यह पासपोर्ट सेवा केंद्र है या मछली बाजार....जैसा मैने देखा
-संजीव चौहान-
(क्राइम्स वॉरियर न्यूज ब्यूरो)
गाजियाबाद, 26 मार्च 2015
आप कितने ही पढ़े-लिखे हों...कितने ही सम्मानित पद कार्यरत हों। साहिबाबाद साइट-4 स्थित गाजियाबाद के पासपोर्ट दफ्तर का प्राइवेट ठेकेदार की दिहाड़ी-मजदूरी करने वाला अदना सा गार्ड आपकी ऐसी-तैसी कर सकता है। भले ही वो आपके या अपने नाम की स्पेलिंग लिखना न जानता हो। नौकरी प्राइवेट गार्ड की और तुर्रा, विदेश-मंत्री सा। आखिर क्यों? किसने पाला है सम्मानित स्थान पर इन जलील गार्डों को। जिन्हें न बात करने का सलीका है....न किसी उम्र-दराज की उम्र का ख्याल। साफ सी बात है, ये गार्ड विदेश मंत्रालय के अधीन संचालित पासपोर्ट सेवा केंद्र के नुमाईंदों और सरकार ने ही पाल-पोसकर बड़े किये हैं।
पासपोर्ट सेवा केंद्रों पर ही अक्सर देखने को मिलता है कि यहां चोर के ऊपर मोर बैेठे हैं। मतलब जब इन केंद्रों पर दलालों की भरमार हुई, तो इससे बचने के लिए सरकार ने आधा काम टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विस) के हवाला कर दिया। ताकि सरकारी और प्राइवेट वाले एक दूसरे पर नजर बनाये रखें। लेकिन समस्या का समाधान इससे नहीं हुआ।
दोनो में कुत्ते बिल्ली का सा बैर है। कोई किसी को फूटी आंख नहीं सुहाता है। सरकारी कर्मचारी, टीसीएस कर्मचारियों को चोर-नजर से देखते हैं, तो टीसीएस वाले सरकारी बाबूओं की नाक पर कुंडली मार कर बैठे रहते हैं। खामियाजा झेलना पड़ रहा है, उस बेबस-बेकसूर जनता को, जो 1000-1500 रुपये देकर अपना पासपोर्ट बनवाने की उम्मीद रखकर इन पासपोर्ट सेवा केंद्रों पर जाती है। मतलब सरकार को दाम भी परखाओ और उनके निकम्मे मुस्टंडों से अपनी ऐसी-तैसी भी कराओ।
कुछ ऐसा ही बाकया पेश आया 'क्राइम्स-वॉरियर' के साथ। क्राइम्स वॉरियर पासपोर्ट आवेदक के बनकर साहिबाबाद गाजियाबाद साइट-4 स्थित पासपोर्ट सेवा केंद्र पहुंचा। पहला दिन "ABC" काउंटरों पर धक्के खाने में गुजरने से बच गया। क्योंकि केंद्र के अंदर यह बात फैल चुकी थी, कि कोई मीडिया वाला आया हुआ है।
पहले दिन फाइल में कुछ आपत्तियां दर्ज करके, दस्तावेज पूरे करवाकर दुबारा आने को कहा गया। 'B' काउंटर पर बताया गया, कि एनेक्श्चर 'D' बनवाकर जमा कराना है। दूसरी बार क्राइम्स वॉरियर एनेक्श्चर D के साथ पहुंचा। महज एक एफीडेविट जमा कराने की उम्मीद में सुबह साढ़े ग्यारह बजे से शाम के 4 बज गये। मगर नंबर न आना था न आया। इसके ठीक कुछ देर बाद नंबर आया।
