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Thursday 13 February 2014

भारत में कवियों के गिरोह बने हुए हैं- लक्ष्मीशंकर वाजपेयी


भारत में कवियों के गिरोह बन गये हैं। ज्यादातर कवि अब मंच पाने के लालच में कविता को भूलते जा रहे हैं। हास्य के नाम पर भौंड़ापन और चुटकले......
POET/SINGER LAXMI SHANKAR VAJPAI with CRIMES WARRIOR




शेष बचे हैं। हास्य-व्यंग्य की हालत बदतर हो रही है। अब कविता राष्ट्र-समाज हित के मद्देनजर नहीं लिखी जा रही है। कविता का औद्योगिकीकरण हो गया है। अब कविता के पीछे न तो श्रोता भाग रहा है। न ही कविता के पीछे कवि दौड़ रहा है। मंच पर जो कुछ हो रहा है, वो आने आईंदा के लिए और पीढ़ियों के लिए खतरनाक है। जब साहित्य का समझदार श्रोता ही नहीं बचेगा, तो फिर कवि और कविता का भी भगवान ही मालिक है।
यह तमाम और बेबाक और सटीक बातें भारत के मशहूर गीत, गज़लकार और कवि मन के धनी श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने  कीं और कहीं। श्री वाजपेयी यू ट्यूब पर संचालित अंतरराष्ट्रीय चैनल क्राइम्स वॉरियर CRIMES WARRIOR http://www.youtube.com/user/CrimesWarrior के एडिटर-इन-चीफ संजीव चौहान से दिल्ली स्थित आवास पर बात कर रहे थे। अंतरराष्ट्रीय पटल पर लक्ष्मी शंकर वाजपेयी काव्य- कविता और गज़ल के क्षेत्र में भारत के सिरमौर हैं। हमेशा शांत रहकर बेहतर लिखने वालों में श्री वाजपेयी का नाम चार दशक से शुमार है।
देश में काव्य, कविता और गज़ल-गीत को लेकर बहुत कुछ बदला, लेकिन श्री वाजपेयी नहीं बदले। लेखन के क्षेत्र में न तो श्री वाजपेयी की राह का कोई रोड़ा बना। न ही श्री वाजपेयी किसी की राह का रोड़ा बने।
कब क्या और कैसे लिखना है? अपने मामले में श्री वाजपेयी ने खुद तय किया और उस पर अमल किया। उनके लिखे पर किसने क्या टिप्पणी की? इससे ज्यादा सरोकार श्री वाजपेयी को इस बात से रहा कि जो, उन्होंने लिखा वे उससे संतुष्ट हैं या नहीं, या फिर उनके लिखे में सुधार की और गुंजाईश कहां और कैसे थी?
एक सवाल के जबाब में श्री वाजपेयी ने माना कि भारत में आज कवियों के गैंग (गिरोह) बन चुके हैं। सब अपने-अपने को आगे बढ़ा रहे हैं। ज्यादातर अपना अपने चहेते कवि/ कवयत्री को "मंच" प्रदान कर रहा है। मंच और कविता के लिए यह घटिया परंपरा और सोच खतरनाक साबित हो रही है और आईंदा भी इसके रिजल्ट खतरनाक ही सामने आयेंगे। एक समय वो आ जायेगा, जब कविता बचेगी ही नहीं। जब कविता मर जायेगी तो कवि भी नहीं बचेगा। श्री वाजपेयी के मुताबिक काव्य जगत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। कमी है तो उन्हें आगे बढ़ाने वालों की सोच में। जब वरिष्ठ कवि गैंगवार के शिकार खुद ही हो रहे हैं, तो वे प्रतिभायें कैसे खोज पायेंगे। ऐसे में प्रतिभाएं खुद ही पीछे हो जायेंगी। जब नई प्रतिभाओं को मंच नहीं मिलेगा, और पुरानी प्रतिभायें सिक्के की मानिंद चलन से बाहर होती जायेंगीं, तो भविष्य में न कवि बचेगा न कविता।
मंच की राजनीति के साथ-साथ श्री वाजपेयी इस बात से भी परेशान और दुखी नज़र आये, कि हास्य-व्यंग्य के नाम पर मंचों पर अब सिर्फ चुटकलेबाजी, वह भी घटिया और भौंड़े स्तर की चुटकलेबाजी हो रही है। हास्य के नाम पर चुटकले सुनाकर तालियां बटोरना ही जब मकसद शेष रह जाये, तो ऐसे में समझिये सब कुछ दांव पर लगना तय है। इस सबके बाद भी श्री वाजपेयी ने एक सवाल के जबाब में बेबाकी से माना कि, वो मौजूदा हालातों से दुखी, हैरान हैं मगर हताश कतई नहीं। बकौल वाजपेयी- "जमाना क्या कर रहा है, यह देखने वाले तमाम लोग हैं, मैंने खुद के लिए और समाज के लिए क्या किया है, क्या कर रहा हूं, मैं अपने किये पर शर्मिंदा न होऊं मेरे लिये और मेरी ओर से समाज के लिए अगर इतना ही मिल जाये तो भी बहुत सही रहेगा।"

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