To subscribe Crime Warrior Channel on Youtube CLICK HERE

Monday 22 August 2011

जान न पहचान, अन्ना मेरी जान

     
राजपथ टू रामलीला मैदान वाया इंडिया गेट

अन्ना की आंधी में हर कोई उड़ जाना चाहता है। बिना किसी जोर-दबाब के। अपनी मर्जी से, पूरे होश-ओ-हवाश में। अन्ना के लिए नहीं। खुद के लिए। अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए। बात भी सही है। आखिर आदमी क्यों न दौड़े, अन्ना के काफिले की ओर। बिना सोचे-समझे। अन्ना ने मुद्दा ही ऐसा उठाया है, यानि भ्रष्टाचार। सल्तनत को छोड़कर, बाकी पूरा देश भ्रष्टाचार के जाल से बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा है। क्या बूढ़ा, क्या जवान, क्या बच्चा, क्या मर्द और क्या औरत? सबके सब एक हो गये हैं अन्ना के साथ भ्रष्टाचार के सफाये के मुद्दे पर।
यूं तो अन्ना के कारवां में शामिल होने वाले हर किसी भारतवासी की अपनी अलग ही खासियत
है। हाल-फिलहाल तो अन्ना के कहने पर कोई भी कुछ भी करने के लिए तुला बैठा है, सिवाये सरकार के। बस सरकार ही एकमात्र वो चीज है, जिसे अन्ना फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। बात भी सही है, भला वो आदमी सरकार को कैसे अच्छा लगेगा, जो सरकार की रग-रग में फैले भ्रष्टाचार के खून की सफाई करने का वीणा उठाये दिल्ली के रामलीला मैदान में डटा है। बिना अन्न ग्रहण किये। पिछले कई दिन से। अन्ना और उनकी टीम के मुताबिक वो इतने दिन अन्न न लेने के बाद भी ठी हैं। जबकि अन्ना के चलते सल्तनत का हाल-बेहाल है। दिन-रात एअर कंडीश्नर में बैठकर माल-पुए जीमने (खाने) के बाद भी, सरकारी हुक्मरान पसीने से तर-ब-तर हैं।
जिन भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के आरोप अन्ना लगा रहे हैं, वे अन्ना को मनाने में जुटे हैं। अन्ना को वश में आता न देख, सरकार कभी तो अन्ना के पास अपने भेदिये भेज रही है और कभी बिचौलिये। अन्ना हैं कि टस से मस नहीं हो रहे। अन्ना के कान में सरकार जो भी मंत्र अपने नारद-मुनियों से फुंकवा रही है, अन्ना उसे एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकाल दे रहे हैं। ये कहकर कि उन्हें जन-लोकपाल बिल से कम या ज्यादा कुछ नहीं चाहिए।
यूं तो अन्ना की आंधी की तेजी देश भर में देखने को मिल रही है। गांव से शहर तक। गली से मुहल्ले तक। खेत से खलिहान तक। आखिर अन्ना की आंधी इतना गरम और तेज रुख अख्तियार कैसे कर गयी...? इसका एक मजबूत उदाहरण मुझे 21 अगस्त 2011 की शाम करीब सात बजे मिला। अपनी आंखो से देखने को और कानों से सुनने को। दिल्ली में इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन के बीच राजपथ पर।
मैंने देखा कि अन्ना समर्थकों की भीड़ में एक सज्जन अपने कंधों पर 18-19 साल के एक युवक को बैठाकर चले आ रहे हैं। पसीने से भीगे हुए। कंधे पर बैठे युवक ने एक तिरंगा झंडा बदन पर ओढ़ रखा है। दूसरा तिंरगा हाथ में पकड़कर लहरा रहा है। कंधों पर बैठा युवक कभी जोश के साथ नारे लगाता जा था- जान न पहचान अन्ना मेरी जान। उसका उत्साह बढ़ाने के लिए बूढ़े, बच्चे, नौजवान, आदमी-औरत सब साथ-साथ जोर जोर से नारे लगा रहे थे।
भीड़ रोककर पूछने पर पता चला कि जिस शख्स ने अपने कंधों पर अन्ना प्रेमी युवक को बैठा रखा है, उसका नाम सचिन गौड़ है। सचिन दिल्ली से सटे हरियाणा राज्य के गुड़गांव जिले के सोहना से आये हैं। अन्ना हजारे की उस रैली में शामिल होने जो इंडिया गेट से शुरु होकर दिल्ली के रामलीला मैदान में पहुंचनी थी। उसी रामलीला मैदान में, जहां अन्ना अनशन पर डटे हैं। जनता जनार्दन के दम-खम पर। सरकार की खिलाफत में। भ्रष्टाचार की जड़ें खोदने के लिए।
सचिन के कंधों पर बैठा युवक उत्तर-प्रदेश के मेरठ शहर का रहने वाला प्रताप सिंह था। प्रताप के दोनो पैर जन्म से खराब हैं। अन्ना के कारवां में शामिल होने की ललक और उम्मीद लेकर जैसे-तैसे प्रताप मेरठ से दिल्ली तो पहुंच गया। प्रताप जब दिल्ली में केंद्रीय सचिवालय मेट्रो स्टेशन के बाहर बैठा था, उसी वक्त उस पर सचिन गौड़ की नज़र पड़ गयी। सचिन समझ गये कि प्रताप अपने पैरों पर चल पाने में लाचार है। सचिन ने प्रताप से पूछा कहां जाना है....मैं तो अन्ना हजारे की रैली में जा रहा हूं।
सचिन के मुंह से इतना सुनते ही प्रताप सिंह की आंखों में चमक आ गयी। दोनो की मंजिल एक थी। सोच समान थी। विचार मिले तो सचिन ने, चल पाने में लाचार प्रताप को कंधे पर उठा लिया। और काफिले के साथ बढ़ चले राजपथ पर से गुजर कर इंडिया गेट की ओर। जहां से अन्ना के समर्थन में रैली निकलनी थी।
प्रताप से जब उनके मन की बात पूछी तो बोले- मैं उन लोगों से तो अच्छा हूं, जो घरों में बैठकर टीवी देख रहे हैं। घर में टीवी देखने से देश का भला नहीं होगा। अन्ना भगवान हैं। भगवान में तन-मन-धन लगाने से ही देश और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित होगा।
सचिन से पूछा तो वे बोले-
मंजिल मिल जायेगी, भटकने से ही सही
गुमराह तो वो हैं, जो घर से निकलते ही नहीं।

No comments:

Post a Comment