एपीओ मीना सिंह के कमरे में यह संवाददाता पहुंचा। उन्हें बताया कि एक अदद कागज जमा कराने की उम्मीद में आज का पूरा दिन निकल चुका है। मीना सिंह ने कागज जांचे-परखे और उठाकर एक आपत्ति जड़ दी। आपकी फलां फाइल में एनेक्श्चर 'D' नहीं, 'E' लगेगा। मीना सिंह को लाख समझाया कि, एनेक्श्चर D आपके ही मातहतों ने मंगाया है। अगर एनेक्श्चर E, ही लगना था, तो भी डी क्यों मंगाया। मतलब इसका ठीकरा भी बिचारे आवेदनकर्ता के ही सिर।
26 मार्च 2015 को एनेक्श्चर ई के साथ यह संवाददाता पासपोर्ट सेवा केंद्र पहुंचा। इस बार मीना सिंह ने तत्परता दिखाई। शायद वे समझ चुकी थीं, कि बात का बतंगड़ बन सकता है। सो उन्होंने अपने स्तर से जो बन पड़ता था, सो सबकुछ कर दिया। इसके बाद ए काउंटर पर पहुंचा दिया गया। वहां कई बार टीसीएस महिला कर्मी से गुजारिश की गयी, कि वो आवेदक के आधार-कार्ड को भी स्कैन करके बी पर भेज दे। मगर भला किसकी मजाल जो उस टीसीएस की महिलाकर्मी से आधार कार्ड स्कैन करा सके। बी-काउंटर पर पहुंचा, तो वहां से सी-काउंटर पर भेज दिया गया। सी काउंटर पर कोई मिस्टर भंडारी ने अटैंड किया। तमीज से पेश आये। मगर यहां भी लोचा हो गया। भंडारी जी ने फरमाया कि फाइल में जो एड्रेस-प्रूफ मतलब आधार कार्ड की फोटे कॉपी लगी है, वह स्कैन करके सिस्टम में नहीं डाला गया है। यानि वही बात, जिसके लिए आवेदक काफी देर तक, काफी देर पहले ही ए काउंटर की टीसीएस महिलाकर्मी से रिरियाता रहा। दुबारा फिर आवेदक उसी प्रक्रिया का शिकार बनाया जाता है, जिससे वो कुछ देर पहले ही गुजरा था। मतलब सी से फिर ए, बी और फिर सी काउंटर पर धक्के खाता हुआ पहंचा, आवेदक।
(वीडियो लिंक)
अब तक करीब 11 बजकर 15 मिनट हो चुके थे। सी-काउंटर पर खड़ी टीसीएस की एक महिला कर्मी काम करने के नाम पर चीख-पुकार मचाये थी। जबकि दो पुरुष और एक अधेड़ महिला कर्मी अपनी कुर्सियों पर जमे काम में जुटे थे। बाकी तमाम कुर्सियां खाली थीं। एक कर्मचारी चाय बांट रहा था। बाकी वो भीड़ जिसने सरकारी खजाने में लाखों रुपया जमा करा रखा था, वो वहां धक्के खा रही थी। छोटे छोटे बच्चे भीड़ से अकुला कर रो-चिल्ला रहे थे। सी काउंटर की ज्यादातर खाली पड़ी कुर्सियों पर आवेदकों की फाइलें बिखरी पड़ी थीं। इन कुर्सियों के कर्मचारी कहां हैं पूछने पर बताया गया, कि थोड़ा इंतजार कर लो यहीं कहीं होंगे आ जायेंगे।
इसके बाद मैं सी-काउंटर का मोबाइल में वीडियो शूट कर लिया। जिसमें खाली पड़ी कुर्सियां बता रही हैं, कि गाजियाबाद पासपोर्ट सेवा केंद्र के अंदर की हकीकत क्या है?
