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Sunday, 8 April 2012

ब्रेकिंग के बादशाह हो गये "ब्रेक"



माफ करना जरदारी...तुम्हारे लंगोट का रंग नहीं पता कर पाये!

-संजीव चौहान-

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी मय लाव-लश्कर के 8 अप्रेल 2012 को भारत पहुंच गये। जिन जरदारी और उनके देश को हम पानी पी-पीकर सौ-सौ गालियां एक सांस में देते हैं, उनके लिए देश के हुक्मरान पलक-पांवड़े बिछाये राहों में खड़े थे। उन जरदारी साहब के लिए हमारे हुक्मरानों ने, वो सब शाही व्यंजन (56 भोग) खास- खानसामाओं की फौज से तैयार करवा लिये, जिनकी सेना ने कारगिल में भारत की उन तमाम नव-विवाहिताओं के सिंदूर पोंछ दिये थे, जिनके हाथों की मेंहदी का रंग अभी फीका भी नहीं पड़ा था। 


उन बहनों के हाथों की कलाईयां हमेशा के लिए सूनी कर दीं, जिनका इकलौता भाई भारतीय फौज में ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग पर ही कारगिल की लड़ाई में झोंक दिया गया। और वो जरदारी की(पाकिस्तानी) सेना के हाथों बे-मौत मारा गया।
जरदारी के बे-हया वेलकम के कड़वे सच को देख-सुनकर देश के उन सपूतों की मां दिल्ली से दूर गांव में पुराने बरगद, पाकड़ और पीपल के पेड़ों के नीचे, गांव के कुएं पर बैठी आंसू बहा रही थीं, 8 अप्रेल 2012 को, जिनके लाल कारगिल में बे-मौत देश के हुक्मरानों ने शहीद करा दिये। जिन लालों की बेबाओं का पुरसाहाल लेने वाला आज कोई हुक्मरान नहीं है। कोई बड़ी बात नहीं, कि कारगिल के कुछ शहीदों के बच्चों को आज सरकारी स्कूल की फीस भी नसीब न हो रही हो। ऐसे जरदारी की सेवा में गर्दन झुकाये खड़े थे...हमारे देश के वजीर-ए-आजम मन मोहन सिंह के हुक्म पर मंत्री पवन बंसल। बिलख पड़ीं होंगी कारगिल में शहीद हुए युवा लड़ाकों की मां,पत्नी और मासूम बच्चे। न्यूज चैनलों पर ये सब देखकर। 
रही-सही कसर पूरी कर दी, देश के उन न्यूज चैनलों ने, जो कारगिल युद्ध के बाद आज तक कभी नहीं पहुंचे होंगे उस गांव में, जिसका लाल हंसते-हंसते कारगिल में शहीद हो गया। आज किस हाल में ज़िंदगी बसर कर रहा है, उस शहीद सैनिक का परिवार। उस परिवार की बदहाल ह़कीकत को चैनल पर बार-बार ब्रेकिंग दिखाने के लिए। कभी किसी न्यूज चैनल ने नहीं किया होगा, उस गांव का रुख।

जरदारी के पीछे-पीछे देश के हुक्मरान घिसट रहे थे। ये कोई नई या हैरंतगेज जानकारी नहीं है। हमारे देश के सत्ता के गलियारों की ये पुरानी परिपाटी है...कि देश में आने पर दुश्मन को घी पिलाओ। ताकि अपनी सर-ज़मीं पर जाकर वो आंख तरेर कर हमें ही हमारे घी की ताकत का अहसास करा सके। और हम उसे दुनिया भर की नज़र में अपना दुश्मन साबित करने के लिए अरबों रुपया खर्च करें। वो रुपया जिसे आम-आदमी के नमक, मिट्टी के तेल, दाल-चावल पर टेक्स लगाकर कमाया गया है।
देश के न्यूज चैनल भी कदम-ताल मिलाकर जरदारी के पीछे-पीछे ऐसे घिसट रहे थे, मानो कलियुग में भगवान राम स-शरीर धरती पर उतर आये हों। उनकी एक झलक दिखाने के लिए चैनल के स्टेट-ब्यूर चीफ ने एक सप्ताह पहले ही बजट और प्लान बनाकर दिल्ली,नोएडा में मौजूद अपने सर को भेज दिया। ताकि जरदारी के तलबों से उड़ने वाली धूल की कवरेज (वीजुअल) भी लाइव ऑन-एअर करवाई जा सके।
इतना भर होता तो झेल लेते। हद तो तब हो गयी, जब नींद के मारे सरकारी हुक्मरानों से हमारे न्यूज चैनल ब्रेकिंग के फेर में इस हद तक ब्रेक(टूट) हो गये, कि जरदारी के कपड़ों के भीतर तक जा पहुंचे। मसलन जयपुर पहुंचने पर जरदारी ने सूट उतारकर, ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर जाने के लिए कुरता-पाजामा पहन लिया। कुरता-पाजामा प्रेस करने के लिए बाकायदा अलग से एक प्रेस करने वाला बुलाया गया। 

मैं दण्डवत हूं देश की सत्ता को नाकों चने चबबाने का कथित दावा करने वाले उन निजी न्यूज चैनल और उनके कथित कर्ता-धर्ताओं का, जिन्होंने जरदारी का कुछ भी दिखाने में कोताही नहीं बरती। फिर भी इतना करते-धरते चूक हो ही गयी। ब्रेकिंग के बादशाह कुछ कथित न्यूज चैनलों से। और वो चूक थी...जरदारी के अंडरवियर या लंगोट का रंग पता न कर पाने की। अगर कुरता-पाजामा के साथ साथ जरदारी के लंगोट के भी वीजुअल मिल जाते, तो शायद एक्सक्लूसिव वीजुअल की दुनिया में ये कलंक तो न लगता भारतीय न्यूज चैनलों के माथे पर...कि जरदारी के लंगोट का वीजुअल नहीं मिल पाया...।

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