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Monday, 8 December 2014

बाबरी मस्जिद-राम मंदिर पर मुसलमान का वो हू-ब-हू इंटरव्यू, जिसने नेताओं को पसीना ला दिया

बीच में टोपी लगाये हाशिम अंसारी
यह इंटरव्यू 3 दिसंबर 2014 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी का है। हाशिम साहब सन् 1950 से बाबरी मसजिद के ह़क की लड़ाई कोर्ट-कचहरियों में लड़ रहे हैं। 3 दिसंबर 2014 को हाशिम साहब ने मीडिया को एक ऐसा इंटरव्यू दे दिया, जिसने देश के उन नेताओं को पसीना ला दिया, जो धर्म का धंधा करके फल-फूल रहे हैं। हाशिम साहब ने बेबाक इंटरव्यू धर्म के ठेकेदारों के मुंह पर क्या फेंका, उन सबका तो मानो हलक ही सूख गया। कुछ ने चोरी-छिपे, कुछ ने सामने आकर हाशिम साहब की मिन्नतें कीं। धर्म की ठेकेदारी करने वाला सफेदपोश चाहे मुसलिम तबके का हो या फिर हिंदू तबके से। यह तो मानना ही पड़ेगा कि, जबसे बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का खतरनाक खेल शुरु हुआ है, इस लंबी अवधि में नेताओं की सांस फुलाने की जुर्रत या जिंदादिली या फिर कुव्वत तो बूढ़े हो चुके हाशिम अंसारी साहब ने ही दिखाई या की है। पढ़िये हाशिम अंसारी साहब के उस खास और धर्म के ठेकेदारों के दिमाग में 'मट्ठा' डाल देने वाले हाशिम साहब का बिना किसी कांट-छांट के पूरे के पूरा हू-ब-हू....इंटरव्यू 


पूरा इंटरव्यू सुनने के लिए यू ट्यूब पर मौजूद चैनल CRIMES WARRIOR को निशुल्क सब्स्क्राइव और इस लिंक को क्लिक करें...https://www.youtube.com/user/CrimesWarrior

आजम खां करैं बाबरी मस्जिद मुकदमे की पैरवी

ऐसा है कि 61 कमेटी बाबरी मसजिद बनी थी मुकदमा मस्जिद की पैरवी करने के लिए, आजम खान उसका कनवीनर बनाया गया और अपने सियासी फायदा उठाने के लिए मुलायम के साथ चला गया। सारे एक्शन कमेटी के जितने लीडर थे, सबको पीछे छोड़ दिया। तो मुकदमा हम लड़ैं। राजनीति का फायदा आजम खां उठावैं। क्या जरुरत थी उनको? वो कहते हैं जब मुकदमा चल रहा है...मंदिर जब बन गया... तो मुकदमे की क्या जरुरत है? इसलिए मैं बाबरी मसजिद मुकदमे की पैरवी अब नहीं करुंगा। अब बाबरी मसजिद मुकदमे की पैरवी आजम खां करैं।

आजम खां अजुध्या क्यों नहीं आते दर्शन करने

आजम खां... चित्रकूट में छह मंदिर के दर्शन कर सकते हैं, तो अजुध्या क्यों नहीं आते दर्शन करने के लिए। अब यह बाबरी मसजिद हो या जन्म-भूमि। यह सब राजनीति का अखाड़ा है। मैं मुसलमानों को या हिंदुओं के बेवकूफ बनाना नहीं चाहता। मेरे ह़क में फैसला हुआ है। अब हम किसी कीमत पर बाबरी मसजिद मुकदमे की पैरवी नहीं करूंगा। छह दिसम्बर को हमें कोई प्रोग्राम नहीं करना है, बल्कि अपना दरवाजा बंद करके अंदर बैठना है।

मैं रामलला को तिरपाल में देखना नहीं चाहता

सवाल यह है, देखिये हमने सुलह समझौते की कोशिश की थी, तो मुसलिम... हिंदू महासभा चला गया सुप्रीम कोर्ट। बाबा ज्ञानदास ने पूरी कोशिश की थी कि, हम मुसलमान और हिंदुओं को इकट्ठा करके और..मामले को सुलझावैंगे। हर कीमत पर। और फैसला अदालत से कयामत तक नहीं हो सकता। मुकदमा तो चल रहा है। बाबरी मसजिद टूटने का मुकदमा चल रहा है, यह मजाक है। जनवरी सन् 50 से लेकर के अब तक बाबरी मसजिद का मुकदमा चल रहा है। हैं क्या। सारे लीडर चाहे वो हिंदू लीडर हों, चाहे मुसलमान लीडर हों। बाबरी मसजिद का नाम लेकर के अपनी रोटियां सेंक रहे हैं और हसीनत कचहरी के चक्कर लगावैं। यह नहीं होगा। जितने भी नेता हैं सब तो कोठियों में रह रहे हैं और रामलला तिरपाल में रह रहे हैं। मैं रामलला को तिरपाल में देखना नहीं चाहता। खुद तो बढ़िया मिठाई सौ रुपये किलो की खा रहे हैं और रामलला को इलायची दाना खिला रहे हैं। यह नहीं होगा। अब हम हर कीमत पर रामलला को आजाद देखना चाहते हैं।

अब मुकदमे की पैरवी आजम खां करैं


अब मुकदमे की पैरवी आजम खां करैं। मुझको नहीं करना है। कनविनर एक्शन कमेटी बाबरी मसजिद आजम खां। क्या जरुरत है इनको बाबरी मसजिद के मसले पर बोलने के लिए। वो कहते हैं कि जब मुकदमा, जब..जब मंदिर बन गया है तो मुकदमे की क्या जरुरत? यह आजम खां ने कहा है। मैं नहीं कह रहा हूं। कि जब मुकदमा, मंदिर बन गया है तो मुकदमे की क्या जरुरत है! इसलिए मुझको छह दिसंबर को भी कोई प्रोग्राम बाबरी मसजिद का नाम भी अब लेना अब पसंद नहीं करते।

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