Thursday, 19 January 2012
माफ करना सचिन- तुम्हें चंबल का पानी नहीं पीने दिया...!
हां, सही बात है। मैं माफी मांग रहा हूं। खुले दिल-ओ-दिमाग से। अपने छोटे भाई समान सचिन विजय सिंह से। माफी इसलिए, क्योंकि मुझे लग रहा है, कि जाने-अनजाने मुझसे गलती हो गयी है। गलती ये कि सचिन तुमने 29-30 दिसंबर 2011 को आधी रात के वक्त चंबल नदी के ऊपर से गुजरते वक्त गुजारिश की थी। "सर मुझे चंबल का पानी पीना है।" क्योंकि मैंने बचपन से ही बहुत करीब से देखा है, रात के अंधेरे में चंबल के ऊंचे-नीचे, ऊबड़-खाबड़ किनारों को । चंबल नदी के गहरे पानी, चंबल नदी के लंबे-चौड़े दिल दहला देने वाले फाट (एक किनारे से दूसरे किनारे की चौड़ाई) और ऊंचे संकरे पुल को। चंबल में मौजूद घड़ियालों की पानी में उठा-पटक को। यही सब सोचकर अपने अनुभव के चलते मैंने तुम्हें, रोहित (कैमरामैन) और ड्राइवर रविंद्र को गाड़ी से उतरकर चंबल के किनारे जाकर उसका पानी पीने से मना कर दिया था। उम्र और अनुभव में तुमसे बड़ा होने के चलते मैंने ऐसा किया था। मुझे ये कतई गवारा नहीं था, कि चंबल सी खतरनाक नदी के किनारे बियाबान जंगल में तुम सब उतरकर कोई जोखिम लो।
इस बात को अभी 20 दिन ही तो बीते हैं। तुम हम सबको छोड़कर चले गये। बिना हम सबका एक अल्फाज सुने। बिना अपने दर्द का एक क़तरा हमें दिये। 16-17 जनवरी को रात करीब 12 बजकर 45 मिनट पर तुमने हार्ट-अटैक का बहाना लिया और चुपचाप कूच कर गये। हम सबको बीच सफर में छोड़कर, अपनी मंजिल की ओर। सचिन आज तुम स-शरीर हमारे साथ नहीं हो। इसका मतलब ये भी तो नहीं, कि तुम हमारे बीच नहीं हो। तुम हो, थे और रहोगे। कम से कम तब तक जब तक मेरी सांस में सांस है।
सचिन याद है मुझे तुम्हारे साथ- मुरैना, भिंड, ग्वालियर, महगांव, मऊरानीपुर, झांसी, ललितपुर के रामपुर गांव में गुजरा हर लम्हा। आधी रात को झांसी से गब्बर सिंह के गांव (रामपुर, जिला ललितपुर, उत्तर-प्रदेश) के लिए रवानगी। वहां धुप्प अंधेरे में मिट्टी के तेल की डिबिया (दीपक) की रोशनी में जंगल का "लुक" देकर फ्रेम बनाकर "जेल-डायरी" की शूटिंग। और फिर उसके बाद रात को ही महगांव(जिला-भिंड, मध्य-प्रदेश) में पूर्व दस्यु (डकैत) मोहर सिंह के घर पहुंचना। मैंने तुमसे कहा भी था, कि मोहर सिंह के गांव में रात को बिजली नहीं होगी, ऐसे में शूटिंग में दिक्कत आयेगी। तो तुमने रोहित से गाड़ी में कुछ कानाफूसी करते हुए मुझे जबाब दिया...
"सर डाकू के गांव में शूटिंग के वक्त बिजली (रोशनी) का क्या काम ? गांव में आधी रात को भौंकते कुत्तों की डरावनी आवाज। वीरान गलियों का सीना चीरता, किसी भी इंसान का दिल दहला देने वाला सन्नाटा। मोहर सिंह और आपके पीछे कैमरा फ्रेम में रात के अंधेरे में जलता आग का अलाव। यही सब माहौल तो "जंगल" और रात के सन्नाटे का "लुक" देगा। चिंता मत करिये। मैं और रोहित (कैमरामैन) हैं न आपके साथ। चलिये तो सही। न आपको भी देवानंद बना दिया मोहर सिंह के सामने, तो कहना।"
सचिन, अब जब तुमने हम सबसे दूर जाकर अपनी अलग दुनिया बसा ली है, तो भी तुम्हारे साथ बीता हर लम्हा याद आकर रुला रहा है। सबको नहीं। सिर्फ उन्हीं को, जो तुम्हें समझ पाये और जिनसे तुम जुड़ पाये। चंबल घाटी की यात्रा के दौरान तुमने जो कहा था। वाकई, आधी रात को महगांव में पूर्व दस्यु सरगना मोहर सिंह के घर पहुंचने पर वो कर दिया। मोहर सिंह की चौपाल पर अंधेरी रात में शूटिंग के लिए फ्रेम बनाते समय तुमने मेरे बैकग्राउंड में आग का अलाव जलवाया। और मुझे देवानंद का स्टाइल देने के लिये गले से अपना मफलर उतारकर, मेरे गले में उसी तरह लपेट दिया, जिस स्टाइल में देवानंद अपने गले में मफलर लपेटते थे।
सचिन तुमने मुझे जो देवानंद स्टाइल दिया था, वो देखने के लिए अब तुम हमारे बीच नहीं हो। हां, इस बार की जेल-डायरी में तुम्हारे और रोहित के बनाये फ्रेम वाली जेल-डायरी (पूर्व दस्यु मोहर सिंह) ही जा रही है। मोहर सिंह की जेल-डायरी शूट करने के बाद रात करीब 11 बजे हम लोग दिल्ली के लिए रवाना हो गये थे। महगांव (मोहर सिंह का गांव) से निकलते ही तुमने दोहराया...
