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Thursday 25 August 2011

अन्ना जी मन्ने माफ करना....

                   

          बूढ़ा शेर सबसे ताकतवर...!
अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजा रखा है। देश भर में इसकी मुनादी करा दी गयी है या यूं कहिए कि मुनादी हो गयी है। देश की राजधानी दिल्ली की चौड़ी-चौड़ी चमचमाती सड़कों से लेकर गांव के गलियारे तक। जिधर नज़र डालो अन्ना की शकल और उनकी ही आवाज सुनाई दे रही है। एक तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ देश की अधिकांश जनता अन्नामयी हो गयी है।
अन्ना कौन हैं...कहां के रहने वाले हैं? क्या करते थे? रामलीला मैदान में डटे अन्ना को समर्थन देने के लिए दिल्ली के चावड़ी बाजार, बल्लीमारान, चांदनी चौक से लेकर देश के किसी दूर-दराज गांव के बाशिंदे पहुंच रहे हैं। अन्ना के बारे में पूछने पर अधिकांश लोग ये बस यही जानते हैं कि अन्ना कोई अड़ियल, जुझारु और सल्तनत की नाक में दम कर देने वाला शख्स है। बात भी सही है। अन्ना की जन्म-कुंडली से भला किसी को कोई सरोकार होना भी क्यों चाहिए?
इतना ही काफी है कि अन्ना की सवा करोड़ भीड़ में एक अपनी अलग पहचान बनी है। वरना बड़े-बड़े धन्नासेठ इस सरज़मीं से रुखसत हो जाते हैं। धरती से कूच करने के बाद कोई उनका नाम-ओ-निशां तक नहीं बचता है। लोगों को नाम तक याद नहीं रहता। कम-से-कम अन्ना जैसा कोई फ़कीर तो इस देश की माटी पर जन्मा है, फ़कीरी ही जिसकी पहचान बन गयी ह । और लाखों लोग उसके एक इशारे के इंतज़ार में बैठे हैं। कुछ भी कर गुजरने को। सोचिये अगर अन्ना की सी ताकत, शोहर देश के अगर किसी भ्रष्ट-नेता के हाथ लग जाये, तो वो क्या करेगा? जग-जाहिर है। बताने जरुरत नहीं है।
अन्ना के साथ जनता है। अन्ना का अपना आत्मबल है। अन्ना के साथ उनके भी कुछ सिपहसलार हैं। मसलन देश की पहली और पूर्व महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी। अरविंद केजरीवाल। पिता-पुत्र शांति भूषण और प्रशांत भूषण। मनीष शिशौदिया। जाने-माने कवि और लेखक डॉ. कुमार विश्वास। आदि-आदि। सब शरीर से स्वस्थ-तंदुरस्त। देखने-भालने और बोलने-चालने में भी ठीक-ठाक। तो फिर अब सवाल ये पैदा होता है कि आखिर अनशन पर अकेले अन्ना क्यों? अन्ना के साथ किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, मनीष सिशौदिया और कुमार विश्वास में से कोई भी आखिर अनशन पर साथ क्यों नहीं बैठा?
क्या अनशन पर बैठने का टेंडर सिविल सोसायटी कमेटी ने अकेले अन्ना हजारे के नाम पर ही खुलवाया। क्या इसमें भी कोई राजनीति है? अगर राजनीति है, तो इसके पीछे क्या मंशा रही होगी अन्ना हजारे के सिपहसलारों की? उन्हें अकेले इतने दिन से अनशन पर बैठाये रखने के पीछे। आदि-आदि सवाल किसी के भी ज़ेहन में आना लाजिमी है।
इनके जबाब लड़ाई में जीत की उम्मीद लिये रामलीला मैदान में डटे अन्ना भले ही फिलहाल न दें। लेकिन जनता मानती है कि अन्ना के किसी भी सिपहसलार की इतनी कुव्वत नहीं थी, जो नौ-दस दिन क्या, दो दिन का भी अनशन कर पाये। किरण बेदी को दिन में कई बार चाय चाहिए। सुबह उठते ही ब्रेक-फास्ट की आदत है। रात को बढ़िया डिनर और दोपहर में लज़ीज लंच की आदत ने शायद उन्हें अनशन के काबिल नहीं छोड़ा होगा।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि शायद बाकी सिपहसालार भी किरण बेदी के ही नक्शे-कदम पर हों। अगर वे थोड़ी देर भी बिना जीमे” (खाये-पीये)रह जायेंगे, तो या तो उन्हें कमजोरी का अहसास होने लगेगा। या फिर खाली पेट में गैस बनने की बीमारी उनके हट्टे-कट्टे शरीर पर सवारी करना शुरु कर देगी। अब बताओ भला ऐसे में किसका अनशन, कैसा अनशन और किसके लिए अनशन?
अनशन है भाई। जिसमें पानी के अलावा किसी और चीज को हाथ लगाना भी गुनाह है। बच्चों का खेल नहीं। और फिर अन्ना के सिपहसालारों पर उंगली उठाने से पहले हमें ये भी तो ध्यान रखना चाहिए, कि वे अगर अनशन पर बैठ गये, तो उनके अपनों का क्या होगा? अब अन्ना ही एकमात्र ऐसे शख्स थे, जिनके आगे नाथ, न पीछे पगाह। न घर मढ़ैय्या।
सो बताओ भला अब अनिश्चितकालीन अनशन पर जमाने के लिए सिविल सोसायटी के पास अन्ना से मजबूत कोई दूसरा कौन था? कोई नहीं। और फिर अन्ना पुराना घी भी तो खाये हुए हैं। उनमें भूखे रहने का माद्दा है। रोज सुबह ब्रेक-फास्ट में अंडा, मख्खन, ब्रेड, दूध पीने वाले भला अनशन पर बैठकर मरने की तैयारी कर लें क्या?
अब तो समझ आ गया आपको कि अन्ना को उनके अपनों ने ही क्यों रामलीला मैदान में स्टेज सजाकर उन्हें (अन्ना) बैठाकर रखा है...11 दिन से भूखा प्यासा। यानि अन्ना, सिर्फ एक इंसान ही नहीं, बूढ़े शेर भी हैं। जो बिना खाये-पीये भी अगर बोलेगा, तो उनका बोलना शेर की गुर्राहट या दहाड़ कहलायेगी...उनके साथ सिविल सोसायटी में बाकी सदस्य अगर दूध पीकर भी गला फाड़-फाड़कर भी बोलेंगे...तो भी बकरी के बच्चे यानि मेमने से ज्यादा तेज आवाज नहीं निकाल पायेंगे।    

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