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Monday, 8 December 2014

अशोक सिंघल और विनय कटियार खून की राजनीति करते हैं


बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी के इंटरव्यू ने धर्म के ठेकेदारों का हलक सुखाया सो सुखाया, रही-सही कसर पूरी कर दी अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञान दास के इंटरव्यू ने। ज्ञानदास ने मुंह खोला तो उसकी तपिश का अहसास अयोध्या से लेकर दिल्ली तक हुआ। धर्म के कई कथित ठेकेदार को ज्ञानदास की लगाई ज्वाला में इस कदर झुलस गये, कि उन्हें संभलने तक का मौका नहीं मिला। महंत ज्ञानदास का हू-ब-हू इंटरव्यू नीचे पढ़ें। इसी इंटरव्यू में उन्होंने खुलासा किया, कि हिंदू धर्म के ठेकेदार रामलला मंदिर को लेकर कितनी घटिया और खूनी राजनीति करते हैं। राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए किस हद तक धर्म के यह ठेकेदार साधू-संतों के तलवे चाटने को तैयार रहते हैं। 
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महंत ज्ञान दास, अध्यक्ष, अखाड़ा परिषद
नहीं हम लोग जो उस समय हाईकोर्ट का निर्णय आया था इलाहाबाद 
हाईकोर्ट का। उसके दूसरे तिसरे दिन
हम लोग सुलह समझौते की बात की थी। उसमें हाशिम अंसारी जी मेन थे। और रामलला विराजमान के भी लोग थे 
और निर्मोही अखाड़ा भी था। चक्रपाणि जी को भी बुलाया गया था हिंदू महासभा। सब एग्री थे। लेकिन उस बिल भी 
तैयार हो गया था। उस पर दस्खत नहीं हो पाया कोर्ट में लग नहीं पाया तब तक आगे लोग बढ़ गये। दिल्ली। तीन 
महीने का हमने टाइम दिया था। लेकिन उस पर भी जो है लोग करने नहीं दिये। विशेषकर विश्व हिंदू परिषद के लोगों
ने ही यह सब बाधा डाला। चाहे विनय कटियार हों या अशोक सिंघल हों। जनता जो इनको देखती जानती है यह धार्मिक
हैं, यह धार्मिक नहीं हैं यह अधर्मी लोग हैं। यह कभी भी भगवान राम के मंदिर के पक्ष में थे ही नहीं। कोई मतलब नहीं

है।.......
क्योंकि यह केवल अपना दुकान चलाते हैं। इनकी व्यवसाय चलती है। इसलिए इन्होंने इस तरीके से ऐसा होने नहीं

दिया। जिस तरीके से हम लोग पहल किये थे सुलह समझौते का उसमें दोनो इस देश के दोनो अवाम दोनो प्रकार के 

जो अवाम है मानव है वो सब दोनो खुश रहते। उसमें ऐसा कुछ नहीं होता कि आपस में कुछ ऐसा टिप्पणी होती। हम 

लोग ऐसा फैसला ऐसा कर ले गये थे। लेकिन आपस में लोगों को गुमराह करके यह अशोक सिंघल व्यक्तिगत हमारे 

पास दौड़कर तीन मर्तबा एक महीने के अंदर तीन मर्तबा आये, और उन्होंने इस तरीके से बातचीत हमसे की और 

उन्होंने उसको गुमराह हमसे तो कुछ नहीं कर पाये मना नहीं कर सकते..हम तो किसी की जल्दी मानते नहीं बाद में 

भगवान के...हमारे कहने का अभिप्राय यह है तो इन्होंने इस तरीके से गुमराह किया जैसे भास्कर दास जी के पास गये 

उनके......हाशिम अंसारी जी के पास विनय कटियार भाग के गये। इस तरीके से, इन लोगों को जरुरत नहीं थी इनकी 

कोई सुनने वाली नहीं थी। यह तो खाली हवाबाजी करके अपनी राजनीतिक रोटी सेंकते रहते हैं। इनका कोई लेना देना 

नहीं है क्योंकि यह लोग राम, रामजी के या मानवता का भला नहीं चाहते हैं यह सदा खून की राजनीति किये हैं इन 

लोगों ने वही इन्होंने चाहा है। और वो इसको उलझाये रहना चाहते हैं। जिससे इनका दुकान चलती रहे। यही इसलिए वो 

सुलह समझौता नहीं हुआ उसी दर्द को आज माननीय हाशिम अंसारी जी व्यक्त कर रहे हैं।

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