"सर दिल्ली से आते समय तो शूट की जल्दबाजी में आपने चंबल का पानी नहीं पीने दिया। अब तो दो के बजाये हम लोगों ने चार जेल डायरी शूट कर ली हैं। अब तो रास्ते में चंबल नदी पड़ने पर कार रुकवा लेना। ताकि मैं चंबल का पानी पी सकूं।" तुम्हारी इतनी बात सुनते ही हमारी कार के ड्राइवर रविंद्र चंबल के किस्से सुनाने लगा। रविंद्र से ही पता चला था हम सबको, कि चंबल नदी के बारे में कुछ भी उल्टा-पुल्टा बोलने पर वे "बलि" ले लेती हैं। चंबल नदी खुश भी जल्दी होती हैं, और नाराज भी। लेकिन मैंने रात के अंधेरे का वास्ता तुम सबको देकर, चंबल नदी का पानी पीने से रोक दिया था। ड्राइवर से कह दिया कि वो चंबल पर कार न रोके। रात का वक्त है और कोहरा भी भयानक। इलाका भी खतरनाक है। चंबल नदी में और उसके किनारों पर घड़ियाल भी रहते हैं। इसके बाद तुमने चंबल नदी का पानी पीने की बात आखरी सांस तक नहीं दोहराई। और जाने-अनजाने मुझसे हुई गलती के चलते तुम चंबल का पानी पीये बिना ही दुनिया को अलविदा कह गये।
अब जब तुमने हम सबको छोड़ दिया है। तब याद आ रहे हैं तुम्हारे वो शब्द...
"सर चंबल का पानी जरुर पी लेने देना। प्लीज। पहली बार चंबल नदी देखी है। नाम तो बहुत सुना है। बस, लोग कहते हैं कि चंबल का पानी जरुर पीना चाहिए।" आज तुम्हारी अनुपस्थिति में मुझे लग रहा है, कि कहीं जाने-अनजाने मुझसे हुई गलती की सज़ा तुमने तो नहीं भोग ली। ज़िंदगी की बाजी हारकर। क्या मैं अगर तुम्हें चंबल का पानी पी लेने देता ? तो इस बार की जेल-डायरी की ओपनिंग-एंड का वीओ (व्यॉस-ओवर) तुम ही करते ! इस बार भी हर बार की तरह? क्या वाकई सचिन मैंने तुम्हारी और ड्राइवर रविंदर की बात की अनसुनी करके, तुम्हारे साथ गलत कर दिया है? अगर हां। और सच यही है। तो सचिन मैं तुमसे माफी ही मांग सकता हूं, इस दुनिया के सामने। बे-झिझक। मुझे माफ करना सचिन।
इस सबसे भी बड़ी बात सचिन आज याद आ रही है तुमसे जुड़ी। वो ये कि जेल-डायरी में तुम्हारे "व्यॉस-ओवर"(वीओ) को लेकर मुझसे तमाम लोगों ने सामने और मोबाइल पर सैकड़ों बार पूछा। जेल-डायरी में, ये व्यॉस-ओवर किसका है ? तुम्हारे व्यॉस-ओवर को या फिर तुम्हें किसी की नज़र न लग जाये। महज इसलिए मैंने तमाम लोगों से यही कहकर टाल दिया...जेल डायरी के लिए व्यॉस-ओवर आर्टिस्ट विशेष-तौर पर बाहर से "हायर" किया गया है। ये बात तुमको भी पता थी। और जेल-डायरी के ही साथियों तक शामिल थी। इसके बाद भी तुम हम सबसे दूर जाकर, कम से कम मुझे तो "गूंगा" ही कर गये।
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nice article, very touching
ReplyDeleteArticle coming from the core of your heart
ReplyDeleteNutan Thakur
Lucknow
शुक्रिया नूतन जी, मुमताज जी। इसी तरह पढ़कर ब्लॉग पर मौजूद कमियां भी बताती रही।
Deleteimane zazbato ko yathart chitrit kiya hai ....divangat aatma ko shardapurn shradanjli .
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