाटना?

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