द्रोपदी के बाद दुर्गा
का “चीर-हरण”!
तीन-चार दिन से देश
में एक महिला को लेकर कोहराम मचा है। इस महिला के चेहरे पर तेजाब भले न फेंका गया
हो, लेकिन जो फेंका गया है, वो तेजाब से भी ज्यादा ज्वलनशील है। बीते साल दिल्ली
की बस में सामूहिक बलात्कार की घटना से भी ज्यादा कष्टकारी है। बस जरुरत एक महिला
के दर्द को समझने की है। दिल्ली में बस में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना को अंजाम
देने वाले गिरफ्तार कर लिये गये। आरोपियों को सजा अदालत सुनायेगी, लेकिन इस यहां इस मामले में तो पीड़ित महिला को
ही ‘सजा’ सुना दी गयी है।
अदालत द्वारा नहीं, सत्ता की हनक में सत्ताधारियों द्वारा।
यहां जिस महिला के
साथ हुई घटना की बात या चर्चा मैं कर रहा हूं, उसका नाम है दुर्गा शक्ति नागपाल।
2009 बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी। तीन-चार दिन पहले तक मैंने
भी दुर्गा शक्ति का कहीं नाम नहीं सुना था। अचानक अखबारों और टीवी चैनलों पर
देखा-पढ़ा, तो घर बैठे ही दुर्गा शक्ति नागपाल से परिचय हो गया। बिना रु-ब-रु हुए।
पता चला कि, दुर्गा शक्ति नागपाल को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने
निलंबित करके ‘रेत में दबा’ दिया है। या यूं
कहें कि रेत की भेंट चढ़ा दिया है। बिना किसी जांच पड़ताल के। महज अपने चहेतों,
सिपहसलारों और इर्द-गिर्द मंडराने वालों के कहने पर।
दुर्गा शक्ति नागपाल
देश की राजधानी से सटे यूपी के कमाऊ-पूत समझे जाने वाले
गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) जिले के सदर सब-डिवीजन में एसडीएम पद पर नियुक्त थीं। सुना
है कि, दुर्गा ने इलाके में रेत खनन-माफियाओं को दौड़ा-दौड़ा कर छकाया, दु:ख पहुंचाया था। अगर यह कहें कि, दुर्गा ने खनन
माफियाओं और उनके गुर्गों की नाक में दम कर रखा था, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
दुर्गा से दुखी खनन-माफिया लखनऊ में बैठे अपने उन आकाओं के पांवों में जाकर
लेट-लोट गये, जिनके बलबूते उन्हें रेत-खनन के ठेके-पट्टे मिले थे। दुर्गा के दमखम
से दुखी खनन-माफियाओं का दर्द उनके आकाओं के दिमाग में नासूर सा बनकर समा गया।
मुद्दा दुर्गा शक्ति
नागपाल का नहीं था। मुद्दा था, खनन-माफिया के जरिये हर साल होने वाली करोड़ों की
काली-कमाई डूबने का। मुद्दा था रेत के अवैध खनन में जुटे शातिर और अपराधी किस्म के
लोगों के रास्ते में एक औरत के आ घुसने का। मुद्दा था करोड़ों के बारे-न्यारे होने
की राह में बाधा बनने का। मुद्दा था सफेदपोश, पुलिस और अपराधियों की मिलीभगत से
होने वाली काली-कमाई में रोकटोक का। अगर कोई दबंग या नेता होता। तो उसे रास्ते से
आसानी से हटाया जा सकता था। यहां तो कुकर्मों के बीच में एक महिला के हस्तक्षेप का
मुद्दा था। वह भी उस महिला के, जिसने कभी ‘कुर्सी’ के लालच को जेहन में पलने ही नहीं दिया। जब
कुर्सी का लालच नहीं, तो फिर वो मर्जी की मालिक थी। रेत का खनन उसे नाजायज लगा।
दुर्गा शक्ति नागपाल को लगा कि, इससे सरकारी खजाने को नुकसान हो रहा है, सो उसने
सरकारी खजाना बचाने के लिए रेत खनन-माफियाओं को सबक सिखा दिया। कुछ ही दिनों में
तमाम खनन माफियाओं और उनके गुर्गों के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज करा दिये।
दबंगों की दबंगई खुद लेकर रेत-माफियाओं की खनन में जुटी मशीनें, ट्रेक्टर, ट्रक
