तिहाड़ जेल के संकरे लंबे रास्ते,ऊंची दीवारें |
डेढ़ अरब का वार्षिक बजट।
पांच-पांच सुरक्षा एजेंसियां। आसमान छूती चार दीवारी। हर इलाके पर 24 घंटे क्लोज
सर्किट कैमरों की नज़र। जगह-जगह मेटल डिटेक्टर। हर कोने पर निगरानी टॉवर। हर जेल
में तीन-तीन भीमकाय दरवाजे। मोबाइल फोन के सिग्नल जाम करने के लिए अनगिनत जैमर।
देखने-सुनने में कहीं कोई कोर-कसर बाकी नज़र नहीं आती है । इसके बाद भी
दक्षिण-एशिया की सबसे मजबूत समझी जाने वाली तिहाड़ जेल का क़ैदी इतने सुरक्षा
इंतजामों के बीच भी 'असुरक्षित' है । आखिर क्यों?
ऐसा नहीं है कि, राम सिंह की संदिग्ध मौत के बाद
ही इस तरह का सवाल जन-मानस के जेहन में
कौंधा है । तिहाड़ में जब-जब किसी क़ैदी की मौत हुई। तब-तब तिहाड़ सुर्खियों में
आई है। अब राम सिंह ने फांसी लगाई, तो फिर तिहाड़ जेल के
सुरक्षा इंतजाम को लेकर देश में कोहराम मच गया। देश के गृहमंत्री सुशील कुमार
शिंदे को बयान देना पड़ा। तिहाड़ जेल में बंद राम सिंह कोई आम-क़ैदी नहीं था।
तिहाड़ के अंदर क़ैदी के साथ मैं |
तिहाड़ के मजबूत दरवाजे से बाहर आता मैं |
दिसंबर 2012 में राम सिंह की करतूत ने सरकार की चूलें हिला दीं थी। राम सिंह की
मौत हत्या थी या आत्महत्या? इन
सवालों के जबाब आने वाले समय में खोजे जाते रहेंगे। कुछ सवालों के जबाब मिल
जायेंगे। तमाम सवाल फाइलों में दफन कर दिये जायेंगे। ऐसा नहीं है, कि तिहाड़ जेल में ही क़ैदी या
क़ैदियों की मौत होती है। देश के बाकी हिस्सों में मौजूद जेलों में भी क़ैदी मरते
हैं। यह दूसरी बात है कि, देश के दूर-दराज की जेलों में मरने
वाले क़ैदियों की मौत की खबरें दिल्ली तक नहीं पहुंच पाती हैं।
उदाहरण के लिए
जनवरी 2013 में कपूरथला मॉडर्न (पंजाब) जेल में बंद जालंधर निवासी अनिल पुत्र
कर्मचंद की संदिग्ध मौत। जेल प्रशासन के मुताबिक अनिल की मौत दिल का दौरा पड़ने से
हुई। अनिल के परिजनों के मुताबिक हादसे से कुछ दिन पहले, जब
वे अनिल से मिले, तो वह ठीक था।
अक्टूबर 2012 में पंजाब
की गुरदासपुर जिला जेल में राज कुमार की संदिग्ध मौत हो गयी। जेल प्रशासन के
अनुसार तबियत खराब होने पर राज कुमार को अस्पताल में दाखिल कराया गया। अस्पताल में
उसकी मौत हो गयी। राजकुमार की मां जीतो के मुताबिक बेटे की मौत से चार पांच दिन
पहले, जब वह
बेटे से जेल में मिली, तब राजकुमार सही था। जुलाई 2012 में
हैदराबाद की चेरापल्ली जेल में कैदी ने साथी क़ैदी को कैंची घोंप दी। हमलावर क़ैदी
का नाम नरसिम्हम था। हमले में 60साल के एक क़ैदी की मौत हो गयी। पांच क़ैदी ज़ख्मी
हो गये। सवाल ये पैदा होता है कि, हमलावर क़ैदी के पास जेल
के अंदर कैंची पहुंची कैसे?