सबसे ज्यादा मुझे हंसी और रोना तब आया, जब इतना सब क्रिया-कर्म कराके जब हम निकास द्वार पहुंचे। निकास द्वार पर खड़ी महिला प्राइवेट सुरक्षाकर्मी ने हमसे कहा सर यह 'फीडबैक' फार्म भर दीजिये। हमने फार्म भरा, जिसमें लिखा कि तुम्हारे इस पासपोर्ट सेवा केंद्र के टॉयलेट-बाथरुम की स्थिति सबसे बढ़िया थी, बाकी सब कुछ टॉयलेट की मानिंद ही नजर आ रहा था।
क्लिक करें वीडियो
-संजीव चौहान-
(क्राइम्स वॉरियर न्यूज ब्यूरो)
गाजियाबाद, 26 मार्च 2015
आप कितने ही पढ़े-लिखे हों...कितने ही सम्मानित पद कार्यरत हों। साहिबाबाद साइट-4 स्थित गाजियाबाद के पासपोर्ट दफ्तर का प्राइवेट ठेकेदार की दिहाड़ी-मजदूरी करने वाला अदना सा गार्ड आपकी ऐसी-तैसी कर सकता है। भले ही वो आपके या अपने नाम की स्पेलिंग लिखना न जानता हो। नौकरी प्राइवेट गार्ड की और तुर्रा, विदेश-मंत्री सा। आखिर क्यों? किसने पाला है सम्मानित स्थान पर इन जलील गार्डों को। जिन्हें न बात करने का सलीका है....न किसी उम्र-दराज की उम्र का ख्याल। साफ सी बात है, ये गार्ड विदेश मंत्रालय के अधीन संचालित पासपोर्ट सेवा केंद्र के नुमाईंदों और सरकार ने ही पाल-पोसकर बड़े किये हैं।
पासपोर्ट सेवा केंद्रों पर ही अक्सर देखने को मिलता है कि यहां चोर के ऊपर मोर बैेठे हैं। मतलब जब इन केंद्रों पर दलालों की भरमार हुई, तो इससे बचने के लिए सरकार ने आधा काम टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विस) के हवाला कर दिया। ताकि सरकारी और प्राइवेट वाले एक दूसरे पर नजर बनाये रखें। लेकिन समस्या का समाधान इससे नहीं हुआ।
दोनो में कुत्ते बिल्ली का सा बैर है। कोई किसी को फूटी आंख नहीं सुहाता है। सरकारी कर्मचारी, टीसीएस कर्मचारियों को चोर-नजर से देखते हैं, तो टीसीएस वाले सरकारी बाबूओं की नाक पर कुंडली मार कर बैठे रहते हैं। खामियाजा झेलना पड़ रहा है, उस बेबस-बेकसूर जनता को, जो 1000-1500 रुपये देकर अपना पासपोर्ट बनवाने की उम्मीद रखकर इन पासपोर्ट सेवा केंद्रों पर जाती है। मतलब सरकार को दाम भी परखाओ और उनके निकम्मे मुस्टंडों से अपनी ऐसी-तैसी भी कराओ।
कुछ ऐसा ही बाकया पेश आया 'क्राइम्स-वॉरियर' के साथ। क्राइम्स वॉरियर पासपोर्ट आवेदक के बनकर साहिबाबाद गाजियाबाद साइट-4 स्थित पासपोर्ट सेवा केंद्र पहुंचा। पहला दिन "ABC" काउंटरों पर धक्के खाने में गुजरने से बच गया। क्योंकि केंद्र के अंदर यह बात फैल चुकी थी, कि कोई मीडिया वाला आया हुआ है।
पहले दिन फाइल में कुछ आपत्तियां दर्ज करके, दस्तावेज पूरे करवाकर दुबारा आने को कहा गया। 'B' काउंटर पर बताया गया, कि एनेक्श्चर 'D' बनवाकर जमा कराना है। दूसरी बार क्राइम्स वॉरियर एनेक्श्चर D के साथ पहुंचा। महज एक एफीडेविट जमा कराने की उम्मीद में सुबह साढ़े ग्यारह बजे से शाम के 4 बज गये। मगर नंबर न आना था न आया। इसके ठीक कुछ देर बाद नंबर आया।
