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Wednesday, 29 May 2013

अखिलेश यादव- सूबे में सिपाही से साहब तक सुधरने को राजी नहीं है...बताओ क्या करोगे अब?

18 मई 2013 बरेली पुलिस लाइन
यूपी की मौजूदा समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार सूबे की पुलिस को समझदार बनाने में जुटी है। सरकार चाहती है कि उसकी पुलिस देश के बाकी राज्यों की पुलिस का रोल माडल बने। इसके लिए अभियान छेड़ा गया है। मीडिया-पुलिस की बैठकें हो रही हैं। जिला और मण्डल स्तर पर। जिम्मेदारी दी गयी है सूबे के उप-सूचना निदेशक डॉ. अशोक कुमार शर्मा को। डॉ. शर्मा से राज्य सरकार की उम्मीद है कि, वो कैसे भी पुलिस की छवि सुधरवा दें। शर्मा जी कोशिश में भी लगे हैं। जिस जिले में जाते हैं, वहां कुछ दिन पुलिस सुधरने का वीणा भी उठाती है। लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात। मीटिंग और सुधरने का खुमार दो-चार दिन में उतरते ही, सड़क पर टहल रहा सिपाही-हवलदार फिर कुछ ऐसा कर गुजरता है,जो पुलिस की ऐसी-तैसी करने को काफी होता है। शर्मा जी की मीटिंगों को घंटों मजबूरी में झेलने के बाद जिले के कप्तान/ आईजी एअर कंडीश्नरों की ठंडी हवा में उड़ने लगते हैं। सड़क-थाने-चौकी में पुलिसकर्मी फिर वर्दी और जनता की ऐसी-तैसी करने पर उतर आते हैं। सवाल यह पैदा होता है, कि क्या वाकई पुलिस इस कदर बिगड़ चुकी है, कि उसे सुधारने की कुव्वत अब किसी में नहीं है।
18 मई 2013 को ऐसी ही एक मीडिया-पुलिस की पंचायत में मैं भी गया था। यह पंचायत बरेली जिला पुलिस लाइन में बैठी थी। खूब शोर हुआ। लगा कि बरेली की पुलिस तो आज ही सुधर गयी। लौटकर दिल्ली पहुंचा। दिल्ली पहुंचने पर लगा कि, यूपी पुलिस में खराब सिपाही-हवलदार उतने ज्यादा नहीं है, जितने यहां के आला पुलिस अधिकारी। पंचायत उठने के बाद सब के सब फिर से मीडिया को खरीदा हुआ समझने लगे। पंचायत में दुखड़ा रो रहे थे, कि मीडिया उनकी बात नहीं सुनती। गुडवर्क नहीं दिखाती। बुरे काम उजागर करती है मीडिया। मीडिया एक तरफा है। पंचायत खतम हुए अभी चंद दिन भी नहीं गुजरे हैं, सुनने में आया है कि, बरेली के आला-नंबरदार पुलिस अधिकारी ही फिर पटरी से उतर गये हैं। उनकी मनोकामना है कि, मीडिया से रु-ब-रु हुए बिना ही, मीडिया उनके लिए 'सरकारी भोंपू' की तरह काम करने लगे। माफ करना सूबे के मुख्यमंत्री जी मीडिया, मीडिया है...खाकी का खानसामा या फालवर नहीं है। अगर मीडिया न हो तो तुम्हारी पुलिस तुम्हारे भी कपड़े फड़वा दे। इसी का नमूना है...कुछ दिन पहले जब एक तुम्हारा ही सिपाही तुम्हारी ही कार के आगे कूद पड़ा...अपनी मांगें पूरी कराने की उम्मीद पाले हुए। तुम्हारी सुरक्षा में तैनात तुम्हारी ही पीएसी के दो जवानों ने आपस में ही एक दूसरे को लहू-लुहान कर दिया था। 
सूबे की सल्तनत तुम्हें, अगर पुलिस सुधारनी है,  तो पहले महकमे के आला-अफसरों की "एअर कंडीश्नर" सुविधा वापिस ले लो। उन्हें बताओ कि, जब तक सिपाही की तरह काम नहीं करोगे, मीडिया के आगे-पीछे धक्के नहीं खाओगे...तब तक चेहरा साफ नहीं करवा पाओगे....क्राइम्स वॉरियर....
कैसा तमाशा हुआ था ? कैसे घड़ियाली आंसू बहा रहे थे बरेली रेंज और जिले के तमाम पुलिस अधिकारी बरेली पुलिस लाइन की पंचायत में? उसका मजबूत सूबत हैं, नीचे दिये गये उस बैठक के कुछ वीडियो....जो यू-ट्यूब YOU TUBE पर हमेशा मौजूद रहेंगे....एक्सक्लूसिवली CRIMES WARRIOR क्राइम्स वॉरियर के सौजन्य से.............
बरेली पुलिस लाइन में 18 मई 2013 को बुलाई गयी पुलिस-मीडिया की पंचायत में सूबे के पुलिस मुख्यालय में जनसंपर्क विभाग से भी कुछ आला-अफसर आये थे, जिनकी भाव भंगिमा ऐसा प्रदर्शित कर रही थी, जैसे वे सिर्फ खाना-पूर्ति करके अपनी नौकरी पूरी करना चाहते हों। नीचे दिये जा रहे लिंक को क्लिक करें...बरेली पुलिस लाइन में आयोजित मीटिंग के फोटोग्राफ्स के लिए...
http://www.facebook.com/media/set/?set=a.460388234044921.1073741826.100002212443156&type=3

यूपी पुलिस(UP POLICE) के इसी ड्रामे से जुड़े कुछ लेख पढ़ने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें...

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