छत्तीसगढ़ राज्य की जेलों
में 2011-2012 और 2012 से 2013 में अब तक तीन कैदी मर चुके हैं। तीनों की मौत का
कारण उनका एचआईवी (एड्स) से पीड़ित होना बताया गया। इसके अलावा राज्य की अन्य
जेलों में 102 और कैदी बीमारी के चलते मर गये। जेलों में हुई मौतों के इन आंकड़ों
की पुष्टि राज्य के गृहमंत्री ननकू राम कंवर भी करते हैं।
वर्ष 2009 के आंकड़े
बताते हैं कि, अकेले
मध्य-प्रदेश की जेलों में नवबंर 2009 तक 66 कैदियों की मौत हुई थी। हांलांकि ये
मौतें बीमारी से होने की बात कही गयी थी। इस हिसाब से राज्य की जेलों में औसतन हर
पांचवें दिन एक कैदी की मौत हुई। इसी अवधि में राज्य में उज्जैन और इंदौर की जेल
में 7-7 कैदियों की मौत हुई। यही वजह थी कि राज्य में जेल में कैदियों की मौत के
मामले में यह दोनों ही जेल अव्वल रहीं।
वर्ष 2010 में देश में
करीब एक हजार चार सौ (1400) कैदियों की जेलों के अंदर मौत हो गयी। इस बात की
तस्दीक भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी करता है, कि जेलों में होने वाली मौतों में
70 फीसदी मौत टीबी (क्षय रोग) से होती हैं। कैदियों की मौत के लिए अधिकांशत: जेल प्रशासन ही जिम्मेदार होता है। क़ैदी चाहे
बीमारी से मरे, या क़ैदी की हत्या हो या फिर उसे आत्महत्या
का मौका मिल जाये। जेल प्रशासन किसी भी तरह की मौत में खुद को नहीं बचा सकता है।
इसका मजबूत उदाहरण है
वर्ष 2000 में दिल्ली की तिहाड़ जेल में हुई 68 साल के सतनाम शाह की संदिग्ध मौत।
सतनाम भारतीय वायुसेना का रिटायर्ड विंग कमांडर था। मादक पदार्थ तस्करी के आरोप
में सतनाम शाह, बेटी के
साथ तिहाड़ जेल में विचाराधीन क़ैदी के रुप में बंद था। सतनाम शाह की तिहाड़ में
हुई संदिग्ध मौत की जांच राजौरी गार्डन के तत्कालीन एसडीएम विवेक खन्ना से कराई
गयी। जांच रिपोर्ट में खुलासा किया गया, कि 25 नवबंर 2000को
हालत ज्यादा खराब होने पर सतनाम को डीडीयू अस्पताल से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान
संस्थान (एम्स) में दाखिल कराया गया। इससे पहले तक जेल प्रशासन सतनाम को जेल परिसर
में मौजूद अस्पताल में ही दाखिल किये रहा। जबकि सतनाम शाह ने कई महीने पहले ही
तिहाड़ जेल प्रशासन को बताया था, कि उसे खाने में परेशानी हो
रही है। एक महीने के अंदर ही सतनाम का वजन भी 10 किलोग्राम घट गया। जेल के डाक्टर
फिर भी सतनाम शाह को एंटी-बायटिक दवाईयों पर चलाते रहे। 20 सितंबर 2000 को हालत
ज्यादा खराब होने पर सतनाम को दिल्ली के गोविंद बल्लभ पंत अस्पताल में दाखिल कराया
गया। जीबी पंत के डाक्टरों ने बायोप्सी-इंडोस्कोपी के बाद बताया, कि शाह को कैंसर जैसी कोई बीमारी नहीं है। अंतत: 6 दिसंबर 2000 को लंबी बीमारी के बाद एम्स में
दाखिल सतनाम शाह की मौत हो गयी।
सतनाम शाह की मौत की जांच
कर रहे एसडीएम को एम्स के डाक्टरों ने बताया कि सतनाम को कैंसर की बीमारी थी। जब
सतनाम को जीबी पंत से एम्स में दाखिल किया गया, तो वो ‘सैप्टीसीमिया’ से
भी ग्रसित हो चुका था। एम्स के डाक्टरों ने एसडीएम को बताया, कि सतनाम शाह की आंतो और पेट में सूजन थी। इन तमाम तथ्यों की पुष्टि सतनाश
शाह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी हुई। इन तमाम सनसनीखेज खुलासों के सामने आने पर
एसडीएम/जांच-अधिकारी ने तिहाड़ जेल और दीनदयाल उपाध्याय
अस्पताल के डाक्टरों के खिलाफ कार्यवाही की संस्तुति की थी।
यहां सवाल यह पैदा होता
है, कि जिस
तिहाड़ जेल का मौजूदा वक्त में सालाना बजट करीब डेढ़ अरब (140,93,85000-00) रुपये है। इस बजट का 42 फीसदी कैदियों
की सुरक्षा पर, 22 फीसदी स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, 12 फीसदी खान-पान पर खर्च होता है, तो फिर कैसे जेल
के भीतर सतनाम शाह और बिस्किट किंग राजन पिल्लई जैसे क़ैदी मर जाते हैं, इलाज के अभाव में। कैसे और क्यों लगा लेते हैं, राम
सिंह जैसे खतरनाक क़ैदी फांसी? इतने चाक-चौबंद सुरक्षा
इंतजामों के बीच में।
इन तमाम सवालों के मुद्दे
पर कश्मीर घाटी सहित देश की तमाम जेलों में लंबे समय से क़ैदियों के हित में काम करने वाली अंजलि कौल ‘अदा’ कहती हैं- “ जेलों की और वहां बंद क़ैदियों की सुरक्षा के लिए
