-क्राइम्स वॉरियर न्यूज ब्यूरो-
उन्नाव, 29 जनवरी 2015...यूपी की राजधानी लखनऊ से सटे उन्नाव शहर की जिला पुलिस लाइन परिसर में नरकंकालों के ढेर मिले हैं। पुलिस लाइन में छिपे इन नर-कंकालों को पुलिस ने नहीं, मजदूरों ने खोजा है। इन नर-कंकालों को खोजने वाले मजदूर पुलिस लाइन में ही इन दिनों रंग-रोगन का काम कर रहे हैं। कंकालों की अनुमानित संख्या 500 से ज्यादा बताई जा रही है।
पुलिस की नाक के नीचे दबे मिले इतनी बड़ी संख्या में नर-कंकालों की बरामदगी ने सूबे की सल्तनत और पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दिया है। किसी के पास माकूल जबाब नहीं है। हर संभावित जिम्मेदार अपनी गर्दन से फंदा निकालने के लिए "झूठ" और बहानेबाजी में जुटा है। सरकार पुलिस से और पुलिस अधिकारी अपने ही मातहतों से जबाब मांग रहे हैं। सब एक दूसरे को शक की नज़र से देखकर, अपना अपने को बचाने में जुट गया है।
पुलिस का कथन
जिस जगह नर-कंकाल मिले हैं, वहां करीब 30 साल पहले पोस्टमार्टम हाउस (मॉरच्यूरी/ विसरा-घर) था। यह नर-कंकाल उसी से जुड़े हैं। यह कोई नयी या हैरंतगेज बात नहीं है।
राज्य सरकार
मामले की जांच की जा रही है। जांच में जो दोषी पाया जायेगा उसके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी।
उन्नाव चिकित्सा विभाग
जिला चिकित्सालय के चीफ फार्मासिस्ट वीके शर्मा के मुताबिक-
अस्पताल में मौजूदा समय में करीब 300 अवशेष (नर-कंकाल के हिस्से) अभी भी मौजूद हैं। कई साल पहले उन्होंने जिले के डीएम और पुलिस अधीक्षक से इन्हें कानूनी प्रक्रिया द्वारा ठिकाने लगवाने का आग्रह किया था। आजतक कुछ नहीं हुआ।
क्राइम्स वॉरियर का सवाल
-पुलिस लाइन में इतने साल से रखे हुए इन नर-कंकालों को अब तक नियमानुसार कानूनी कार्यवाही के बाद ठिकाने क्यों नहीं लगाया गया?
-पुलिस को जब पता था कि यह नर-कंकाल तीस साल पुराने पोस्टमार्टम हाउस से जुड़े हैं, तो भी वो हाथ-पर-हाथ धरे क्यों बैठी रही?
-अगर पुलिस वाकई इन नर-कंकालों के प्रति गंभीर थी, तो फिर इन्हें इस कदर बे-तरतीबी से क्यों फैलाकर रखा गया कि इन पर नजर भी पड़ी, तो रंग-रोगन करने वाले मजदूरों की?
-जब कई साल पहले डीएम और एसपी से चीफ फार्मासिस्ट ने इस तरह के कंकालों को कानूनी तरीके से डिस्पोज-ऑफ करने की अनुमति मांगी थी, तो उस प्रक्रिया को पूरा क्यों नहीं किया गया?
उन्नाव, 29 जनवरी 2015...यूपी की राजधानी लखनऊ से सटे उन्नाव शहर की जिला पुलिस लाइन परिसर में नरकंकालों के ढेर मिले हैं। पुलिस लाइन में छिपे इन नर-कंकालों को पुलिस ने नहीं, मजदूरों ने खोजा है। इन नर-कंकालों को खोजने वाले मजदूर पुलिस लाइन में ही इन दिनों रंग-रोगन का काम कर रहे हैं। कंकालों की अनुमानित संख्या 500 से ज्यादा बताई जा रही है।
पुलिस की नाक के नीचे दबे मिले इतनी बड़ी संख्या में नर-कंकालों की बरामदगी ने सूबे की सल्तनत और पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दिया है। किसी के पास माकूल जबाब नहीं है। हर संभावित जिम्मेदार अपनी गर्दन से फंदा निकालने के लिए "झूठ" और बहानेबाजी में जुटा है। सरकार पुलिस से और पुलिस अधिकारी अपने ही मातहतों से जबाब मांग रहे हैं। सब एक दूसरे को शक की नज़र से देखकर, अपना अपने को बचाने में जुट गया है।
पुलिस का कथन
जिस जगह नर-कंकाल मिले हैं, वहां करीब 30 साल पहले पोस्टमार्टम हाउस (मॉरच्यूरी/ विसरा-घर) था। यह नर-कंकाल उसी से जुड़े हैं। यह कोई नयी या हैरंतगेज बात नहीं है।
राज्य सरकार
मामले की जांच की जा रही है। जांच में जो दोषी पाया जायेगा उसके खिलाफ कार्यवाही की जायेगी।
उन्नाव चिकित्सा विभाग
जिला चिकित्सालय के चीफ फार्मासिस्ट वीके शर्मा के मुताबिक-
अस्पताल में मौजूदा समय में करीब 300 अवशेष (नर-कंकाल के हिस्से) अभी भी मौजूद हैं। कई साल पहले उन्होंने जिले के डीएम और पुलिस अधीक्षक से इन्हें कानूनी प्रक्रिया द्वारा ठिकाने लगवाने का आग्रह किया था। आजतक कुछ नहीं हुआ।
क्राइम्स वॉरियर का सवाल
-पुलिस लाइन में इतने साल से रखे हुए इन नर-कंकालों को अब तक नियमानुसार कानूनी कार्यवाही के बाद ठिकाने क्यों नहीं लगाया गया?
-पुलिस को जब पता था कि यह नर-कंकाल तीस साल पुराने पोस्टमार्टम हाउस से जुड़े हैं, तो भी वो हाथ-पर-हाथ धरे क्यों बैठी रही?
-अगर पुलिस वाकई इन नर-कंकालों के प्रति गंभीर थी, तो फिर इन्हें इस कदर बे-तरतीबी से क्यों फैलाकर रखा गया कि इन पर नजर भी पड़ी, तो रंग-रोगन करने वाले मजदूरों की?
-जब कई साल पहले डीएम और एसपी से चीफ फार्मासिस्ट ने इस तरह के कंकालों को कानूनी तरीके से डिस्पोज-ऑफ करने की अनुमति मांगी थी, तो उस प्रक्रिया को पूरा क्यों नहीं किया गया?
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