जब्त करके लाइन में लगवा दिये। इस उम्मीद में कि अब रेत का अवैध खनन रुक जायेगा।
उसके इस प्रयास से सरकारी खजाने को हो रहा आर्थिक नुकसान रुकेगा।
जाने-अनजाने में
दुर्गा शक्ति भूल गयीं, कि वे दबंग तो हैं, मगर सरकार की “नौकर” हैं। उन्होंने इस बात का कतई ख्याल ही नहीं रखा कि,
भले ही रेत-खनन से सरकारी खजाने को करोड़ों की आर्थिक चपत लग रही हो, मगर जितना वो
खनन-माफियाओं से बचाकर सरकारी खजाने में जमा नहीं करा पायेंगी, उससे कहीं ज्यादा
रेत का चोरी-छिपे दोहन करके उनसे ज्यादा कमाकर रेत खनन माफिया सत्ता के कथित
सपूतों को भेंट चढ़ाये पहले से ही बैठे हैं। अब भला बताओ इसमें गलती किसकी है? रेत खनन माफिया और सफेदपोशों की मिलीभगत का पता
दुर्गा शक्ति नागपाल को नहीं है, तो इसमें भला गलती सूबे के मुख्यमंत्री, या फिर
रेत खनन नियंत्रण करने वाले मंत्रालय की थोड़ा ही न है। सत्ताधारियों की आंख से
अगर देखोगे तो, इसमें तो गलती आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल की ही है।
दुर्गा शक्ति को
समझना चाहिए था, कि उन्हें ताकत सरकार ने दी है। अब वो थीं कि, रेत खनन माफियाओं
से ही जा भिड़ीं। बिना किसी लाग-लपेट के। सीधे-सीधे, आमने-सामने। भला ऐसे भी कहीं
होता है! सरकारी नौकरी में। सरकारी नौकरी का मतलब- सरकार
जो चाहें वो करो। रेत के पट्टे खनन ठेकेदारों को दुर्गा शक्ति नागपाल ने तो दिये
नहीं थे। रेत-खनन के पट्टे तो लखनऊ में बैठे संबंधित विभाग के मंत्रालय से बंटा
करते हैं। ऐसे में अगर सरकारी खजाने की ऐसी-तैसी हो रही है, तो इस बात की चिंता
भला एक अदना सी नई-नवेली (2009 बैच आईएएस) दुर्गा शक्ति नागपाल को करने की क्या
जरुरत थी। शायद दुर्गा को नहीं पता था कि, सरकार अपने खजाने को अगर लुटाने पर उतर
आये, तो उसे बचाने वाला कोई नहीं होता। मुझे जहां तक लगता है कि, खुद को (एसडीएम)
मिले अधिकारों की ‘हनक’ में बिचारी दुर्गा
शक्ति नागपाल ने रेत-खनन माफियाओं को ‘मिट्टी’ में मिलाने से पहले आगे-पीछे कुछ देखा-सोचा ही
नहीं था।
अब इसमें गलती
बिचारी दुर्गा नागपाल की भी नहीं है। वो समझ रही थीं, कि वे कानून का पालन कराकर
सरकारी खजाने की ऐसी-तैसी होने से बचाकर विशेष पुरस्कार की हकदार हो जायेंगी।
उन्हें क्या पता था कि, कानून का सहारा लेना उन्हें ही ‘सबक’ सिखा देगा। हां
मुझे इतना जरुर पता है, कि दुर्गा शक्ति नागपाल ने अगर लखनऊ में रेत-खनन माफियाओं
का मेला कभी देखा होता, तो वे उन्हें दौड़ाने का काम कभी न करतीं। दूसरे दुर्गा
शक्ति नागपाल या उनके खानदान में किसी ने कभी रेत-खनन का अवैध धंधा भी नहीं किया
था। सो भला दुर्गा नागपाल को पता भी कैसे होता कि, सरकार में कैसे बंदरबांट होती
है, रेत खनन के पट्टों (ठेकों) की। कुल मिलाकर मुझे तो यही लगता है कि, सरकार ने
भले ही दुर्गा शक्ति नागपाल को सोच-समझकर निलंबित करके, उन्हें ‘औकात’ में लाने की कोशिश
की हो, लेकिन दुर्गा को सत्ता के साथ रेत खनन-माफिया की ‘जुगलबंदी’ का अहसास कतई नहीं
था। वरना भला वे भी बैठे-बिठाये फटे में टांग क्यों अड़ातीं?
अब कोई भी नया आदर्शवादी अफसर कोई कदम उठाने के पहले सौ बार सोचेगा .पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर कितना घातक है पता चल गया होगा सबको .
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