एपीओ मीना सिंह के कमरे में यह संवाददाता पहुंचा। उन्हें बताया कि एक अदद कागज जमा कराने की उम्मीद में आज का पूरा दिन निकल चुका है। मीना सिंह ने कागज जांचे-परखे और उठाकर एक आपत्ति जड़ दी। आपकी फलां फाइल में एनेक्श्चर 'D' नहीं, 'E' लगेगा। मीना सिंह को लाख समझाया कि, एनेक्श्चर D आपके ही मातहतों ने मंगाया है। अगर एनेक्श्चर E, ही लगना था, तो भी डी क्यों मंगाया। मतलब इसका ठीकरा भी बिचारे आवेदनकर्ता के ही सिर।
26 मार्च 2015 को एनेक्श्चर ई के साथ यह संवाददाता पासपोर्ट सेवा केंद्र पहुंचा। इस बार मीना सिंह ने तत्परता दिखाई। शायद वे समझ चुकी थीं, कि बात का बतंगड़ बन सकता है। सो उन्होंने अपने स्तर से जो बन पड़ता था, सो सबकुछ कर दिया। इसके बाद ए काउंटर पर पहुंचा दिया गया। वहां कई बार टीसीएस महिला कर्मी से गुजारिश की गयी, कि वो आवेदक के आधार-कार्ड को भी स्कैन करके बी पर भेज दे। मगर भला किसकी मजाल जो उस टीसीएस की महिलाकर्मी से आधार कार्ड स्कैन करा सके। बी-काउंटर पर पहुंचा, तो वहां से सी-काउंटर पर भेज दिया गया। सी काउंटर पर कोई मिस्टर भंडारी ने अटैंड किया। तमीज से पेश आये। मगर यहां भी लोचा हो गया। भंडारी जी ने फरमाया कि फाइल में जो एड्रेस-प्रूफ मतलब आधार कार्ड की फोटे कॉपी लगी है, वह स्कैन करके सिस्टम में नहीं डाला गया है। यानि वही बात, जिसके लिए आवेदक काफी देर तक, काफी देर पहले ही ए काउंटर की टीसीएस महिलाकर्मी से रिरियाता रहा। दुबारा फिर आवेदक उसी प्रक्रिया का शिकार बनाया जाता है, जिससे वो कुछ देर पहले ही गुजरा था। मतलब सी से फिर ए, बी और फिर सी काउंटर पर धक्के खाता हुआ पहंचा, आवेदक।
(वीडियो लिंक)
अब तक करीब 11 बजकर 15 मिनट हो चुके थे। सी-काउंटर पर खड़ी टीसीएस की एक महिला कर्मी काम करने के नाम पर चीख-पुकार मचाये थी। जबकि दो पुरुष और एक अधेड़ महिला कर्मी अपनी कुर्सियों पर जमे काम में जुटे थे। बाकी तमाम कुर्सियां खाली थीं। एक कर्मचारी चाय बांट रहा था। बाकी वो भीड़ जिसने सरकारी खजाने में लाखों रुपया जमा करा रखा था, वो वहां धक्के खा रही थी। छोटे छोटे बच्चे भीड़ से अकुला कर रो-चिल्ला रहे थे। सी काउंटर की ज्यादातर खाली पड़ी कुर्सियों पर आवेदकों की फाइलें बिखरी पड़ी थीं। इन कुर्सियों के कर्मचारी कहां हैं पूछने पर बताया गया, कि थोड़ा इंतजार कर लो यहीं कहीं होंगे आ जायेंगे।
इसके बाद मैं सी-काउंटर का मोबाइल में वीडियो शूट कर लिया। जिसमें खाली पड़ी कुर्सियां बता रही हैं, कि गाजियाबाद पासपोर्ट सेवा केंद्र के अंदर की हकीकत क्या है?
सबसे ज्यादा मुझे हंसी और रोना तब आया, जब इतना सब क्रिया-कर्म कराके जब हम निकास द्वार पहुंचे। निकास द्वार पर खड़ी महिला प्राइवेट सुरक्षाकर्मी ने हमसे कहा सर यह 'फीडबैक' फार्म भर दीजिये। हमने फार्म भरा, जिसमें लिखा कि तुम्हारे इस पासपोर्ट सेवा केंद्र के टॉयलेट-बाथरुम की स्थिति सबसे बढ़िया थी, बाकी सब कुछ टॉयलेट की मानिंद ही नजर आ रहा था।
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