मोटे बजट रख देने से कुछ नहीं होगा। जरुरत है इस भारी-भरकम बजट को, सही तरीके से सही समय पर सही जगह
मतलब, कैदियों के हित में इस्तेमाल करने की। जेलों में
जानवरों की तरह ठूंस-ठूंस कर कैदियों को भरे जाने की बजाये, जेल
की सामर्थ्य के हिसाब से वहां कैदियों को रखा जाये।” अंजलि के मुताबिक भारत की करीब 1393 जेलों में 3
लाख 68 हजार क़ैदी जानवरों की मानिंद भरे हुए हैं। प्रत्येक क़ैदी पर सरकार औसतन
19 हजार 446 रुपये 50 पैसा सालाना खर्च करती है। यानि देश भर की जेलों में बंद
कैदियों के ऊपर करीब 715 करोड़ 61 लाख 28 हजार रुपये सालाना का खर्च। इसके बाद भी
राम सिंह जैसे खतरनाक क़ैदियों की तिहाड़ जैसी अति-सुरक्षित जेल में ‘संदिग्ध’ हालातों में मौत हो जाती है।
अंजलि कौल के मुताबिक- ‘इसका
जबाब सिर्फ और सिर्फ उस जेल प्रशासन से ही मांगा जाना चाहिए, जिस जेल में राम सिंह जैसे खतरनाक
क़ैदी, जो सिर्फ सज़ा के ह़कदार हैं, मगर वे संदिग्ध हालात में मरे हुए मिलते हैं।’ अंजलि कौल के कथन की
कहीं-न-कहीं देश का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी पुष्टि करता है। आयोग की
2004-2005 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक- ‘जिन जेलों में 2 लाख 37 हजार 617 क़ैदी ही रखने की
क्षमता है। उन जेलों में 3 लाख 36 हजार 151 क़ैदी भरे हुए हैं। क़ैदियों की यह
संख्या जेलों की निर्धारित क्षमता से 41 फीसदी ज्यादा है।’ बकौल अंजलि कौल-‘ऐसे में भला क़ैदी बीमारियों से ग्रसित होकर कैसे नहीं मरेंगे। कैसे
दमघोंटू जिंदगी से आजिज आकर सुसाइड करने पर नहीं उतरेंगे क़ैदी। क़ैदी हैं तो क्या
हुआ? आखिर हैं
तो इंसान ही। लेकिन जेलों की उस भीड़ में, जहां इंसान और
जानवर की भीड़ के बीच का अंतर ही खतम हो जाता हो। इंसान आखिर कैसे खुद को जिंदा
रखेगा?’ 1990 के दशक में बिस्किट
किंग और उद्योगपति राजन पिल्लई की तिहाड़ में हुई संदिग्ध मौत की जांच के लिए
सरकार ने जस्टिस लीला सेठ आयोग गठित किया था। लीला सेठ आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट
में इस बात का उल्लेख किया था, कि तिहाड़ जेल में कैदियों के समुचित इलाज, रहन-सहन का कोई इंतजाम नहीं है। जस्टिस लीला सेठ आयोग की सिफारिश थी,
कि तिहाड़ जेल में जानवरों की तरह कैदियों को ठूंस-ठूंस कर रखे जाने
की वजह से भी, उनकी उचित देख-रेख नहीं हो पाती है। इसका
इंतजाम अगर होता, तो शायद राजन पिल्लई को सही समय पर उचित
इलाज देकर बचाया जा सकता था। राजन पिल्लई की मौत के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने
भी कड़ा रुख अख्तियार किया। हाईकोर्ट ने सरकार से कहा कि राजन पिल्लई की पत्नी को
इस मामले में मुआवजा दिया जाये।
सन् 2011 के मई-जून में तिहाड़ जेल के अंदर मैं |
जस्टिस लीला सेठ आयोग ने
तिहाड़ जेल को लेकर यह कड़वा सच 1990 के दशक में उजागर किया था। इसके कई साल बाद
भी जस्टिस लीला सेठ आयोग की सिफारिशों को अमल में नहीं लाया गया। इसकी पुष्टि करती
है राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की कुछ साल पहले आयी, वो रिपोर्ट जिसमें आयोग ने भी माना
है, कि भारतीय जेलों में क्षमता से कई गुना ज्यादा क़ैदी
जेलों में ठूंस-ठूंस कर रखे गये हैं।
आयोग की रिपोर्ट के
मुताबिक क्षमता से अधिक क़ैदी रखे जाने के मामले में, देश की राजधानी दिल्ली में स्थित
दक्षिण एशिया की सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली तिहाड़ जेल अव्वल नंबर पर है।
तिहाड़ में क्षमता से 224 फीसदी ज्यादा क़ैदी रखे गये हैं। दिल्ली के बाद देश के
जिन सूबों का नंबर क्षमता से ज्यादा क़ैदी जेलों में रखने में आता है, उनमें झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात,
बिहार, हरियाणा, उड़ीसा,
सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर-प्रदेश
का नंबर आता है। वहीं दूसरी ओर आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, नागालैंड, राजस्थान,
उत्तराखंड, दमन और दीऊ, दादर
और नगर हवेली तथा लक्षदीप की जेलें ऐसी भी हैं, जिनमें
क्षमता के मुताबिक ही क़ैदी बंद करके रखे गये हैं।
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