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Wednesday 3 September 2014

तुम्हारी तस्वीरों में सब-कुछ, सिवाय तुम्हारे...

घर की साफ-सफाई करते मिली फटी-पुरानी यादों की एलबम में मौजूद कल तुम्हारी तमाम तस्वीरों में दिल-दिमाग से उतर और झांककर देख लिया,
-किसी तस्वीर में तुम्हारा चेहरा,
-किसी तस्वीर में माथे की लाल गोल चौड़ी-बड़ी सी बिंदी,
-किसी तस्वीर में मेंहदी लगी खिलखिलाती तुम्हारे हाथों की हथेलियां,
-किसी में तस्वीर में खिलखिलाते तुम्हारे लव,
-किसी तस्वीर में कांधों पर तुम्हारे गेसुओं की दो अलग-अलग काली-लंबी चोटियां,
-किसी तस्वीर में सुराही सी लंबी तुम्हारी गर्दन,
-किसी तस्वीर में आसमां में निकलते-डूबते चांद को निहारती तुम्हारी आंखे,
-किसी तस्वीर में गांव के कुंए पे तुम्हारे हाथों में मौजूद पानी से भरी वो पुरानी बाल्टी,
-किसी तस्वीर में मुनिया को गोदी में लोरी सुनाकर सुलाते-सुलाते, नींद से बोझिल तुम्हारी आंखें,
-किसी तस्वीर में महावर से रचे तुम्हारे पांव
सब कुछ नज़र आया। तुम्हारी यादों की श्वेत-श्याम, उस एलबम में मुझे। ऐसे जैसे, कल ही की यादें हों। यह तो बताओ फिर तुम,

-तुम्हारी वो अल्लहड़ खिलखिलाहट की बेसाख्ता आवाज, मुझे उन तस्वीरों में क्यों दिखाई-और सुनाई नहीं दी, जिन्हें देखकर मैं बेबस और तुम्हारी मजबूत बाहें मुझे संभालने को विवश हो जाया करती थीं...यह कहते हुए....
-हम न होंगे, तो तुम्हें कौन संभालेगा यूं ?
-वक्त किसी का नहीं होता, यूं ही मत टूट जाया करो, मिलकर मुझसे तुम।
-आज जो हाथ, एक-दूसरे के हाथ में, इस जहां के बाजार में जो छूटे हमारे हाथ, तो कौन थामेगा,
मुझे और तुम्हें...मुझसा और तुमसा.....।

 चौहान राजा

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